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मनमानी स्कूल फीस पर आया प्रारूप, जानें कितनी बढ़ सकती है बच्चे की फीस

aman
By aman
Published on: 9 Dec 2017 4:19 AM GMT
मनमानी स्कूल फीस पर आया प्रारूप, जानें कितनी बढ़ सकती है बच्चे की फीस
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अनुराग शुक्ला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में अब नहीं बढ़ सकती है हर साल 10 फीसदी से ज्यादा आप के बच्चे की फीस। उत्तर प्रदेश सरकार की मनमानी फीस वृद्धि रोकने का नुस्खा अब सरकार ने सामने ला दिया है। हालांकि, यह अभी अंतिम नहीं है पर 22 दिंसबर तक मिले सुझावों के बाद इसके कमोबेश लागू कर दिया जाएगा।

स्कूलों को अपनी आय और व्यय को अपनी वेबसाइट नोटिस बोर्ड और सरकार की वेबसाइट पर हर साल अपलोड करना होगा। अब डेवलपमेंट के नाम पर स्कूल कुल फीस का 15 फीसदी से ज्यादा बढ़ा ही नहीं सकते। इसके अलावा नए बच्चों की फीस तो तय करने की छूट पर वह भी उनकी कुल इनकम के लिहाज से होगी। अब स्कूल के नाम पर चल रहे ट्रस्ट की कमाई को भी स्कूल की कमाई माना जाएगा।

क्या हैं प्रारूप के मुख्य भाग

य़ूपी सरकार के इस प्रारूप के मुताबिक, अब जिस स्कूल की जितनी आय होगी उसी के हिसाब से उसे अपने बच्चों की फीस कम करनी होगी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस प्रारूप को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर 22 दिसंबर तक लोगों से सुझाव मांगा है और इसके बाद ही इसे बिल या आर्डिनेंस का रूप दिया जाएगा। साथ ही मिले सुझावों के हिसाब से इसमें बदलाव भी किया जाएगा। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा जो फीस निर्धारण समिति के अध्यक्ष भी हैं उन्होंने यह प्रारूप पेश किया है।

उनके मुताबिक, हर अभिभावक बच्चे को प्रवेश दिलाते समय प्रवेश शुल्क देखकर ही प्रवेश दिलाता है। पर समस्या हर साल बढ़ने वाली अनाप-शनाप फीस से आती है। इसके अलावा मिड सेशन में अचानक बढ़ने वाली फीस, हर साल एडमीशन फीस, स्कूल डेवलपमेंट चार्ज या फीस, ड्रेस, कैपिटेशन फीस, जूते-मोजे खरीदने की बाध्यता और कई तरह के फीस स्ट्रक्चर से आ रही थी।

कितनी बढ़ेगी फीस

सीपीआई यानी क्न्जूमर प्राइस इन्डेक्स यानी हर साल उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के हिसाब से ही बच्चे की फीस बढ़ेगी। अगर सीपीआई की बात करें तो हर साल यह ज्यादा से ज्यादा 2-3 फीसदी तक ही हो सकती है। फीस निर्धारण समिति ने फीस बढाने का फार्मूला इसी आधार पर बनाया है। इसके तहत यह होगा सीपाआई प्लस 5 फीसदी। यानी 10 फीसदी के अंदर ही बढ़ोतरी होगी। पहले की तरह अब स्कूल हर साल 15-20 फीसदी तक सालाना फीस नहीं बढा सकेगा। स्कूल में आने वाले नए स्टूडेंट के लिए फीस तय करने के लिए कोई रोक नहीं है पर यह भी समानुपातिक होगी। अगर फीस बढती है तो स्कूल की आय बढेगी और उन्हें स्टूडेंट की फीस कम करनी होगी। इसके अलावा फीस वृद्धि को नए सत्र की शुरुआत मे ही लागू करना होगा और हर सत्र की शुरुआत के 60 दिन पहले दर्शाना होगा कि फीस कितनी बढ़ रही यह स्कूल को अपने नोटिस बोर्ड, बेबसाइट पर साफ लिखना होगा।

आगे की स्लाइड में पढ़ें पूरी खबर, समझें प्रारूप को...

