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शीतकालीन सत्र में आएगा राम मंदिर का कानून ?

sudhanshu
Published on: 18 Oct 2018 10:10 AM GMT
शीतकालीन सत्र में आएगा राम मंदिर का कानून ?
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लखनऊ: बीजेपी सरकार राम मंदिर के मुद्दे पर सत्‍ता में आई थी। लेकिन अब जब वादा पूरा नहीं हुआ और लोकसभा का चुनावी शोर सुनाई देना शुरू हो गया है, ऐसे में बीजेपी पर राम मंदिर को लेकर काफी दबाव है। मोदी सरकार पर बाहरी दबाव के साथ साथ अंदरखाने से भी चौतरफा दबाव बनता जा रहा है कि वह राम मंदिर के निर्माण के लिए कम से कम कानून तो सदन में लाएं, जिससे राम मंदिर निर्माण का रास्‍ता साफ हो सके।

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मोहन भागवत के बयान से गरमाया मुद्दा

अटकलों के बीच राम मंदिर की संभावनाओं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान से बल मिला है। संघ प्रमुख ने कहा है कि राम मंदिर के लिए कानून बनाना चाहिए। अगर भागवत यह बात कह रहे हैं तो वो एक तरह से सीधे सरकार को इशारा कर रहे हैं कि संघ और भाजपा के समर्थकों और राम के प्रति आस्था रखने वालों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार को सदन में राम मंदिर के लिए क़ानून लाना चाहिए।

कार्यकर्ताओं से लेकर संत समाज का है दबाव

पीएम मोदी के नेतृत्‍व वाली केंद्र सरकार पर मंदिर निर्माण के लिए दबाव कम नहीं है। ज़मीन पर कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को जवाब देने से लेकर खुद को मंदिर निर्माण के लिए प्रतिबद्ध दिखाना भाजपा के लिए ज़रूरी होता जा रहा है। दूसरी ओर संत समाज ने भी सरकार को इस मुद्दे पर घेरना शुरू कर दिया है और स्‍पष्‍ट संकेत दिया है कि संत समाज मंदिर निर्माण में देरी बर्दाश्त नहीं करेगा। संतों का कहना है कि क्या भाजपा मंदिर निर्माण का अपना वादा भूल गई है और क्यों सुप्रीम कोर्ट के फैसले के इंतज़ार का बयान पार्टी की ओर से बार-बार दिया जा रहा है।

6 दिसंबर की घोषण सरकार के लिए चुनौती

गौरतलब है कि संतों के एक बड़े वर्ग और राम मंदिर आंदोलन से जुड़े महंतों ने इस वर्ष 6 दिसंबर से अयोध्या में मंदिर निर्माण की घोषणा कर दी है। संत समाज का कहना है कि वो मंदिर निर्माण का काम शुरू कर देंगे, सरकार रोकना चाहती है तो रोके। संतों का यह आह्वान सरकार के लिए कम चुनौतीपूर्ण नहीं है। केंद्र की मोदी सरकार और राज्य में योगी सरकार के लिए यह बहुत मुश्किल होगा कि संतों को रोकने के लिए वे किसी भी प्रकार का बल प्रयोग करें। इससे भाजपा को अपने समर्थकों के बीच खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है। संत समाज की इस घोषणा को संघ प्रमुख के आज के भाषण से एक तरह की वैधता मिल गई है।

तो क्‍या सरकार लाएगी विधेयक?

ऐसी स्थिति में राजनीतिक दिग्‍गजों का मानना है कि बीजेपी के पास अब एक ही रास्ता बचता नज़र आ रहा है और वो यह है कि राम मंदिर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्थापित करने के लिए मोदी सरकार सदन के आगामी शीतकालीन सत्र में राम मंदिर के विधेयक को रखे। इससे भाजपा को लाभ भी है। पहला तो यह कि सरकार लोगों के बीच चुनाव से ठीक पहले यह स्थापित करने में सफल होगी कि उनकी मंशा राम मंदिर के प्रति क्या है। वो अपने मतदाताओं को बता सकेगी कि कम से कम भाजपा और मोदी अयोध्या में राममंदिर के निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध है। दूसरा लाभ यह है कि विपक्ष के लिए यह एक सहज स्थिति नहीं होगी। विपक्ष इस पर टूटेगा। कांग्रेस के लिए यह आसान नहीं होगा कि वो राम मंदिर पर प्रस्ताव का विरोध करके अपनी सॉफ्ट हिंदुत्व की पूरी कोशिशों को मिट्टी में मिला दे। इससे विपक्ष में बिखराव भी होगा और सपा बसपा जैसी पार्टियों के वोटबैंक में भी सेंध लगेगी।

मोदी सरकार के लिए आगामी शीतकालीन सत्र इस सरकार का अंतिम सत्र होगा। इसके बाद का बजट सत्र एक मध्यावधि बजट के साथ समाप्त हो जाएगा और देश आम चुनाव में लग जाएगा। चुनाव से ठीक पहले अपने मतदाताओं के बीच राम मंदिर के लिए विश्वास जताना सरकार के लिए ज़रूरी है। देखना यह है कि सरकार इस विश्वास को जताने के लिए किस सीमा तक जाती है।

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