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केशव के हाथ कमल: चुनाव में राष्ट्रवाद, राम मंदिर को आगे कर सकती है BJP
Vinod Kapoor
लखनऊ: बीजेपी आलाकमान ने आखिर तमाम दावों को दरकिनार करते हुए फूलपुर के सांसद केशव प्रसाद मौर्या को यूपी प्रदेश अध्यक्ष का कांटों भरा ताज दे दिया। हालांकि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की वो पहली पसंद थे। विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे।
केशव मौर्या के अलावा धर्मपाल सिंह, रामशंकर कठेरिया और दिनेश शर्मा भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड में शामिल थे, लेकिन केशव अपने काम और साफ छवि के कारण अमित शाह की पहली पसंद बने।
अब उनके सामने कई चुनौतियां हैं जिससे पार पाना उनके लिए आसान नहीं होगा।
यूपी बीजेपी लंबे समय से आपसी कलह से जूझ रही है। नेताओं की एक दूसरे की टांग खिंचाई पूरी तरह से सामने आ चुकी है। बीजेपी लंबे समय से यूपी में किसी दलित पर दांव लगाने के बारे में सोच रही थी ताकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में राज्य में मौजूद 20 प्रतिशत वोट पर दावा किया जा सके।
दलित वोटों पर अब तक बसपा का एकाधिकार रहा है। पीएम नरेन्द्र मोदी, प्रेसिडेंट अमित शाह पिछले कुछ महीनों से यूपी में दलित वोट साधने में लगे हुए थे। पीएम ने लखनऊ, वाराणसी में दलित वोट साधने की कोशिश की तो अमित शाह ने बलरामपुर, बहराइच में दलित वोट पर निशाना साधा।
जेएनयू प्रकरण पर भारत माता की जय नहीं बोलने को लेकर ओवैसी के बयान और देवबंद के फतवे के बाद बीजेपी अब ज्यादा आक्रामक हो गई है। खासकर भारत माता की जय मामले में पूरे देश से मिल रहे समर्थन से लगने लगा है कि विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे को आगे रखा जा सकता है।
यूपी बीजेपी के प्रभारी ओम माथुर भी कह चुके हैं कि भारत माता की जय मामले से कार्यकर्ताओं का ध्यान भटकना नहीं चाहिए।
इसके अलावा राम मंदिर का निर्माण ऐसा मुद्दा है जहां चुनाव में जाति की दीवार टूट जाती है। बीजेपी एक दो चुनावों में इसका फायदा उठा भी चुकी है। मंदिर निर्माण का मुद्दा जब परवान चढता है तो पूरा समाज दो हिस्सों में बंट जाता है। एक इसके पक्ष में और दूसरा विरोध में। इसे लेकर चुनाव में ध्रुवीकरण भी तेजी से होता है।
1991 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मंदिर आंदोलन का पूरा फायदा मिला था और कल्याण सिंह एक ताकतवर नेता के रूप में उभरे थे ।
अगले साल होने वाले चुनाव में बीजेपी एक बार फिर राष्ट्रवाद और मंदिर को लेकर दांव खेलेगी। इस दांव में केशव मौर्या पार्टी के सफल सेनापति साबित हो सकते हैं। केशव का बैक ग्राउंड भी मंदिर आंदोलन का ही है। हालांकि मंदिर आंदोलन के कई नेता बीजेपी में मौजूद हैं, लेकिन उनकी छवि पर कोई ना कोई धब्बा जरूर है।
केशव एकदम नया चेहरा है। हालांकि ये कौशाम्बी के सिराथू से 2012 में विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं। इसके अलावा केशव ने 2014 में लोकसभा चुनाव भी फुलपूर से जीता लेकिन राज्य की राजनीति में उनके नाम की चर्चा कभी नहीं हुई।
अध्यक्ष चुने जाने के बाद केशव दावा करते हैं कि बीजेपी 2017 के विधानसभा चुनाव में भी 2014 में हुए लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराएगी। बीजेपी जाति की राजनीति नहीं करती इसलिए चुनाव में जाति के आधार पर वोट नहीं मांगेगी और ना किसी जाति को साधने की कोशिश करेगी।
केन्द्र सरकार के काम और यूपी की सपा सरकार की नाकामी को पार्टी विधानसभा चुनाव में मुद्दा बनाएगी। केशव ने पिछले दो साल में अपने संसदीय क्षेत्र में ठीक-ठाक काम किया है। इसलिए इलाके में उनकी छवि अच्छी है। वो मानते हैं कि यूपी में बसपा या सपा का आधार जातिगत है।
विकास की जब बात होती है तो जातियां टूटती हैं। केशव को बीजेपी के भारी भरकम कार्यकर्ताओं और कुशल लीडरशिप पर पूरा भरोसा है। वो यूपी बीजेपी में गुटबाजी से इंकार करते हैं ।