व्यय कौन से होंगे, देना होगा हिसाब

संस्था के शिक्षा और कर्मचारी के भत्ते में वृद्धि से लेकर संस्था के हर खर्चे और आय को स्कूलों को बताना होगा। उसे वेबसाइट पर अपलोड करें। सत्र के बीच में मिड सेशन में फीस नहीं बढेगी। स्कूल चाहे तो अपने टीचर की सैलरी बढा दे पर उसका भार स्टूडेंट्स पर नहीं पडेगा वह इस खर्च को अगले सेशन से ही जोड सकता है न कि लागू और चल रहे सेशन से। फीस सेशन के शुरु में ही बढेगी। हर मान्यता प्राप्त विद्यालय को अपनी आय और व्यय का पूरा विवरण अपनी बेबसाइट पर अपलोड करना होगा। वह कौन से शुल्क लेगें कितना शुल्क लेगें क्या क्या करेंगे। हर साल के 31 दिसंबर के पहले अपने नोटिस बोर्ड अपनी बेबसाइट पर दर्ज करा देंगे और शासन की वेबसाइट पर भी अपलोड करेगा।

अब पूरे साल की फीस एक साथ देने की नहीं होगी मजबूरी

बहुत से स्कूलों में पूरे साल की फीस एक साथ लेने की शिकायत मिली थी इस पर समिति ने तय किया है कि हर स्कूल महीने, तीन महीन, छमाही फीस ही ले सकेंगे किसी को एक साथ पूरे साल की फीस देने को मजबूर नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा कैपिटेशन शुल्क नहीं लिया जा सकता, जो भी शुल्क लिया जाएगा उसकी रसीद होगी। अभिभावक को यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसी दुकान से या फिर स्कूल से किताब, कापी, जूते मोजे ड्रेस लेना है। उसे बाध्य नहीं किया जा सकता।

अब ज्यादा से ज्यादा चार तरह की होगी फीस

फीस निर्धारण समिति ने अब कुल चार तरह की फीस निर्धारित की है

पासिबल फीस यानी संभव शुल्क- यानी जो शुल्क प्रवेश के समय लिया जाता है। यह शुल्क पहली बार एडमिशन के समय ही लिया जाएगा इसमें भी स्कूल को एक साथ यानी समग्र या आंशिक तौर पर फीस भरने की छूट देनी होगी। अब एडमिशन के नाम पर हर साल फीस नहीं ली जा सकेगी। पहली बार क्लास 1 में इसके बाद क्लास 6 में, इसके बाद क्लास 9 और फिर क्लास 11 में ही एडमिशन फीस ही ली जा सकेगी। हर साल स्कूल में पढ़ रहे बच्चों से एडमिशन फीस नहीं ली जा सकेगी।

आप्शनल फीस यानी एच्छिक शुल्क- यह ऐसी फीस है जो हर बच्चे से ली जाती थी चाहे वो सुविधा का उपयोग करे या न करे। अब तक ये फीस उनसे भी ली जाती थी जो उसकी सुविधा नहीं लेते जैसे टूर फीस, ट्रांसपोर्ट फीस ( भले ही वह अपने साधन से स्कूल आए), मेस फीस, बोर्डर फीस, शैक्षिक भवन के नाम टूर कम्पसलरी फीस चाहे बच्चा जाना चाहे या ना जाना चाहे। इसके अलावा सत्र के बीच में शुरु किए गये किसी नए काम को भी एच्छिक शुल्क में ही माना जाएगा।

डेवलपमेंट फीस या विकास शुल्क का अधिभार- अब डेवलपमेंट फीस के नाम पर 15 फीसदी से ज्यादा स्कूल फीस ले ही नहीं सकते है। अब तक यह फीस 80- 200 फीसदी तक होती थी। अब डेवलपमेंट शुल्क सिर्फ सत्र की शुरुआत में लिया जा सकेगा। इसका उपयोग सिर्फ स्कूल और शैक्षिक में ही किया जा सकता है। जैसे स्कूल की नई शाखा खोलना, नया भवन बनाना, नया कम्प्यूटर लैब बनाना, आदि यानि इस डेवलपमेंट शुल्क से क्या हुआ इसका हिसाब देना होगा।

वापसी योग्य अधिभार यानी काशन मनी- नो ड्यूस के बाद सारा काशन मनी स्कूल को वापस करना होगा। सुझावों के आधार पर कितना काशन मनी हो या फिर समिति फिक्स करेगी

जारी ...

