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अपना भारत/न्यूज़ट्रैक Exclusive : पुराने ढर्रे पर जल निगम चहेतों को बांटे ठेके!
राजकुमार उपाध्याय
लखनऊ: योगी सरकार के सत्ता में आने के बाद भी जल निगम के इंजीनियरों की कार्य संस्कृति नहीं बदली है। हाल ही में मेरठ, बड़ौत, खुर्जा में जल आपूर्ति से जुड़े ठेकों के आवंटन में यह झलका भी। ठेकों में फर्जी दस्तावेजों के सहारे कागजी खानापूॢत करने वाली फर्मों को तरजीह मिली है।
जब निगम में यह खबर फैली तो इंजीनियरों ने रातों-रात दस्तावेजों में हेराफेरी कर दी। यह निविदाएं अखिलेश यादव के शासनकाल में प्रकाशित हुयी थीं। सरकार बदली तो योगी सरकार ने ठेकों में ई-टेंडरिंग की व्यवस्था लागू कर दी। लेकिन ताजा प्रकरण में जिम्मेदारों ने इसका लिहाज नहीं रखा बल्कि पहले की कार्य संस्कृति को ही बरकरार रखा।
दरअसल, केंद्र सरकार की ‘अमृत’ योजना के तहत मेरठ, बागपत के बड़ौत और बुलंदशहर के खुर्जा में करोड़ों रुपये के ‘स्काडा’ प्रोजेक्ट का काम प्रस्तावित है। इसके लिए पैसा केंद्र सरकार से मिलता है। पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में जल निगम ने इस प्रोजेक्ट के तहत होने वाले कामों के लिये निविदाएं आमंत्रित की थीं। इसी बीच विधानसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो गईं। इसकी वजह से टेंडर खुलने की तिथियां आगे बढ़ीं।
जब योगी सरकार सत्तारूढ़ हुई तो टेंडर की प्रक्रिया फिर शुरू हुई। पर इंजीनियर यह भूल गए कि यह निविदाएं अखिलेश सरकार में मांगी गयी थीं, जबकि अब ई-टेंडरिंग व्यवस्था लागू हो चुकी है। बताया जा रहा है कि उस समय अफसरों को सत्ता के बड़े ओहदों पर बैठे जिम्मेदारों से अपनी सेटिंग पर भरोसा था। यही कारण है उस समय टेंडर डालने में जरूरी नियमों को ख्याल नहीं रखा गया और जब योगी सरकार में वही निविदाएं खुलीं तो मामला सामने आ गया। अधिकारी अचरज में हैं लेकिन इंजीनियर रेवडिय़ों की तरह अपने चहेते ठेकेदारों को काम बांट रहे हैं।
खुर्जा: सबसे कम दर पर खुला टेंडर
खुर्जा में आठ नवम्बर 2016 को अमृत योजना के तहत पानी सप्लाई के जुड़े कामों की करीब डेढ़ करोड़ रुपये कीमत की निविदा प्रकाशित हुयी थी। पिछले महीने उसका टेंडर खुला। जिस कम्पनी के टेंडर की दरें सबसे कम थी उसे काम देने की तैयारी थी। इसके बावजूद राजधानी में बैठे जिम्मेदारों ने उस कम्पनी का टेंडर निरस्त कर दिया।
बड़ौत: रातों-रात बदले गए दस्तावेज
बड़ौत में भी पिछले साल ‘अमृत’ योजना के तहत ट्यूबवेल ऑटोमेशन से जुड़े करीब 2.5 करोड़ रुपये के काम की निविदा आमंत्रित की गयी थी। यहां भी इंजीनियरों ने खेल खेला। विभागीय जानकारों के मुताबिक ऐसी फर्म को काम देने पर मुहर लगा दी जो टेक्निकल बिड क्वालिफाई नहीं कर रहा था। उस फर्म का अनुभव प्रमाण पत्र भी उपयुक्त नहीं पाया गया। सूत्रों का कहना है कि आनन-फानन में उसके कागजात बदलवाए गए।
