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काशी के भैरव मंदिर के इतिहास में जुड़ा यादगार पन्ना, पहली बार किसी पीएम ने टेका मत्था

काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव के दर्शन भर से लोगों को जन्म-जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। महारुद्र रुप का दर्शन करना बहुत सौभाग्य की बात होती है।

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Published on: 5 March 2017 9:06 AM IST
काशी के भैरव मंदिर के इतिहास में जुड़ा यादगार पन्ना, पहली बार किसी पीएम ने टेका मत्था
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वाराणसी: देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में अपने संसदीय क्षेत्र काशी पहुंचे। अघोषित रोड शो में शामिल हुए पीएम ने इस रोड शो, बाबा विश्व्नाथ और बाबा काल भैरव के दर्शन के बहाने तीन विधानसभाओं को साधने की कोशिश की। बाबा काल भैरव के दरबार में ये देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री हो गए, जिन्होंने इस दरबार में आकर मत्था टेका। प्रधानमंत्री पीएम बनने के बाद पिछले ढाई साल में कई बार आए, लेकिन पहली बार चुनाव के समय में पीएम मोदी बाबा काल भैरव के दरबार में पहुंचे। तो उसके राजनीतिक मायने भी निकले जाने लगे हैं। दर्शन के साथ ही पीएम ने मंदिर वालों को दो हजार का दान भी दिया।

काशी के कोतवाल बाबा काल भैरव के दर्शन भर से लोगों को जन्म-जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। शिव के महारुद्र रुप का दर्शन करना बहुत सौभाग्य की बात होती है। 3 दिसंबर को भैरवाष्टमी के दिन आधी रात में बाबा के प्राकट्य रूप का दर्शन करने से जीवन में सुख-शंति व कार्यों में आने वाली बाधा दूर हो जाती है। काशी शिव की नगरी है और यहां पर मैदागिन के पास स्थित भैरवनाथ में बाबा काल भैरव का मंदिर है। काशी की मान्यता के अनुसार भैरवनाथ की अनुमति के बिना कोई भी काशी में नहीं रह सकता है। जितने भी अधिकारी यहां पर आते हैं। वह बाबा विश्वनाथ के साथ बाबा कालभैरव के दर्शन करते हैं। यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया, तो यहां पर ज्यादा दिन तक कार्य नहीं कर पाएंगे। रविवार, मंगलवार, अष्टमी व चतुर्दशी को कालभैरव के दर्शन की मान्यता है। काशी के लोगों को बाबा से इतना प्रेम होता है कि वह प्रतिदिन कालभैरव का दर्शन करने अवश्य जाते हैं।

ऐसे हुई कालभैरव की उत्पति

धार्मिक मान्यता के अनुसार एक बार पंचमुखी भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव के बारे में कुछ ऐसा कहा था। जिससे शिव क्रोधित हो गए थे और उन्होंने कालभैरव की उत्पति की। कालभैरव ने जाकर दाएं हाथ की अनामिका के नाखून से ब्रह्मा का एक सिर काट दिया था, जिसके बाद कालभैरव पर ब्रह्म हत्या का पाप लगा था और वह तीनों लोक में गए, लेकिन ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति नहीं मिल पाई। भगवान शिव के रूद्र रुप होने के कारण कालभैरव जहां पर जाते थे, वहां पर आग लग जाती थी। इस पर भगवान शिव ने भैरवनाथ को काशी में जाने को कहा। काशी के संरैया क्षेत्र में जब कालभैरव पहुंचे, तो उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली और यहीं पर एक तालाब का निर्माण किया और वहां पर स्नान करने के बाद काभैरव क्षेत्र में एक पीपल के नीचे विराजमान हो गए।

काशी में कालभैरव ने रखा है अंगूठा

कालभैरव के सेवक राजेश मिश्रा ने बताया कि यहां पर प्रभु को अंगूठे भर की जगह ही शुद्ध मिली है। कालभैरव का एक पैर श्वान अर्थात कुत्ता पर है। इसलिए श्वान को कालभैरव की सवारी भी मानी जाती है।

बाजीराव पेशवा ने 550 साल पहले बनवाया था मंदिर

बाजीराव पेशवा ने लगभग 550 साल पहले कालभैरव के मंदिर का निर्माण किया था। कालभैरव की उत्पत्ति कब हुई थी? इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं, सिर्फ बताया जाता है कि कालभैरव काशी में अनंत काल से विराजमान हैं।

साल में एक बार होती है भैरवाष्टमी

सभी भैरव मंदिरों के लिए भैरवाष्टी का सबसे अधिक महत्व होता है। साल में एक ही बार भैरवाष्टी होती है। पहले से ही मंदिर की सफाई व रंगरोगन का कार्य किया जाता है। भैरवाष्टमी के दिन भैरव मंदिर में रात को बाबा के दर्शन करने वालों की लम्बी लाइन लगी रहती है।

मंदिर में रोज दर्शन करने वाले आम श्रद्धालु का मानना है कि यहां बाबा के दरबार में शराब और तेल चढाने से सभी मनोकामना की पूर्ति होती है।



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