अनुराग शुक्ला
लखनऊ। 19 साल में तीन दलों की सरकार, कई तरह के राजनीतिक प्रयोग, सात मुख्यमंत्री, चार औद्योगिक नीतियां मगर देश में होने वाले कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का 0.02 फीसदी ही उत्तर प्रदेश में आ रहा है।
ये डेढ़ लाइनें ही उत्तर प्रदेश में निवेश और औद्योगिक नीति की कुल जमा कहानी बयां कर रही हैं। यह स्थिति तब है जब देश को एक के बाद एक प्रधानमंत्री देने वाले, देश के सबसे ज्यादा आबादी और सबसे बड़े बाजार होने का गौरव उत्तर प्रदेश को हासिल है। 2004-05 के आधार मूल्यों को अगर संदर्भ माना जाए तो नीति आयोग की रिपोर्ट है कि साल 2013-14 में उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास की दर 1.95 थी वहीं साल 2014-15 में यह दर घटकर 1.93 पर आ गयी। यह वही समय है जब अखिलेश यादव अपनी सरकार में निवेश की भरमार होने का दावा कर रहे थे।
उन्होंने अपनी औद्योगिक नीति को 5 सितंबर 2012 को पारित कराया। निवेश की लाइन लगी होने का दावा किया गया था। हालत यह है कि पिछले 10 सालों में कानपुर की लेदर इंडस्ट्री की 400 में से 146 यूनिटें बंद हो चुकी हैं। 2016 में आए ‘स्टेट इन्वेस्टमेंट पोटेंशियल इंडेक्स’ में 21 राज्यों में उत्तर प्रदेश का स्थान बीसवां था।
उत्तर प्रदेश में वैश्वीकरण के बाद पहली बार औद्योगिक नीति 1998 में आई। यह औद्योगिक नीति गरीबी और बेरोजगारी मिटाने के लिए आर्थिक विकास पर खास ध्यान देने वाली थी। इस नीति में 1998 में छोटे स्तर पर कुछ आॢथक सुधार लागू किए गए। लेकिन कैबिनेट से 19 फरवरी, 2004 को मंजूरी मिलने के बाद लागू दूसरी औद्योगिक विकास नीति ने आॢथक सुधारों की गाड़ी को यूपी में कुछ हद तक रफ्तार दी।
कहना गलत नहीं होगा कि 2007 के बाद इस गाड़ी ने अपना गियर बदल लिया मगर उत्तर प्रदेश में यह गाड़ी पटरी पर आने के बाद उतरती दिखी तभी तो 2007-2012 तक के काल में यूपी में करीब 55 हजार करोड़ का निवेश आया जो 2012 से 2016 तक के समय में घटकर करीब 27 हजार करोड़ पर जा पहुंचा।
दूसरे राज्यों से पिछड़ा यूपी
वर्ष 1999 से 2011 तक के कालखंड में उत्तर प्रदेश की जीडीपी का आकार 175159 करोड़ रुपये से बढक़र 595055 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यूपी की जीडीपी में कुल 41.71 फीसदी बढ़ोत्तरी हुई जबकि देश की जीडीपी का आकार इसी काल में 300.69 फीसदी बढ़ गया। इस काल के दौरान देश की जीडीपी में उत्तर प्रदेश का योगदान 9.8 फीसदी से घटकर 8.3 फीसदी रह गया। इसका सीधा मतलब है कि देश के दूसरे राज्यों ने अपने आॢथक प्रदर्शन से यूपी को बहुत पीछे छोड़ दिया।
यूपी देश में किस तरह पिछड़ता गया इसका एक उदाहरण औद्योगिक विकास की दर भी सामने ला रही है। 1994-95 से लेकर 2003-04 तक उत्तर प्रदेश का औद्योगिक विकास 3.86 फीसदी की सालाना दर से आगे बढ़ा। जबकि दूसरी औद्योगिक नीति आने के बाद यह सुधरने लगा। 2005 से 2011 तक के समय में भारत के औद्योगिक विकास की दर 8.65 थी जबकि यूपी में औद्योगिक विकास की दर 7.15 फीसदी थी। उत्तर प्रदेश की जीडीपी 1991 में 5.58 फीसदी थी जो 2006-07 में अब तक की सबसे ज्यादा स्तर 8.1 फीसदी तक पहुंच गयी। साल 2011-12 तक यह फिर से 6 फीसदी की दर पर लुढक़ गयी।
मुख्यमंत्रियों के बड़े-बड़े दावे,हासिल कुछ नहीं