देना होगा विद्यालय के आय-व्यय का शेड्यूल, नहीं चलेगा ट्रस्ट का खेल

कई विद्यालयों में व्यवसायिक काम होते हैं जैसे मैरिज हाल, स्कूलों में दुकान खोल देते हैं। आम तौर पर ये पैसा स्कूल चला रहे ट्रस्ट के खाते में जाता था। यही ट्रस्ट स्कूल भी चलाता था और फैक्टरी भी। अब स्कूल में हो रहे सारे व्यवसायिक कामों का की आय का सारा पैसा विद्यालय की आय मानी जाएगी। यह पैसा भी विद्यालय की आय में शामिल होगा। जितनी आय बढेगी उतना विद्यालय की फीस कम करनी होगी ऐसे में आय बढने पर विद्यार्थी को लाभ मिलेगा। यह संस्था की आय मानकर विद्यालय के अकाउंट में ही जमा की जाएगी। यह पैसा ट्रस्ट के अलग खाते में नहीं जाएगा। उपमुख्यमंत्री ने कहा, कि हम विद्यालय में व्यावसायिक गतिविधि रोक नहीं सकते पर आय का फायदा स्टूडेंट को दिलाएंगे।

हर मंडल पर नियामक समिति

फीस की जांच करने और इस पर निगाह रखने के लिए जोनल शुल्क नियामक समिति की व्यवस्था है जो नियमावली से अधिक फीस बढाने पर प्रबंधन के फैसले पर निर्णय लेगी। इस समिति का अध्यक्ष मंडलायुक्त होगा और समिति में उसका नामित सीए, लोक निर्माण विभाग का अधीक्षण अभियंता, वित्त और लेखा विभाग अधिकारी, विद्यालय के अभिभावक और शिक्षक संघ, संयुक्त शिक्षा निदेशक होगा। यह समिति शिकायत की जांच करेगी। शिकायत सही पाए जाने पर पहली बार नियम के उल्लंघन पर स्कूल पर एक लाख दूसरी बार पांच लाख रुपये की की पेनाल्टी करेगी और इसके बाद स्कूल के 15 फीसदी डेवलपमेंट चार्ज वापस करने का अधिकार समिति को होगा।

किस पर होगा लागू

यह अधिनियम पास होने के बाद उन पर लागू होगा जो स्कूल एक साल में 20 हजार से ऊपर फीस ले रहे हैं। यह नियम हर स्कूल पर लागू होगा चाहे वह यूपी बोर्ड का हो, चाहे सीबीएसई और आईसीएसई का हो। इसे लागू कराने के लिए बकौल उपमुख्यमंत्री गहन अध्ययन किया गया है जिससे किसी भी प्राइवेट स्कूल को कोर्ट से कोई राहत न मिले और इसी वजह से इसमें देर हुई।

कैसे बना नियमावली का यह प्रारूप

इसे बनाने के लिए छह माह तक अध्ययन किया गया है। फीस के नियमों को राजस्थान, हरियाणा पंजाब दिल्ली जाकर अध्ययन किया गया। इसके लिए शिक्षा विद, एडवोकेट, पत्रकार और शिक्षा, अभिभावक संघ से सुझाव मांगे गये। बकौल उपमुख्यमंत्री प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ चाहते थे कि इस पर सबका पक्ष आ जाए इसके लिए प्रबंध तंत्र और प्रबंधकों से भी बात की, विधानपरिषद के शिक्षक नेताओं से भी विचार प्राप्त किया गया। यहा तक कि केंद्रीय मानवसंसाधन मंत्रालय, वहां के सचिव से भी बात की गयी। सबसे खास बात यह है कि इसके मूल में सुप्रीम कोर्ट के 11 सदस्यीय बिंदुओं का अनुपालन था जिसका ध्यान रखा गया है। हर मुद्दे पर प्रबंध तंत्र के पक्ष का विधिक राय ली गयी है जिससे लागू होने के बाद इसमे कोई लूपहोल न रह जाय।

कैसे होगा लागू

इसे फिलहाल शिक्षा विभाग की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है। इस पर 22 दिसंबर तक आपत्ति मांगी गयी है। यह नियमावली का प्रारुप है। 15 दिन में जो सुझाव आऐंगे इसके बाद इसे चाहे इसे आर्डिनेंस की शक्ल में, चाहे नियमावली, या फिर कैबिनेट से पास कराकर और जरुरत पड़ी तो विधानसभा में पास कराकर लागू किया जाएगा।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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