मेरठ: बैंक गारंटी में हेरा-फेरी
विभागीय जानकारों के अनुसार मेरठ में इसी तरह के काम के लिए एक फर्म की तरफ से दी गयी बैंक गारंटी में ही हेराफेरी की गयी। इंजीनियरों ने इसकी जगह सिर्फ चार्टर्ड एकाउंटेंट के पत्र को ही गारंटी मान लिया और फर्म को टेंडर के लिए योग्य करार दिया। जबकि शर्तों के मुताबिक राष्ट्रीय बैंक की गारंटी मांगी गयी थी। अब इसको दरकिनार करते हुए करोड़ों के काम उसी फर्म को देने की तैयारी है।
क्या है ‘अमृत’ योजना?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अमृत योजना की शुरूआत जून 2015 में की थी। इसका उद्देश्य देश के सभी शहरों में पानी की जलापूॢत और सीवेज कनेक्शन प्रदान करना है। वित्तीय वर्ष 2015 से पांच वर्ष के लिए अमृत योजना पर 5000 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य रखा गया है।
1975 में हुआ जल निगम का गठन
सरकार ने 1975 में उत्तर प्रदेश जल निगम का गठन किया था। उत्तर प्रदेश जल आपूॢत एण्ड सीवरेज अधिनियम, 1975 के तहत इस निगम ने छावनी क्षेत्रों के अतिरिक्त पूरे प्रदेश में अपने कार्य क्षेत्र को विस्तृत रूप प्रदान किया। इसका मूल उदेश्य जलापूॢत एवं सीवरेज सुविधाओं का विकास और इनसे सम्बन्धित प्रकरणों को नियंत्रित करना है।
क्या है ‘स्काडा’
‘स्काडा’ यानी ‘एससीएडी’ (पर्यवेक्षी नियंत्रण और डेटा अधिग्रहण) का प्रयोग पानी और अपशिष्ट नियंत्रण की योजनाओं में किया जाता है। सॉफ्टवेयर प्रोग्राम के जरिए जलापूॢत और सीवेज की प्रक्रिया पर नजर रखी जाती है। आधुनिक उपकरणों के द्वारा दूर से ही वास्तविक समय में जल या सीवेज से संबंधित डाटा एक जगह इकट्ठा किया जाता है और इसे नियंत्रित किया जाता है। इसका इस्तेमाल बिजली संयंत्रों, तेल-गैस शोधन के कामों में भी किया जाता है।
सभी काम नियम से किए जा रहे हैं: अधीक्षण अभियंता
अधीक्षण अभियंता पीसी गुप्ता बताते हैं कि खुर्जा के टेंडर में जिस कम्पनी की दरें सबसे कम पायी गयी हंै उसमें कुछ तकनीकी खामियां हैं। उसके कागजात की लखनऊ (मुख्यालय)में जांच हुयी तो यह खामी सामने आयी। एकाउंट सेक्शन ने कहा है कि इनको टेंडर नहीं दिया जा सकता है। हमारे सभी काम नियम से किए जा रहे हैं।
मुख्य अभियंता ने खड़े कर लिए हाथ
मुख्य अभियंता सीडीएस यादव ने प्रकरण की जानकारी के बाद अपने हाथ खड़े कर लिए। उन्होंने कहा कि यह उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर है। संबंधित जोन में बात करिए।
कागज देखने के बाद कुछ कह पाऊंगा: प्रबंध निदेशक
जल निगम के प्रबंध निदेशक इंजीनियर वाई. के. जैन कहते हैं कि जब तक पूरे कागज नहीं देखूंगा, कुछ नहीं कह पाऊंगा। ई-टेंडरिंग व्यवस्था लागू करने के लिए तीन महीने का समय है। जिस तरह जीएसटी स्विच ओवर हो रहा है। उसी तरह धीरे-धीरे ई-टेंडरिंग भी प्रभावी हो रही है। टेंडर का इवोल्यूशन नियमानुसार ही होगा। अगर कागज पूरे नहीं होंगे तो कोई फर्म टेंडर के लिए क्वालिफाई नहीं कर पाएगी।