×

अपना भारत-न्यूजट्रैक खास सर्वे: जोखिम भरे दांव

raghvendra
Published on: 21 Sept 2018 12:40 PM IST
अपना भारत-न्यूजट्रैक खास सर्वे: जोखिम भरे दांव
X

योगेश मिश्र

लखनऊ: आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सत्तारूढ़ भाजपा अपनी रीतियों और नीतियों में फेरबदल कर रही है। भाजपा ने खुद को पिछड़ों की पार्टी साबित करने व एससी-एसटी एक्ट में बदलाव करने सरीखे कई अहम फैसले लिए हैं जिसे लेकर खासी चर्चा है। लोकसभा चुनाव में ये मुद्दे भाजपा को कितना नफा-नुकसान पहुंचाएंगे, इस बाबत न्यूजट्रैक/अपना भारत की टीम ने लगभग बीस जिलों में बीस हजार लोगों से बातचीत की। इसमें हर आयु वर्ग के लोगों के साथ ही साथ समाज के हर तबके के लोगों को रखा गया।

तीस फीसदी लोगों ने रायशुमारी में कहा कि एससी-एसटी एक्ट में बदलाव से भाजपा को फायदा होगा जबकि सत्तर फीसदी लोग नुकसान की बात कहते हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश में भले ही खुद को पिछड़ों की पार्टी साबित करने में जुटी हो, लेकिन दस फीसदी लोग ही यह मानने को तैयार हैं कि भाजपा पिछड़ों की पार्टी है। जबकि 90 फीसदी लोग यह नहीं मानते। बीस फीसदी लोग ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ओबीसी लीडर मानते हैं जबकि 80 फीसदी लोगों के लिहाज से मोदी हिन्दू लीडर हैं। यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी का बोहरा समाज के सैयदना के जलसे में शरीक होने से भाजपा को फायदा होने की बात सिर्फ पांच फीसदी लोग मानते हैं जबकि 95 फीसदी लोगों का मानना है कि इससे भाजपा को कोई फायदा नहीं होने वाला। 70 फीसदी लोग यह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलित भाजपा को वोट नहीं करेगा, 25 फीसदी लोगों का मानना है कि एससी-एसटी एक्ट के बाद दलितों का रुझान भाजपा की तरफ बढ़ा है।

एससी-एसटी एक्ट को लेकर नाराजगी

सर्वे में यह बात भी उभरकर सामने आई कि एससी-एसटी एक्ट को लेकर ओबीसी और सवर्णों में नाराजगी है। उनकी नाराजगी दूर करने के लिए भारतीय जनता पार्टी को कुछ न कुछ करना होगा। 85 फीसदी लोगों का यह मानना था कि इस एक्ट में दुरुपयोग करने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए था जबकि 15 फीसदी लोगों की यह राय थी कि इस एक्ट में भाजपा द्वारा किया गया संशोधन गलत है। सत्तर फीसदी लोग यह मान रहे थे कि भाजपा को लोकसभा चुनाव में कमजोर विपक्ष का बड़ा लाभ मिलेगा।

यूपी में गठबंधन भाजपा पर पड़ेगा भारी

63 फीसदी लोगों ने यह कहा कि उत्तर प्रदेश में गठबंधन की स्थिति में भाजपा के लिए अच्छा प्रदर्शन कर पाना बेहद मुश्किल होगा जबकि 30 फीसदी लोग गठबंधन के बाद भी भाजपा के बेहतर प्रदर्शन की बात करते दिखे। सात फीसदी लोगों ने इस सवाल पर चुप्पी तोडऩा उचित नहीं समझा। 53 फीसदी लोगों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में महागठबंधन संभव नहीं है। 93 फीसद लोग इसके लिए मायावती को जिम्मेदार मानते हैं। 81 फीसदी लोगों का यह मानना था कि कांग्रेस के बिना महागठबंधन की कोई स्थिति नहीं बनती है। शिवपाल सिंह यादव समाजवादी पार्टी के जनाधार में सेंध लगाने में कामयाब होंगे, यह 76 फीसदी लोगों का मानना था।

गठबंधन को हो सकता है नाराजगी का फायदा

इस सर्वे में पूर्वांचल, बुंदेलखंड, रुहेलखंड, अवध, ब्रज, काशी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कम से कम दो-दो जिलों को शामिल किया गया है। सर्वे में युवाओं और महिलाओं को खासी तरजीह दी गई है। सर्वे के मुताबिक अभी भी नरेन्द्र मोदी का कद विपक्ष के किसी भी नेता से काफी बड़ा है। गठबंधन के लिए अखिलेश यादव के स्टैंड और पहल की अधिसंख्य लोगों ने तारीफ की है। 63 फीसदी लोगों का मानना है कि विपक्ष को बिना गठबंधन के मैदान में उतरना ही नहीं चाहिए। सर्वे में यह बात उभरकर सामने आई कि अगर गठबंधन हो जाता है तो लोगों की सत्तारूढ़ दल से नाराजगी का बड़ा फायदा गठबंधन को मिल सकता है।

शिवपाल सिंह यादव अगले लोकसभा चुनाव में एक महत्वपूर्ण फैक्टर होंगे, यह भी अधिकांश लोगों का मानना है। लेकिन शिवपाल और अखिलेश की लड़ाई में जीत-हार इन दोनों पहलवानों की जगह मुलायम सिंह यादव तय करेंगे। 87 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता गठबंधन की उम्मीद लगाए बैठे हैं। इन पर प्रधानमंत्री मोदी का सैयदाना के जलसे में जाने का कोई असर नहीं है। हालांकि 23 फीसदी मुस्लिम महिलाएं भाजपा के पक्ष में दिखीं। यह बात कहने वाली महिलाओं की उम्र 25 से 45 के बीच मिली।

अखर रही है राममंदिर पर चुप्पी

तीन तलाक पर केंद्र के फैसले को महिलाएं जहां अपने पक्ष में मान रही हैं वहीं इसे शरीयत पर हमले के रूप में प्रचारित करके भाजपा से मोहभंग का अभियान भी रंग ला रहा है। राम मंदिर के सवाल पर भाजपा की चुप्पी 86 फीसदी लोगों को अखर रही है। 14 फीसदी लोग इस मुद्दे पर भाजपा की दूरी के प्रशंसक हैं।



raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story