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NHM में लूट: DM के दबाव में टेंडर निरस्त, 2013 से सिर्फ Renewal
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: पूर्व की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में उजागर हुए नेशनल रूरल हेल्थ मिशन (NRHM) घोटाले ने राज्य के स्वास्थ्य महकमे की खूब बदनामी कराई। तब तत्कालीन सीएम मायावती को यह फजीहत बहुत महंगी पड़ी थी। अब नेशनल हेल्थ मिशन (NHM, परिवर्तित नाम) में भी उसी तर्ज पर बेखौफ तरीके से गड़बड़ियों को अंजाम दिया जा रहा है। श्रावस्ती जिले में सन 2013 से ही चल रहे टेंडरों का नवीनीकरण करके काम चलाया जा रहा है।
हालांकि, बीते 20 मई से राज्य में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू होने के बाद नए टेंडर कराने की कोशिश की गई। पर डीएम दीपक मीना के दबाव में सीएमओ डीके सिंह ने अपने मौखिक आदेश से उन्हें निरस्त करा दिया। उधर योगी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का दावा कर रही है। इधर, जिलों में अफसर मलाई काट रहे हैं।
ये बताया अधिकारी ने
एक स्थानीय अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, कि 'NHM के तहत जिन कामों के लिए सन 2013 में टेंडर जारी हुए थे। उन्हीं टेंडरों का साल-दर-साल नवीनीकरण करके काम चलाया जा रहा था। इस बीच मिशन निदेशक पंकज कुमार ने जिलों के अफसरों को पत्र लिखकर ई-टेंडरिंग के जरिए वेंडर चुनने की नसीहत दी, तो उनके आदेश को अफसरों ने जमीन पर उतारने का काम शुरू कर दिया। बाकायदा ई-टेंडरिंग के तहत कामों के विज्ञापन प्रकाशित कराए गए।'
डीएम ने जांच समिति गठित कर दी
तय प्रक्रिया के तहत वेंडर भी चयनित हो रहे थे। यह काम बीते 30 दिसम्बर तक करीब-करीब पूरा भी हो चुका था, पर प्रक्रिया दौरान अचानक पहले से विभाग में काम कर रहे 'बाहुबली' सक्रिय हो गए। स्थानीय खेमेबाजों ने जिलाधिकारी पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। नतीजतन डीएम दीपक मीना ने सीएमओ डीके सिंह को तलब कर लिया। उनसे पूछ बैठे कि जिला स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष के रूप में उनसे टेंडर निकालने की अनुमति क्यों नहीं ली गई? सारे रिकार्ड मंगाए और इस प्रकरण की जांच के लिए एक जांच समिति गठित कर दी।
आखिरकार निरस्त हुए टेंडर
बहरहाल दस्तावेजों में उनसे अनुमति के प्रमाण मौजूद थे तो जांच समिति ने भी आगे कोई खास कदम नहीं उठाया। उधर, डीएम मीना, सीएमओ पर टेंडरों को निरस्त करने का दबाव बनाने लगे। बहरहाल, अंत में सीएमओ ने अपने मौखिक आदेश से टेंडर निरस्त कराए।
इन कामों के लिए निकाले गए थे टेंडर
पिछले वर्ष मानव संसाधन, जिला चिकित्सालय व अन्य चिकित्सालयों में साफ-सफाई, जननी शिशु सुरक्षा योजना के तहत नि:शुल्क भोजन और किराए पर गाड़ियों को किराए पर लिए जाने के बाबत टेंडर निकाले गए तो पहले से ही चिकित्सालयों में भोजन उपलब्ध करा रही संस्था ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई कि उनके काम का टेंडर मार्च 2018 तक का है। इसलिए इस काम के लिए टेंडर आमंत्रित नहीं किया जाए। जबकि सरकारी आदेशों के मुताबिक टेंडर की अवधि पूरा होने के तीन महीने पहले ही टेंडर की प्रक्रिया पूरी कर लेनी चाहिए। पर इसके उलट नि:शुल्क भोजन का टेंडर नहीं निकलने दिया गया। बहरहाल, अन्य कामों के लिए आनलाइन टेंडर निकाले गए थे।
धनराशि के उपयोग की मानीटरिंग नहीं
NHM के तहत जिलों में धनराशि का उपयोग हुआ या नहीं। नौकरशाह इसकी मानीटरिंग तक नहीं करती। नतीजतन घपलों की बेल विभाग में तेजी से फल-फूल रही है। वह भी तब जब प्रमुख सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य प्रशांत त्रिवेदी को शासन ने श्रावस्ती के कामों की मानीटरिंग के लिए प्रभारी अधिकारी बनाया है।
भुगतान को वित्त नियंत्रक से मांगा मार्गदर्शन
श्रावस्ती के जिला लेखा प्रबंधक ने इसी सिलसिले में एनएचएम के वित्त नियंत्रक को पत्र लिखकर मार्गदर्शन मांगा है। उसमें कहा गया है कि जननी शिशु सुरक्षा योजना में जिन दवा की आरसी नहीं है, उसको भी स्वास्थ्य इकाईयों के लिए अपर निदेशक देवीपाटन मंडल गोंडा की अनुमति के क्रम में ऑर्डर किया जा रहा है और उसके भुगतान कराए जा रहे हैं। इसकी पत्रावली मांगने पर एक लिस्ट दी गई और बताया जाता है कि जिला क्रय समिति द्वारा यह आर्डर किया जा रहा है।
क्या कहते हैं एनएचएम के मिशन निदेशक?
नेशनल हेल्थ मिशन के मिशन निदेशक पंकज कुमार का कहना है कि ई-टेंडरिंग के बाद सबको इसी प्रक्रिया से टेंडर कराने के निर्देश दिए गए हैं। जहां उपयुक्त लोग नहीं मिल पा रहे हैं। वहां पुराने टेंडर को नवीनीकरण कर काम कराया जा रहा है। टेंडर निरस्त कराने की कोई जानकारी मेरे संज्ञान में नहीं है। इसकी जांच करा लेंगे। यदि कोई नियमों का अनुपालन नहीं करता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
अब तक चल रही है एनआरएचएम घोटाले की जांच
बसपा सरकार में हुए एनआरएचएम घोटालों की सीबीआई जांच अब तक जारी है। इसके आरोप में चिकित्सा एवं स्वास्थ्य महकमे के तत्कालीन प्रमुख सचिव प्रदीप शुक्ला और विभागीय मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का सलाखों के पीछे आने-जाने का सिलसिला जारी है। दर्जनों सीएमओ जेल की हवा खा रहे हैं। पर अफसरों ने इससे कोई सबक नहीं लिया।