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कभी सैकड़ों गांवों की प्यास बुझाती थी ये नदी, अब पानी को तरस रही

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Published on: 8 May 2016 12:29 PM GMT
कभी सैकड़ों गांवों की प्यास बुझाती थी ये नदी, अब पानी को तरस रही
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महोबा: चांदों गांव का बुधवा और नत्थुपुरा का राम खेलावन टकटकी लगाए उस ओर देख रहा है जहां से दस साल पहले चन्द्रावल नदी गुजरा करती थी। चांदो से ही तो निकली थी चन्द्रावल जो सैंकड़ों एकड जमीन की सिंचाई के साथ साथ गांव वालों की प्यास बुझाती थी ।

कभी पहाडों और झरनों पर नाज था बुंदेलखंड को

-प्यास से बिलख रहे लोगों की आंखों में आंसू हैं जो अब अपनी करनी पर पछताने के साथ नदी को याद कर रहे हैं।

-प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर बुंदेलखंड कभी पहाडों और अपने जंगलों पर नाज किया करता था।

-जगह जगह प्राकृतिक झरने और छोटी नदियां यहां की शान हुआ करती थी।

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-आसपास के और गांव मगरौना, कमलखंडा, सुहार और एतेवरा के लोगों का भी यही हाल है।

-ये उन 40 गांवों में शामिल हैं जहां प्यास से लोग बिलख रहे हैं।

नौकरशाही का शिकार हुई कोशिशें

-ऐसी ही एक नदी थी चन्द्रावल जो अपने ही लोगों का सितम सह नहीं सकी और गुम हो गई।

-नदी को फिर से जिंदा करने के लिए अगस्त 2015 में मनरेगा मजदूरों से कुछ दिन फावडे चलवाए गए।

-महोबा के एक सौ गांव की जीवनदायिनी चन्द्रावल नदी को सदानीरा बनाने का काम खत्म हो गया।

-नदी को एक साल में उसके मूल स्वरूप में लाने के दावे हवा में उड़ गए।

-बुंदेलखंड इलाके में पानी के श्रोतों को फिर से जीवन देने की सरकारी कोशिश एक बार फिर नौकरशाही का शिकार हो गई।

-बजट के अभाव से चन्द्रावल को फिर से जीवन देने का काम रूक गया।

-इसका खाका यहां की सैंकडों एकड खेती की जमीन को सिंचित करने तथा लोगों को पेयजल मुहैया कराने को लेकर तैयार किया गया था।

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पंचायत चुनाव की वजह से रूका काम

तत्कालीन आयुक्त कल्पना अवस्थी कहती हैं कि काम इस उम्मीद से शुरू किया गया था कि सरकार से बजट मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हो सका। बाद में राज्य में पंचायत चुनाव शुरू हुए तो काम रोक देना पड़ा। उम्मीद थी की पंचायत चुनाव के बाद काम शुरू हो जाएगा लेकिन पिछले दस साल से सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड के लोगों की प्यास बुझाना सरकार की प्राथमिकता से बाहर हो गया।

चन्द्रावल के बाद झरने भी सूखे

-चन्द्रावल का उद्गम चांदो गांव था जिसे चन्द्रपुरा के पहाडी झरनों से जीवन मिला करता था।

-चार दिन की खोदाई भी यहीं शुरू की गई थी।

-वक्त और प्रदूषण की मार से चन्द्रावल के अस्तित्व पर ही खतरा हो गया।

-इसके सूख जाने से चन्द्रावल बांध पर भी खतरा मंडराने लगा।

-कभी चन्द्रपुरा की पहाडियों पर घनघोर जंगल हुआ करता था।

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-इसकी लकडी माफियाओं ने सफाया कर दी।

-परिणाम यह हुआ कि प्रकृति का उपहार झरने सूख गए।

अंग्रेजों ने बनवाया था बांध

-बीस साल पहले तक नदी में लबालब पानी रहता था।

-अंग्रेजों ने पानी का उपयोग करने के लिए चन्द्रावल बांध बनाया।

-पांच हजार मीटर से ज्यादा लंबे बने बांध से 80 हजार किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली बनाई गई।

-इससे बीस हजार हेक्टयर में सिंचाई होती थी।

-भारी जलधारण क्षमता के साथ नदी का ऐतिहासिक महत्व भी महोबा की अस्मिता के साथ जुडा है।

आल्हा उदल ने पृथ्वीराज को हराया था यहां

-दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान ने 11वीं सदी में यहां आक्रमण किया था।

-चंदेली सेना को हराकर राजकुमारी चन्द्रावल का डोला लूट लिया था।

-पृथ्वीराज जब चन्द्रावल का डोला ले वापस दिल्ली लौट रहे थे।

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-तब नदी के बेग ने उनका रास्ता रोका।

-चंदेल सेना में सेनापति रहे आल्हा उदल ने पृथ्वीराज को हराया।

-चन्द्रावल का डोला वापस ले आए।

-तभी से इस नदी का नाम चन्द्रावल पड गया।

राजेन्द्र सिंह को सुझाव के लिए बुलाया था सीएम ने

पानी का नोबल पुरस्कार पाने वाले राजेन्द्र सिंह को सीएम अखिलेश यादव ने बुलाया था कि चन्द्रावल पर काम कैसे किया जाए। राजेन्द्र सिंह ने सुझाव भी दिए और दावा किया कि चन्द्रावल एक साल में अपने पुराने स्वरूप में आ जाएगी। उनका कहना था कि चन्द्रावल को फिर से जीवन देने के काम को खर्चीला नहीं बनाया जाना चाहिए। नदी सदानीरा हो जाए इसके लिए उनके पास साधारण सा माडल है।

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कई जगहों पर पांच से छह मीटर तक खोदाई करने के बाद वाटर लेबल रिचार्ज कर जमीन के अंदर के पानी को बाहर निकालना फायदेमंद रहेगा।इससे नदी फिर से जिंदा हो जाएगी लेकिन ये हो ना सका और आज ऐ आलम है कि कभी इस नदी के किनारे हंसते खिलखिलाते जीवन गुजारने वाले उस जगह की ओर देख रहे हैं जहां से ये गुजरा करती थी।

यह सवाल इस वक्त मौजूद है कि यदि होती चन्द्रावल तो क्या लोग प्यासे रह जाते या बुंदेलखंड के लोगों की प्यास पर राजनीति होती ।

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