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जिक्रे इलाही में डूबकर मुरादें मांगने की रात, आज है शब-ए-बरात
गोरखपुर: शब-ए-बरात यानी गुनाहों से छुटकारे की रात। यह मुबारक रात आज है। मान्यता है कि इसी रात में साल भर के होने वाले तमाम काम बांटे जाते हैं जैसे कौन पैदा होगा, कौन मरेगा, किसे कितनी रोजी मिलेगी आदि। इस दिन शहर की छोटी से लेकर बड़ी मस्जिदों, घरों में लोग इबादत करते हैं। खुदा से दुआं मांगते हैं। कब्रिस्तान में जाकर पूर्वजों की कब्रों पर फातिहा पढ़ उन्हें पुण्य भेजते हैंं। दरगाहों पर जियारत के लिए जाते हैं। पूर्वजों के नाम से गरीबों को खाना खिलाया जाता है।
इस दिन घरों में तमाम तरह का हलुआ (सूजी, चने की दाल आदि) व लजीज व्यंजन पकाया जाता है। देर रात तक लोग नफिल नमाज व तिलावत-ए-कुरान पाक कर अपना मुकद्दर संवारने की दुआ मांगते हैं। अगले दिन रोजा रखकर इबादत करते हैं। इस रात के ठीक 15 दिन बाद पवित्र रमजान माह आता है। एक तरह से रमजान के रोजों की तैयारी भी हो जाती है।
धार्मिक ग्रंथों की नजर में शब-ए-बरात
मदरसा दारुल उलूम हुसैनिया दीवान बाजार के सहायक अध्यापक मोहम्मद आजम ने किताबों के हवाले से बताया कि रसूले खुदा ने शाबान को अपना महीना करार दिया है। इसकी खास विशेषताएं हैं। शबान में अल्लाह तआला अपने बंदों को खैर व बरकत से ज्यादा नवाजता है। बंदों को भी लाजिम है कि वह कसरत से इबादत करें। हजरत आयशा रजि. फरमाती है रसूले खुदा इस माह ज्यादा रोजा रखा करते थे। इस महीने में गुनाहों की माफी होती हैं रब फरमाता है कि हमारे हुक्म से इस रात में हर हिक्मत वाला काम बांट दिया जाता है और उस काम के फरिश्तों को उन्हें पूरा करने पर लगा दिया जाता है।
इस रात में साल का हर पैदा होने वाला और हर मरने वाला आदमी लिखा जाता है। रब शब-ए-बरात में तमाम उम्मत पर बनी कल्ब की बकरियों के बालों के बराबर रहमतें नाजिल फरमाता है (बनी कल्ब अरब में एक कबीला था, उन के यहां बकरियां बहुत ज्यादा थीं) जो शख्स इस रात में सौ रकात नफिल नमाज पढ़ेगा रब उसेके पास सौ फरिश्ते भेजेगा। तीस जन्नत की खुशखबरी सुनाएंगे। तीस दोजख के अजाब से दूर रखेंगे। तीस दुनिया की परेशानियों से दूर रखेंगे। दस शैतान की मक्कारियों से बचाएंगे।
हजरत अली से रिवायत है कि हुजूर ने फरमाया शब-ए-बरात आए तो रात में नमाज पढ़ों और दिन में रोजा रखो। हुजूर ने फरमाया कि अल्लाह इस रात सूरज डूबते समय आसमान से दुनिया की तरफ खास तवज्जो करता है और फरमाता है कि क्या है कोई मोक्ष चाहने वाला कि मैं उसे मोक्ष प्रदान करूं। क्या है कोई रोजी मांगने वाल कि मैं उस को रोजी दूं। क्या है कोई गिरफ्तारे बला कि मैं उसे राहत दूं। इस किस्म की आवाज सुबह तक आती रहती है।
यह करना चाहिए
मुफ्ती अख्तर हुसैन ने बताया कि इस मुबारक रात में गुस्ल करना, अच्छे कपड़े पहनना वास्ते इबादत के सुरमा लगाना, मिस्वाक करना, इत्र लगाना, कब्रों व वलियों के मजारों की जियारत करना, फातिहा दिलाना, खैरात करना, मुर्दों के मोक्ष की दुआ करना, बीमार का हाल चाल जानना, तहज्जुद की नमाज पढ़ना, नफील नमाजें ज्यादा पढ़ना, दरूद व सलाम की कसरत करना, सूरः यासीन शरीफ की तिलावत करना, नेक काम ज्यादा करना, इबादत में सुस्ती न करना बेहतर है।
यह नहीं करना चाहिए
मुफ्ती अजहर शम्सी ने बताया कि इस मुबारक रात की कद्र न करना, इबादत में सुस्ती व काहिली करना, सिनेमा देखना, चाय खानों में रात गुजार देना, आतिशबाजी खुद जलाना या बच्चों को इसकी आदत डालना, रात फिजूल काम और गपशप में गुजार देना, बुरे काम करना, लोगों को सताना, गीबत और चुगली में वक्त बर्बाद करना, रात तमाम सोते रहना वगैरह ये तमाम बातें खुदा और उसके रसूल को नाराज करती हैं। इससे सख्ती से बचना चाहिए।
नवाफिल शब-ए- बरात
1. मगिरब की नमाज के बाद गुस्ल करके दो रकात नमाज तहियतुल वुजू पढ़ें इसके बाद आठ रकात नमाज नफिल चार सलाम से अदा करें। हर रकात में बाद अलहम्द के सूरः इख्लास पांच बार पढ़ें तो गुनाहों से पाक होगा। दुआयें कुबूल होंगी और सवाबे अजीम हासिल होगा।
2. चार रकात नफिल एक सलाम से पढ़ें। हर रकात में बाद अलहम्द के सूर इख्लास पचास बार पढ़ें तो इस तरह गुनाहों से बंदा दूर हो जाएगा।
3. दो रकात नमाज पढ़ें। हर रकात में बाद अलहम्द के आयतल कुर्सी एक बार और सूर इख्लास पन्द्रह बार, बाद सलाम के दरूद शरीफ एक सौ बार पढे़ तो रिज्क में तरक्की होगी। गम निजात मिलेगी। गुनाहों की माफी होगी।
4. चौदह रकात नमाज नफिल सात सलाम सेअदा करें। हर रकात में बाद अलहम्द के जो सूर चाहे पढ़ें। नमाज के बाद एक सौ मर्तबा दरूद शरीफ पढ़ कर जो भी दुआ मांगे कुबूल होगी।
5. दस्तूर है कि इस रात को सलातुल तस्बीह कसरत से अदा करते हैं लोग। रसूल-ए-खुदा ने ये नमाज अपने चचा हजरत अब्बास को सिखायी थी और फरमाया था कि ऐ चचा! इस नमाज के पढ़ने से अगले पिछले तमाम गुनाह बख्श दिए जाते हैं इस रात में तीन मर्तबा सूर यासीन की तिलावत
करनी चाहिए।