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REALITY CHECK : मोदी सरकार के दो साल, काशी में क्या है गंगा का हाल
वाराणसी: केंद्र में मोदी सरकार के दो साल पूरे होने वाले हैं। एक तरफ सरकार अपनी योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाने का काम कर रही है। वहीं दूसरी ओर पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र के लोग उनसे किए वादे पूरे होने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
चुनाव के वक्त पीएम मोदी ने वाराणसी के लोगों से गंगा की अविरलता और स्वच्छता के लिए बड़े-बड़े वादे किए थे। जो दो साल बाद भी जस का तस है। उस वक्त मोदी ने कहा था कि 'मैं यहां आया नहीं हूं मुझे गंगा ने बुलाया है।' काशी वासियों का कहना है, तो फिर मोदी इस ओर क्यों नहीं ध्यान दे रहे।
एक तरफ जहां गंगा का जलस्तर तेजी से घट रहा है। वहीं दूसरी तरफ प्रदूषण स्तर भी खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। गंगा में डिजाल्व ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है और बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) की मात्रा बढ़ रही है। इसके चलते घाटों पर रहने वाले नाविकों और जलीय जीवों का जीवन संकट में है।
घाट के किनारे कीचड़ और दलदल
गंगा की सफाई और गाद काटे जाने के सारे दावे अब हवाई साबित हो रहे हैं। गंगा के बीच उभरे बालू के टीलों से गंगा की स्थिति का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। रामनगर से राजघाट तक गंगा में कई स्थानों पर बालू के टीले उभर आए हैं। इस वजह से गंगा की बीच धारा में पानी का प्रवाह भी कम हो गया है। घाट की सीढ़ियों से गंगा का पानी दूर हो गया है, इससे किनारों पर कीचड़ और दलदल हो गया है।
जलीय जीवों के लिए खतरे की घंटी
एक नए शोध में वाराणसी के नदी विषेशज्ञ प्रो. बीडी त्रिपाठी और प्रो. यूके चौधरी ने पाया है कि अस्सी से राजघाट के बीच डिजॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा घटती जा रही है। जबकि बीओडी की मात्रा तेजी से बढ़ रही है। ऐसा होना जलीय जीवों के लिए खतरे की घंटी है। पानी को विषाक्त बनाने वाला बीओडी हर जगह खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।
क्या कहते हैं नदी विशेषज्ञ ?
नदी विषेशज्ञ बताते हैं की गंगा में डिस्चार्ज कम होने से पानी का वेग कम हो गया है। जबकि इंडस्ट्रियल और ऑर्गेनिक पोललुटेंट अब भी उसी में गिराए जा रहे हैं। इससे गंगा के पानी में ऑक्सीजन की मात्रा कम होते जा रही है और बीओडी बढ़ता जा रहा है।
घाट डिजॉल्व आक्सीजन (पीपीएम ) बीओडी (पीपीएम )
अस्सी घाट 6 ---- 7 8 ------- 12
दशास्वमेध घाट 5 ------- 6 9 ------ 14
पंचगंगा घाट 4 . 5 15 पीपीएम
राजघाट 4 . 5 16 पीपीएम
मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त
नदी विषेशज्ञों की मानें तो इसका बहुत बुरा प्रभाव जलीय जीवों पर पड़ा है। डॉल्फिन कभी इलाहबाद से वाराणसी के बीच गंगा में कई जगह दिखाई देती थी। लेकिन अब गंगा के इस इलाके से कई जीवों का पलायन हो चुका है। मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं।
विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि गंगा के पानी का औषधीय गुण भी अब उत्तराखंड के आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसलिए इन जीवों को बचाने का एकमात्र तरीका गंगा में पानी की मात्रा को बढ़ाना है।
नाविकों के सामने भी संकट
गंगा में पानी की कमी से नाविक भी परेशान हैं। नाविकों का कहना है कि गंगा में पानी नहीं होने से उनके सामने भी रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है। इस कारण पर्यटक भी अब नौका विहार का मजा नहीं ले पा रहे हैं।
गंगा में बढ़े पानी का प्रवाह
गंगा की इस स्थिति पर पर्यावरणविद प्रो.बीडी त्रिपाठी ने चिंता जाहिर करते हुए बताया कि, वर्तमान में गंगा की जो स्थिति है वह भयावह है। गंगा सूख रही है। गंगा के तट पर पानी की कमी हो रही है जिसका सीधा असर लोगों की जिंदगी पर पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि वह गंगा के प्रवाह को बढ़ाने पर ध्यान दे। बांधों से गंगा में प्रयाप्त मात्रा में पानी छोड़ें ताकि प्रवाह ही प्रदूषण को कम कर।