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UP सरकार ने पेश किया UPCOCA बिल, बताया जा रहा 'काला कानून'

aman
By aman
Published on: 20 Dec 2017 11:15 AM GMT
UP सरकार ने पेश किया UPCOCA बिल, बताया जा रहा काला कानून
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UPCOCA: विधानसभा में बोले CM- आपका विरोध, अपराधियों का समर्थन

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा में संगठित अपराध पर नकेल कसने के लिए राज्य में उत्तर प्रदेश कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम ऐक्ट (यूपीकोका) के रूप में सख्त कानून लाने का बिल बुधवार (20 दिसंबर) को पेश किया गया। इस बिल में अंडरवर्ल्ड, जबरन वसूली, जमीनों पर कब्जा, तस्करी जैसे बड़े अपराधों के अलावा वेश्यावृत्ति, अपहरण, फिरौती, धमकी जैसे हल्के अपराधों को भी शामिल किया गया है। हालांकि, इसे काला कानून बताते हुए इसका विरोध भी शुरू हो गया है।

महाराष्ट्र के बाद यूपी दूसरा ऐसा राज्य है, जो इतना सख्त कानून लागू करने जा रहा है। हालांकि, पहले बसपा सुप्रीमो मायवाती अपने कार्यकाल में ऐसा कानून लाने की कोशिश कर चुकी हैं, लेकिन उन्हें विरोध के बाद इसे वापस लेने पर मजबूर होना पड़ा था। इस बिल का विरोध करने वाली समाजवादी पार्टी उस वक्त भी विपक्ष में थी और आज भी है। योगी सरकार की ओर से लाए जा रहे इस बिल का भी अब विरोध शुरू हो गया है।

सख्त कानून आया है तो उसका विरोध क्यों?

उत्तर प्रदेश के शीतकालीन सत्र में पेश यूपीकोका विधेयक को लेकर जहां विपक्ष हमलावर है, वहीं इसका विरोध कर रहे विपक्ष पर सरकार ने अपराधियों के संरक्षक होने की तोहमत जड़ दी है। उत्तर प्रदेश सरकार के बिजली मंत्री और सरकार के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने कहा, कि 'विपक्ष आए दिन योगी सरकार में कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाता है। उत्तर प्रदेश की विधानसभा को हर दिन बाधित करता है। ऐसे में अगर संगठित अपराध से निपटने के लिए कोई सख्त कानून आया है तो उसका विरोध क्यों।' उन्होंने बताया, कि विपक्ष इस कानून का विरोध क्यों कर रहा है।

विपक्ष व्यवस्था का मुद्दा उठाना बंद कर समर्थन दे

उन्होंने आरोप लगाया, कि दरअसल इस कानून का विरोध करने वाले अपराधियों को संरक्षण देते रहे हैं और सत्ता में बाहर रहकर भी यूपीकोका का विरोध कर अपराधियों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं। श्रीकांत शर्मा ने आगे कहा, कि 'या तो विपक्ष कानून व्यवस्था का मुद्दा उठाना बंद कर दे या फिर यूपीकोका का समर्थन करें।

..तो इसलिए पड़ी कड़े कानून की जरूरत

वहीं, इस मुद्दे पर सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने कहा, कि 'अब तक के कानून यूपी के अपराधियों से निपटने में सक्षम नहीं रहे क्योंकि सरकार में पिछले 15 साल से रहे लोगों ने अपराधियों का समर्थन किया, इसलिए ही यह कड़ा कानून लाने की जरूरत पड़ी।'

सपा ने उठाया मंशा पर सवाल

समाजवादी पार्टी समेत दूसरे दलों ने योगी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। मुस्लिमों की पैरोकारी करने वाले संगठन भी इसकी मुखालफत में खड़े हैं। आरोप लगाया जा रहा है, कि एक खास समुदाय के खिलाफ ये कानून लाया जा रहा है।

6 महीने से पहले नहीं मिल पाएगी ज़मानत

यूपीकोका के तहत संगठित रूप में होने वाले अपराध को निशाना बनाया जाएगा। इस कानून के तहत गिरफ़्तार व्यक्ति को 6 महीने से पहले ज़मानत नहीं मिल सकेगी। आरोपी की पुलिस रिमांड 30 दिनों के लिए ली जा सकती है, जबकि बाकी क़ानूनों के तहत 15 दिन की रिमांड ही मिलती है। इसमें अपराधी को पांच साल की सजा और अधिकतम फांसी की सजा का प्रावधान होगा।

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क्या मुस्लिमों के खिलाफ है कानून?

