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तो ऐसे बदल गई पश्चिम में जिन्ना-गन्ना की तस्वीर...क्योंकि 'अजगर' अभी जिन्दा है
मनोज द्विवेदी
गाजियाबाद: लोकसभा सीट पर 45 हजार से ज्यादा की लीड जीत ही मानी जाती है। नूरपुर विधानसभा सीट बीजेपी गवां चुकी है कैराना भी गवां देगी। ऐसे में ये सवाल उठता है, कि पीएम के इतने नजदीक जाकर रोड शो करने के बाद भी बीजेपी कैसे हारी। newtrack.com आपको बता रहा है इसके पीछे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 'अजगर' का जिन्दा होना है...
क्या है 'अजगर'?
'अजगर' यानी अहीर, जाट, गुर्जर, राजपूत की वह जुगलबंदी जिसके सहारे चौधरी चरण सिंह किसान राजनीति करते थे। अजित सिंह ने कई सालों तक उसकी फसल काटी। इस बार के चुनाव में जयंत चौधरी भी मुसलमानों के सहारे इस जुगलबंदी को जिंदा कर पाने में सफल रहे। जयंत को अब पार्टी के लोग 'छोटे चौधरी' बोलने लगे हैं। उन्होंने उपचुनाव में दिन-रात एक कर ये साबित कर दिया कि 2019 के लोकसभा में पश्चिम में यह समीकरण मुश्किल खड़ी करेगा। राजनैतिक पंडितों का कहना है कि आने वाले लोकसभा चुनाव का रण इस बार पूर्वांचल नहीं पश्चिमांचल होने जा रहा है।
जब अजगर ने बदली थी राजनीति
आजादी के बाद पूरी रफ्तार से दौड़ रहे कांग्रेस के रथ को पहली बार 1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह ने रोका था। उस दौरान कई पार्टियां टूटी थीं और कई बनी थीं। तब भारतीय क्रांति दल सोशलिस्ट पार्टी व अन्य विधायकों ने मिलकर प्रदेश में सरकार बनाई और चौधरी चरण सिंह मुख्यमंत्री बने। कुछ समय बाद पश्चिमी यूपी और पूर्वी यूपी के जातीय क्षत्रपों ने मिलकर 'भारतीय क्रांति दल' बनाया था। तब ये तक यह कहा जाने लगा था कि ये अजगर तो सबको निगल जाएगा।
रालोद की रणनीति
सूत्रों की मानें, तो लोकसभा का उपचुनाव रालोद को नई ऊर्जा देने वाला है। अब रालोद नेतृत्व पश्चिमी यूपी में जाटलैंड को दोबारा से खड़ा करना चाहता है। इसी के चलते आगामी लोकसभा चुनावों के लिए बागपत, मथुरा और कैराना को निशाना बनाया है। रालोद के सूत्रों की मानें, तो बागपत से जयंत चौधरी, मथुरा से जयंत की पत्नी चारू चौधरी और कैराना से खुद चौधरी अजित सिंह चुनाव लड़ सकते हैं। सपा नेता मनमोहन गामा ने बताया, कि पश्चिम में जयंत चौधरी और अन्य क्षेत्रों में अखिलेश, मायावती और राहुल गांधी मिलकर चुनाव लड़ेंगे और जीत दर्ज होगी।