यूपी में औद्योगिक नीति जारी करने वाले मुख्यमंत्रियों की बात की जाए तो हर बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बड़े-बड़े दावे करते है। कुछ विदेशी दौरे भी करते हैं मगर यूपी में औद्योगिक निवेश जस का तस ही रह जाता है। अगर बात की जाए मुख्यमंत्रियों की तो 1995 में मुलायम सिंह यादव निवेश का आमंत्रण देने ब्रिटेन की यात्रा पर गये मगर निवेश नहीं आ सका। 1997 में मायावती जापान और कोरिया की यात्रा पर गईं। इस यात्रा का कोई नतीजा नहीं निकल सका। इसके बाद भाजपा के मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता मुंबई गए और दावा किया कि उद्यमी प्रदेश में 27 हजार करोड़ का निवेश करने को तैयार हैं पर एक ढेले का निवेश नहीं हुआ।
2003 में मायावती उद्यमियों से मिलने मुंबई गयीं मगर एक रुपये का निवेश नहीं ला सकीं। इसके बाद वह कांशीराम, अपने भाई व उनके परिवार के साथ निवेश आमंत्रित करने यूरोप और अमेरिका की पांच देशों की यात्रा पर गईं। वहां वे यूएसबीआईसी (यूनाइटेड स्टेट बिजनेस इंडिया काउंसिल) के एक कार्यक्रम में गयीं, नियाग्रा फाल गईं, ओरलैंडों गई और लंदन जाकर उन्होंने एक प्रेसनोट जारी कराया कि लंदनवासी मायावती की तुलना मार्गरेट थैचर से कर उन्हें देखने उमड़ पड़े पर विकास नहीं हो सका। 2004 के बाद तो आठ साल तक प्रदेश में औद्योगिक विकास नीति ही नहीं आ सकी।
मायावती और अखिलेश यादव के शासनकाल की बात की जाए तो मायावती शासनकाल के वित्तीय वर्ष 2008 में विकास दर 7.32 फीसदी थी वहीं 2009, 2010, 2011 में यह दर 6.99 फीसदी, 6.58 फीसदी और 5.58 फीसदी रही। अखिलेश यादव के कार्यकाल के पहले चार साल में यह दर 2013, 2014, 2015, 2016 में क्रमश: 5.78, 4.95, 6.00 और 7.13 थी। दोनों के कार्यकालों में चुनाव के वर्ष को नहीं लिया गया है। वहीं इस अवधि में बिहार की विकास दर कभी भी 9 फीसदी से नीचे नहीं गयी और 2011 में यह दर सबसे ज्यादा 15.63 फीसदी थी।
यह बात और है कि मायावती की सत्ता जाने के बाद 2012 में आए अखिलेश यादव ने यह दावा किया किया कि उन्होंने प्रदेश में निवेश के द्वार खोल दिए हैं। उनका दावा था कि उनकी औद्योगिक नीति आने के बाद से 78681 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं। असलियत यह रही कि इस पाइपलाइन का मुंह खुला ही नहीं और यह दावे सिर्फ कागजों में रह गये और चार साल में महज 27374.48 करोड़ का ही कुल निवेश हो सका।
अखिलेश यादव के राज में बड़ी कंपनी जैसे सैमसंग, रिलायंस सीमेंट, एचसीएल, टाटा ग्रुप जैसे नाम तो आए पर रंग नहीं दिखा सके। अखिलेश यादव ने तो जुलाई 2013 में अमेरिकी शहरों में रोड शो करने की तैयारी की थी। उन्हें बोस्टन, न्यूयार्क, शिकागो समेत कई शहरों में रोड शो करना था पर बोस्टन में उनके कैबिनेट मंत्री आजम खान के साथ हुई दुव्र्यवहार के कारण इसे स्थगित करना पड़ा। अखिलेश यादव न्यूयार्क गए जरूर पर यूएसआईबीसी के चेयरमैन और प्रेसिडेंट रॉन सोमर्स ने उनसे उनके सुइट में जाकर मुलाकात की।
