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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive : गोमती रिवर फ्रंट.. कहां गई CBI जांच की सिफारिश
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ। गोमती रिवर फ्रंट की सीबीआई जांच की सिफारिश की फाइल कहीं गुम हो गयी सी लगती है। सीबीआई जांच रोकने के लिए सत्ता के गलियारों में इतनी जबर्दस्त लॉबिंग चल रही है, कि मामला जस का तस पड़ा है। योगी सरकार के सत्ता में आते ही अखिलेश सरकार के जिन कामों को लेकर जांच शुरू हुई उनमें गोमती रिवर फ्रंट का मामला प्रमुख था। इस मामले के दोषियों पर कार्रवाई के लिए नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अगुवाई में गठित कमेटी ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की थी मगर इतने महत्वपूर्ण मामले में योगी सरकार अभी तक एक कदम आगे नहीं बढ़ा पाई है।
इस मामले में आठ अभियंताओं के खिलाफ तो एफआईआर दर्ज हो चुकी है मगर जिम्मेदारी तय किए जाने के बावजूद अफसरों पर कार्रवाई नहीं हुई। अफसर खुद को जांच के दायरे से बाहर रखने के लिए जोड़तोड़ में जुटे हैं। इसे लेकर सत्ता के शीर्ष स्तर पर उठापटक जारी है। सबसे मजे की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश का एक-दूसरे से छत्तीस का आंकड़ा है। फिर भी अखिलेश के इस ड्रीम प्रोजक्ट की सीबीआई जांच की सिफारिश की फाइल क्यों दबी पड़ी है,यह सबको हैरान करने वाला मामला है। इस मामले सूबे के वरिष्ठ अफसर कुछ भी बोलने से कतरा रहे हैं।
दोहरी भूमिका में थे राहुल भटनागर
गोमती रिवर फ्रंट योजना के शुरुआती समय से ही तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन अनुश्रवण समिति के अध्यक्ष थे। जबकि अभी हाल ही में मुख्य सचिव की कुर्सी से हटाए गए राहुल भटनागर इसमें दोहरी भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने बतौर प्रमुख सचिव वित्त, व्यय वित्त समिति के अध्यक्ष की हैसियत से परियोजना की धनराशि स्वीकृत की और परियोजना की धनराशि पर अनुमोदन दिया। फिर वह अखिलेश सरकार में ही 13 सितम्बर 2016 को मुख्य सचिव भी बने। वहीं दीपक सिंघल पूरी परियोजना के दौरान प्रमुख सचिव (सिंचाई) के पद पर थे।
इस मामले की सीबीआई जांच रोकने के लिए जबर्दस्त लॉबिंग हो रही है। मालूम हो कि अखिलेश सरकार में शिवपाल सिंह के पास ही लोकनिर्माण विभाग व सिंचाई विभाग का दायित्व था। रिवर फ्रंट परियोजना अखिलेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में एक थी।
पैरवी में जुटे हैं अभियंता
अनियमितताओं के आरोप में जिन अभियंताओं पर एफआईआर दर्ज हुई है। वह खुद को बचाने के लिए आला-अफसरों की पैरवी में लगे हैं। इसी सिलसिले में आरोपियों ने मुख्य सचिव राजीव कुमार से भेंट कर अपनी सफाई पेश की। यही नहीं, आरोपियों ने मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसपी गोयल तक भी अपनी बात पहुंचायी है। परियोजना की शुरूआती पड़ताल में कहा गया था कि 95 फीसदी धन खर्च होने पर भी सिर्फ 60 फीसदी ही काम पूरा हो पाया है। आरोपी इसी जांच रिपोर्ट पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि मौके पर जाकर देखा जाए तो 95 फीसदी काम पूरा हो चुका है। यह कहना गलत है कि काम सिर्फ 60 फीसदी ही हुआ है।
परियोजना की मानीटरिंग के लिए गठित टास्क फोर्स की समीक्षा बैठक होती थी। यदि परियोजना के कामों में गड़बड़ी है तो इसके लिए सिर्फ वही नहीं बल्कि शीर्ष स्तर के अफसर भी जिम्मेदार हैं जो अनुश्रवण समिति की बैठक में शामिल थे। आला अफसरों के सामने पेश की जा रही उनकी यही सफाई आईएएस अफसरों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही हैं। देखा जाए तो खन्ना कमेटी की रिपोर्ट में भी यही सिफारिश की गयी है। उसमें कहा गया है कि अनुश्रवण समिति की शिथिलता पर जिम्मेदारों के खिलाफ भी विभागीय कार्रवाई की जाए। यदि इस पर अमल हुआ तो समिति में शामिल अफसरों पर भी शिकंजा कस सकता है।
