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क्या है केंद्र सरकार का आरबीआई से विवाद और क्या इस्तीफा देंगे उर्जित पटेल

राम केवी
Published on: 6 Nov 2018 5:27 PM IST
क्या है केंद्र सरकार का आरबीआई से विवाद और क्या इस्तीफा देंगे उर्जित पटेल
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रामकृष्ण वाजपेयी

रिजर्व बैंक (आरबीआई) के साथ केन्द्र सरकार की जंग धीरे धीर अपने चरम की ओर बढ़ रही है। कहा यह भी जा रहा है कि मौजूदा विवाद का हल ढूंढने में जुटी सरकार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की चिट्ठी का सहारा ले सकती है। पं. नेहरू के दौर में भी केंद्र सरकार का आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर सर बेनेगल राम राव से मतभेद हुआ था जिसकी परिणति बेनेगल के इस्तीफे के रूप में हुई थी। तो क्या स्थितियां वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे की ओर बढ़ रही हैं।

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हालात तो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं। जिन्हें आरबीआई के सेक्शन सात का इस्तेमाल किये जाने से बल मिलने लगा है। सेक्शन सात लागू होने के बाद बैंकिंग से जुड़े फैसले लेने का अधिकार आरबीआई के गवर्नर के हाथ से निकलकर बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास आ जाता है। जिसमें सरकार के नामित प्रतिनिधि भी होते हैं। मोटे तौर पर यह धारा आरबीआई के गवर्नर के पर कतरती है। उसके अधिकारों को कमजोर करती है। इस मामले में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य का यह कहना महत्वपूर्ण है कि आरबीआई की स्वायत्ता पर चोट की गई तो यह विनाशकारी साबित होगा। इसमें वह अर्जेंटीना की बदहाली का हवाला देते हुए कहते हैं कि वहां पर यह स्थिति आरबीआई के चेस्ट में कटौती से ही हुई थी। तो आइए इस विवाद को गुत्थी को समझते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच विवाद की सबसे बड़ी वजह 3.6 लाख करोड़ रुपए हैं। वित्त मंत्रालय यह रुपए मांग रहा है जबकि आरबीआई ऐसा करने से इनकार कर रहा है। जानकारी के अऩुसार आरबीआई के पास सुरक्षित निधि के रूप में 9,59 लाख करोड़ रुपए हैं। केंद्र सरकार जनहित को देखते हुए आर्थिक तंगी से जूझ रही सरकारी कंपनियों और बाजार में नकदी की कमी को दूर करना चाहती है।

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यहां यह बात भी गौरतलब है कि केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद अचानक से उजागर नहीं हुए हैं। महीनों से यह कड़वाहट चली आ रही है। इससे पहले 2017-18 में भी जब वित्त मंत्रालय ने पूंजी की जरूरत का हवाला देते हुए आरबीआई से उसके पास जमा कुल धनराशि मांगी थी तब उस समय भी आरबीआई ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया था। इन्हीं सब कड़ुवाहटों का नतीजा था वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान। जिसमें उन्होंने रिजर्व बैंक पर 2008 से 2014 के बीच बैंकों को मनमाना कर्ज देने से रोकने में नाकाम रहने का आरोप लगाया था जिसकी वजह से बैंकों का एनपीए बढ़कर 150 अरब डॉलर हो जाने की बात कही थी।

वर्तमान समय में क्या है कलह की जड़

जैसा कि तमाम मीडिया चैनलों की रिपोर्टों में छनकर आ रहा दोनो शीर्ष संस्थानों में कड़ुवाहट तो महीनों पहले से थी लेकिन हाल के दिनों में अर्थव्यवस्था में आई मंदी के चलते यह कलह सतह पर आ गई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, कमजोर होते रुपए और बैंकिंग सेक्टर में बढ़ते एनपीए के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था चौतरफा दबाव के दौर से गुजर रही है।

हाल ही में आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने एक जगह अपने भाषण में कहा था कि अर्जेंटीना के केंद्रीय गवर्नर को जमा पूंजी सरकार को देने के लिए मजबूर किया गया था जिसके कारण वहां की सरकार को भारी कीमत चुकानी पड़ी थी। उन्होंने कहा था कि जो सरकारें केंद्रीय बैंकों की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करती हैं वह संकट में घिर जाती हैं और अहम संस्थाएं खोखली हो जाती हैं। गौरतलब यह भी है कि विरल ने अपने भाषण को गवर्नर उर्जित पटेल की सहमति से दिया हुआ बताया था।

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पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी.चिदंबरम ने ट्वीट करके कहा है कि जैसा कि रिपोर्टों से पता चल रहा है सरकार ने आरबीआई एक्ट के सेक्शन-7 को लागू करके रिजर्व बैंक को निर्देश दिये हैं। मुझे डर है कि आज और भी बुरी खबरें सुनने को मिलेंगी।

चिदंबरम का कहना है कि हमने 1991, 2008 और 2013 में भी इस सेक्शन का इस्तेमाल नहीं किया था। मौजूदा वक्त में इसे लागू करने की ऐसी क्या जरूरत आ पड़ी है। इसके लगता है कि सरकार अर्थव्यवस्था के बारे में तथ्यों को छिपा रही है और बुरी तरह हाथ पैर मार रही है।

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हालात को देखते हुए आरबीआई के गवर्नर के इस्तीफे की आशंका भी जतायी जा रही है। इसका सीधा उदाहरण सुब्रहमण्यम स्वामी का ट्वीट है जिसमें उन्होंने कहा है कि सरकार को उर्जित पटेल को इस्तीफा देने से रोकना चाहिए।

आरबीआई का मानना है कि ये पैसे सरकार को देने से अर्थव्यवस्था में अस्थिरता पैदा होने का खतरा है। इसीलिए रिजर्व बैंक ऐसा करने से इंकार कर रहा है। कुल मिलाकर हालात चिंताजनक हैं। आने वाला वक्त बताएगा क्या जो हो रहा है या जो हुआ वह सही था या गलत।

केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच चल रहे विवाद के बीच आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का एक बयान आया है कि आरबीआई बोर्ड को द्रविड़ की तरह खेलने की जरूरत है न कि सिद्धू की तरह।

राजन ने कहा कि मै समझ नहीं पा रहा हूं कि उन लोगों के नाम सार्वजनिक क्यों नहीं किये जा सकते जिन्होंने जानबूझकर कर्ज हड़पा है। उन्होंने कहा कि यदि फ्राड के लिए दंडित नहीं किया जाता है तो यह फ्राड को बढ़ावा देने वाला कदम होगा।

उन्होंने कहा है कि दोनो पक्षों को एक दूसरे को सुनने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि इस समय सबसे ज्यादा चिंता का विषय यह है कि रिजर्व बैंक बोर्ड की भूमिका में बदलाव। आरबीआई बोर्ड कोई आपरेशनल बाडी नहीं है. यह अलग श्रेणी के लोग हैं। जिनका मुख्य कार्य सलाह देना है। यह कोच की तरह सलाह तो दे सकते हैं लेकिन सिद्धू की तरह खेलते हुए आपरेशनल निर्णय नहीं ले सकते।



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