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जाने भ्रष्टाचार के दलदल में कितना गहरे धंसे हैं सतीश बाबू

तत्कालीन सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने इसके बाद राकेश अस्थाना और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। सतीश सना को प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली से गिरफ्तार किया। सतीश बाबू हैदराबाद के उद्योगपति हैं। इनके बारे में बताया जाता है कि एक समय वह आंध्र प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के कर्मचारी थे। बाद में नौकरी छोड़कर उन्होंने कई कंपनियों में काम किया।

राम केवी
Published on: 27 July 2019 9:49 AM IST
जाने भ्रष्टाचार के दलदल में कितना गहरे धंसे हैं सतीश बाबू
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सतीश बाबू

नई दिल्ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने मोइन कुरैशी केस में सतीश बाबू सना को गिरफ्तार कर लिया है। सतीश बाबू सना ने सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर रहे राकेश अस्थाना पर पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगने का आरोप लगाया था।

तत्कालीन सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने इसके बाद राकेश अस्थाना और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। सतीश सना को प्रवर्तन निदेशालय ने दिल्ली से गिरफ्तार किया।

सतीश बाबू हैदराबाद के उद्योगपति हैं। इनके बारे में बताया जाता है कि एक समय वह आंध्र प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के कर्मचारी थे। बाद में नौकरी छोड़कर उन्होंने कई कंपनियों में काम किया।

सतीश बाबू को तमाम पार्टियों से जुड़े बड़े नेताओं का करीबी भी माना जाता है। 2015 में मांस निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ एक ईडी केस में सबसे पहले उनका नाम सामने आया था।

अस्थाना की टीम ने इस मामले की जांच की थी। राकेश अस्थाना ने हमेशा कहा कि सना सतीश बाबू मोइन कुरैशी के भ्रष्टाचार का हिस्सा थे।

ऐसा कहा जाता है कि हैदराबाद के व्यवसायी सतीश बाबू सना ने मोइन कुरैशी से 50 लाख रुपये की रिश्वत ली थी। यह रिश्वत मोइन कुरैशी के मामले को रफा दफा करने के लिए दी गई थी।

अलबत्ता सीबीआई ने 15 अक्टूबर को सना सतीश बाबू से कथित रूप से दो करोड़ रुपये रिश्वत लेने के आरोप में राकेश अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। यह मामला अभी अदालत में विचाराधीन है।

मनोज प्रसाद को मिल चुकी है जमानत

आरोप है कि मांस कारोबारी मोईन कुरैशी की ओर से यह रिश्वत दो बिचौलियों मनोज प्रसाद और सोमेश प्रसाद के जरिए दी गई। मनोज प्रसाद को भी 16 अक्टूबर 2018 को गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन नवंबर 2018 में कोर्ट से उसे जमानत मिल गई थी।

इसका एक मतलब यह भी है कि सीवीसी और पीएमओ के समक्ष राकेश अस्थाना द्वारा दायर सभी शिकायतें वास्तविक थीं और तत्कालीन डीसीबीआई आलोक वर्मा और भ्रष्टाचार निरोधक इकाई-3 उसे एक फर्जी भ्रष्टाचार मामले में फंसाना चाहते थे।



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राम केवी

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