यूपी में कानून का राज कायम करने के नारे के साथ सत्ता में आई योगी सरकार यूपीकोका को अपराध के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बता रही है। लेकिन विरोधी इसे मुस्लिमों को टारगेट करने वाला बता रहे हैं। साल 2007 में मायावती के नेतृत्व में बसपा सरकार आने के बाद ऐसा ही एक कानून लाया गया था। उसी दौरान आजमगढ़ और अन्य इलाकों में आतंकवाद से जुड़े संदिग्धों की गिरफ्तारियां हुईं। इन गिरफ्तारियों का असर ये हुआ कि मायावती सरकार के कानून का कड़ा विरोध किया गया। उस वक्त सपा विपक्ष में थी। सपा ने आतंकवाद के नाम पर बेकसूर मुस्लिम नौजवानों की गिरफ्तारी का आरोप लगाया, लिहाजा मायावती को कानून वापस लेना पड़ा।

मौजूदा कानून को लेकर भी इस तरह की आशंकाएं जताई जा रही हैं। आतंकवाद के नाम पर बेकसूर मुस्लिमों को कानून के शिकंजे से बचाने का काम करने वाले 'रिहाई मंच' ने योगी सरकार के प्रस्तावित कानून को सांप्रदायिक राजनीतिक का पर्याय बताया। कहा, कि इसका इस्तेमाल मुस्लिमों के खिलाफ किया जाएगा। मायावती सरकार ने जब ये कानून वापस लिया तब यूपी के पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह थे। उनका कहना है कि उस वक्त इस कानून का दुरुपयोग देखा गया, जिसके बाद उसे वापस लेने का निर्णय लिया गया।

पहले से ही कानून मौजूद हैं

पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा, कि 'अपराध खत्म करने के लिए पहले से ही कानून मौजूद हैं। ऐसे में यूपीकोका लाने की आवश्यता नहीं थी, क्योंकि इसका गलत इस्तेमाल होने की आशंका बनी रहेगी। उनका मानना है कि आतंक और राष्ट्रविरोधी अपराधों के लिए ऐसे कानून लाए जा सकते हैं, लेकिन जमीन विवाद या रंगदारी जैसे अपराध पर मौजूदा कानून से ही लगाम लगाई जा सकती है।' हालांकि, उन्होंने ये भी कहा कि मौजूदा कानून के तहत वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की सिफारिश के बाद ही केस दर्ज किए जा सकेंगे, जो इसे सही मायनों में प्रभावी रूप से लागू कराने में अहम साबित होगा।

प्रस्तावित मसौदे से भी कानून के दुरुयोग की आशंका

प्रस्तावित कानून के मसौदे से भी कानून के दुरुयोग की आशंका जाहिर होती है। नए कानून में इस बात के लिए भी नियम बनाए गए हैं कि उसका गलत इस्तेमाल न हो सके। केस दर्ज होने और जांच के लिए नियम बनाए गए हैं, जिसके तहत राज्य स्तर पर ऐसे मामलों की मॉनिटरिंग खुद गृह सचिव करेंगे और मंडल के स्तर पर आईजी रैंक के अधिकारी की संस्तुति के बाद ही मामला दर्ज किया जाएगा। जिला स्तर पर अगर कोई संगठित अपराध करने वाला अपराधी है तो उसकी रिपोर्ट कमिश्नर, जिलाधिकारी देंगे जिसके बाद फ़ैसला किया जाएगा कि आरोपी के ख़िलाफ़ यूपीकोका कानून लगे या नहीं।

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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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