आरोपी इंजीनियर अपनी जो सफाई पेश कर रहे हैं, वह यही संकेत देता है। बता दें कि खन्ना कमेटी की रिपोर्ट में वित्तीय गड़बडिय़ों में शामिल इंजीनियरों पर कानूनी कार्रवाई, आपराधिक मामलों की सीबीआई जांच और कम से कम धनराशि में परियोजना पूरी करने की सिफारिश भी की गयी है।
टास्क फोर्स का यूं हुआ था गठन
रिवर फ्रंट के कामों के प्रगति की समीक्षा के लिए अखिलेश सरकार में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें तत्कालीन मुख्य सचिव, तत्कालीन प्रमुख सचिव व सचिव सिंचाई, प्रमुख सचिव नगर विकास, प्रमुख सचिव आवास एवं शहरी नियोजन, तत्कालीन मंडलायुक्त लखनऊ, जिलाधिकारी लखनऊ, सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता, मुख्य अभियंता शारदा सहायक और प्रबंध निदेशक जल निगम शामिल थे।
इन पर दर्ज हुई है एफआईआर
योगी सरकार ने सत्ता में आने के बाद गोमती रिवर फ्रंट की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया। जांच में चिन्हित दोषियों पर कारवाई की सिफारिश के लिए सरकार ने नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की अगुवाई में फिर एक कमेटी गठित की और अंतत: खन्ना कमेटी की सिफारिशों के आधार पर सिंचाई विभाग के आठ अभियंताओं के खिलाफ गोमतीनगर थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम व अन्य संगीन धाराओं में एफआईआर दर्ज करायी गई।
इनमें तत्कालीन मुख्य अभियंता, गुलेश चन्द्र (रिटायर), मुख्य अभियंता एसएन शर्मा, मुख्य अभियंता काजिम अली, तत्कालीन अधीक्षण अभियंता, शिवमंगल यादव (रिटायर), अधीक्षण अभियंता अखिल रमन, अधीक्षण अभियंता कमलेश्वर सिंह, तत्कालीन अधिशासी /अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव (रिटायर) और अधिशासी अभियंता सुरेन्द्र यादव शामिल हैं।
योगी के सवालों का जवाब नहीं दे पाए थे अफसर
बताते चलें कि पूर्व सिंचाई एवं जल संसाधन मंत्री शिवपाल सिंह यादव और प्रमुख सचिव, सिंचाई दीपक सिंघल ने रिवर फ्रंट प्रोजेक्ट के सिलसिले में जापान का दौरा किया था। टोक्यो और ओसाका जैसे शहरों में बने रिवर फ्रंट का अध्ययन किया। दोनों ने कई देशों के रिवर फ्रंट के बारे में जानकारी ली। इसके बाद गोमती नदी के तट पर विश्वस्तरीय रिवर फ्रंट बनाने के निर्देश दिए गए।
उसके तुरंत बाद प्रोजेक्ट को दो महीने में तैयार कर कैबिनेट से पास भी करा लिया गया और बजट के तौर पर 656 करोड़ रुपये आवंटित हुए। इस तरह फरवरी 2014 में गोमती तटबंध परियोजना का खाका खींचा गया। मार्च 2014 में कुडिय़ाघाट के पास नदी का पानी रोकने के लिए अस्थायी डैम बनाया गया। पांच जनवरी 2015 को बैराज का गेट खोलकर परियोजना की नींव रखी गई। फिर तलहटी से काम शुरू हुआ।
मार्च 2015 में नदी के दोनों तरफ डायफ्राम बनाने के लिए गैमन इंडिया कंपनी से अनुबंध किया गया। 2014 में परियोजना की लागत 656 करोड़ थी जो 2016 तक पुनरीक्षित होकर 1513 करोड़ हो गई। इसके बावजूद अभी तक ढेरों काम अधूरे हैं। वर्तमान में इसकी पुनरीक्षित लागत 2448 करोड़ बताई गई है। देखा जाए तो रबर डैम का काम पूरा नहीं हो पाया है। वाटर वाल, लेजर लाइट, सीवेज ट्रंक लाइन, साइकिल ट्रैक, जागिंग ट्रैक और अंडरपास का काम अब तक अधूरा है। इसके अलावा स्टेडियम व अन्य संबंधित काम भी पूरे नहीं हो पाए हैं।
रिवर फ्रंट योजना में मिट्टी का कितनी मात्रा में काम हुआ। इसके मद में कितना भुगतान किया गया है, इसकी किसी को कोई जानकारी नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी रिवर फ्रंट निरीक्षण के दौरान यह सवाल पूछे थे, पर अफसरों के पास इसका कोई जवाब नहीं था। विभागीय इंजीनियरों का कहना है कि नदी से जो मिट्टी निकाली गई। वह किनारों पर लाकर भरी गई।
रिवर फ्रंट में होने थे यह काम
रिवर फ्रंट योजना में गोमती नदी के दोनों तटों पर हाॄडग पुल से लामाॢटनियर स्कूल तक सौंदर्यीकरण का काम होना था। यहंा 300 कारों की पाॄकग, प्लाजा, मनोरंजन का स्थान, म्यूजिकल फाउंटेन, एम्फी थियेटर, स्टेडियम, फ्लोटिंग फाउंटेन, रबर डैम, वाङ्क्षकग ट्रैक, साइकिल ट्रैक, जागिंग ट्रैक व ग्रीनरी का प्रावधान था। इसके अलावा नदी के दोनों किनारों पर बेंच लगाने की भी योजना थी। दो मंदिरों का नदी से बचाव का काम होना था। पुलिस चेक पोस्ट का निर्माण भी प्रस्तावित है।