भाजपा की योगी सरकार ने 2017 की ताजातरीन औद्योगिक नीति जारी की है। भाजपा सरकार की नई नीति से अचानक किसी उम्मीद का न जगना स्वाभाविक है क्योंकि उत्तर प्रदेश पहले भी उत्तम प्रदेश, ऊर्जा प्रदेश, अति उत्तम प्रदेश समेत कई तरह के कागजी नारों से दो चार हो चुका है। नीतियां प्रदेश के विकास में कामयाब नहीं है। ऐसे में भाजपा की नई नीति पर सहसा विश्वास कर पाना जनता के लिए कठिन है। बात तब बने जब यूपी उद्योग प्रदेश बने।
क्या है नई औद्योगिक नीति 2017
नीति के मुताबिक बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल में 100 करोड़ निवेश या 500 से अधिक रोजगार वाली इकाइयों को मेगा इकाई का दर्जा देते हुए विशेष प्रोत्साहन का प्रावधान है। वहीं मध्यांचल एवं पश्मिांचल में 150 करोड़ निवेश या 750 से अधिक रोजगार वाली इकाइयों और गौतमबुद्धनगर व गाजियाबाद में 200 करोड़ निवेश या 1000 से अधिक रोजगार देने इकाइयों को यह दर्जा मिलेगा।
दो सौ से अधिक महिलाओं को रोजगार पर टैक्स में छूट
नई औद्योगिक नीति में अपनी श्रमशक्ति में 40 फीसदी से ज्यादा महिलाओं को रोजगार या फिर 25 फीसदी से ज्यादा अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों को रोजगार देने वाली इकाइयों को सरकार विशेष छूट देगी। साथ ही पश्चिमी यूपी में 400 से अधिक श्रमिकों या बुन्देलखण्ड, पूर्वांचल और मध्यांचल में 200 से अधिक महिला श्रमिकों को रोजगार देने वाली इकाइयों को नेट स्टेट जीएसटी से छूट दी जाएगी। छूट का यह लाभ उन इकाइयों को भी मिलेगा जो एससी, एसटी, दिव्यांग व बीपीएल श्रेणी के 200 काॢमकों को रोजगार देंगी। इसके अलावा कम से कम 200 लोगों के लिए रोजगार सृजित करने वाली इकाइयों को ईपीएफ के नियोक्ता अंश की अतिरिक्त सब्स्डिी दी जाएगी।
सीएम आफिस की में होगा सिंगल विंडो क्लीयरेंस विभाग
यूपी में अब उद्यमियों को कई तरह के लाइसेंस के लिए दर्जनों विभागों में भटकना होता था। अब नई नीति में अनुमतियों या लाइसेंसों के लिए भटकना नहीं होगा। मुख्यमंत्री कार्यालय में ही एक सिंगल विंडो सिस्टम तैयार कराया जा रहा है जो उद्यमियों को सारे लाइसेंस क्लीयर कराकर देगा।
‘मेक इन यूपी’ विभाग बनेगा
‘मेक इन इंडिया’ की तर्ज पर यूपी में ‘मेक इन यूपी’ विभाग बनेगा। इसके तहत उद्योग व सेक्टर स्टेट इन्वेस्टमेंट एंड मैन्यूफैक्चरिंग जोन (एसआईएमजेड) और स्पेशल इकोनामिक जोन को चिन्हित किया जाएगा।
राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड का होगा गठन
औद्योगिक परियोजनाओं से जुड़े निर्णय लेने में तेजी लाने के लिए सीएम की अध्यक्षता में राज्य निवेश प्रोत्साहन बोर्ड (एसआईपीबी) का गठन होगा। यह बोर्ड निवेश प्रोत्साहन जैसे-राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय रोड-शो, उद्योगों के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर करने और उन्हें लागू कराने में सहायता प्रदान करने संबंधी गतिविधियों का संचालन करेगा।
प्रमोशन के लिए मोदी को बुलाने की योजना
उत्तर प्रदेश की मार्केटिंग के लिए ग्लोबल इन्वेस्टर समिट और कई तरह के आयोजन होंगे जिनमें प्रधानमंत्री मोदी को बुलाने की कोशिश की जाएगी। इसके अलावा यूपी और इसके बाहर रोड शो के अलावा मेगा इंडस्ट्रियल मीट का आयोजन किया जाएगा। उद्यमियों को प्रदेश में उद्योगों की स्थापना के लिए दी जाने वाली सहूलियतों की ओर आकॢषत किया जाएगा। इसी साल अक्टूबर-नवम्बर माह में एक मेगा इंडस्ट्रियल मीट का भी आयोजन करने की योजना है।
उद्यमियों की सुरक्षा के लिए पुलिस बल की होगी तैनाती
यूपी की खराब कानून व्यवस्था निवेश की सबसे बड़ी बाधा है। इसे देखते हुए तय किया गया है कि व्यवसायियों की सुरक्षा के लिए नोएडा, कानपुर, गोरखपुर, बुन्देलखण्ड, पूर्वांचल में विशेष अधिकारी के नेतृत्व में पुलिस बल तैनात किया जाएगा। प्रमुख औद्योगिक क्लस्टर/क्षेत्रों में एकीकृत पुलिस-कम-फायर स्टेशन भी स्थापित किए जाएंगे। इसके अलावा जहाँ भी इंडस्ट्रियल यूनिट होगी वहां के आकार और जरुरत के मुताबिक एक पुलिस अफसर तैनात किया जाएगा जिसकी जिम्मेदारी सिर्फ उस इंडस्ट्रियल एरिया की ही होगी। इसमें एसपी रैंक तक के अफसर भी तैनात किए जा सकते हैं।
लिंकिंग व्यवस्था होगी बेहतरीन
उत्पादों के परिवहन के लिए वायु, जल, सडक़ और रेल नेटवर्क का एक सम्पर्क जाल (कनेक्टिविटी वेब) बनाया जाएगा। इसके लिए लखनऊ व नोएडा की मेट्रो सेवाओं में विस्तार के साथ कानपुर, मेरठ, आगरा, वाराणसी, इलाहाबाद, गोरखपुर, झांसी और गाजियाबाद में भी मेट्रो सेवाओं का विकास किया जाएगा। प्रमुख राज्य राजमार्गों को चौड़ा करके सुगम यातायात की व्यवस्था होगी।
यूपी के खास उद्योगों पर जोर
लखनऊ की चिकनकारी, बुन्देलखण्ड के मिट्टी के बर्तन, मेरठ के खेलकूद के सामान, बलरामपुर की चीनी, फिरोजाबाद के कांच के काम, अलीगढ़ के ताले, मुरादाबाद का पीतल व रामपुर के चाकू मशहूर हैं। इसी तरह संभल का पुदीना, बरेली के फर्नीचर, कन्नौज के इत्र, आगरा के जूते एवं पेठा, कानपुर के चमड़े का कोई जोड़ नहीं है। भदोही के कालीन, वाराणसी की साडिय़ों को पूरी दुनिया में प्रसिद्धी मिली है। सरकार ने ऐसे स्थानीय उद्योगों के प्रचार पर जोर दिया है। इनको बढ़ावा दिया जाएगा।
निर्यात बढ़ाने के लिए ड्राई पोर्ट का विकास
सरकार ने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए ड्राई पोर्ट के विकास का फैसला लिया है। यानी ऐसे इलाके जो पश्चिमी माल ढुलाई गलियारा (डब्ल्यूडीएफसी) और पूर्वी माल ढुलाई गलियारा (ईडीएफसी) के आसपास हैं। ऐसे इलाकों में मल्टी-मॉडल लाजिस्टिक्स हब विकसित करने का प्रावधान है। इसके अलावा उद्योगों को दिल्ली-मुम्बई (डीएमआईसी) और अमृतसर-कोलकाता औद्योगिक गलियारा (एकेआईसी) का भी लाभ मिलेगा।
आर्थिक सुधारों के दौरान यूपी को चाहिए बूस्टर
आर्थिक सुधारों को लागू करने के दौरान उत्तर प्रदेश की ख्याति एक सेक्टर में पूरे देश में थी। उत्तर प्रदेश उन राज्यों में सबसे आगे था जहाँ औद्योगिक विकास क्षेत्र (इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट एरिया) बने मगर इंडस्ट्री का विकास नहीं हो सका। दरअसल निवेश करने वालों की नीति और नीयत में खोट था जिसमें औद्योगिक जमीनों का लैंडयूज बदलकर उन्हें दूसरी चीजों में इस्तेमाल कर लिया।
यूपी की लालफीताशाही और भ्रष्टाचार ने इसमें मदद की। कानून व्यवस्था की बदहाली और बिजली के तारों में करंट की लगातार कमी ने औद्योगिक इकाइयों को चलने से पहले ही थाम दिया। जिस प्रदेश में कानपुर जैसे कपास का उद्योग हो, आगरा का चमड़ा उद्योग हो, सर्विस सेक्टर में नोएडा हो और जिसे आईटी सेक्टर के तेजी से विकास करने और सॢवस सेक्टर में तेज दौड़ लगाने के दौरान रेनबो लैंड आफ इंडिया का खिताब मिला हो वह प्रदेश आज औद्योगिक विकास के लिए हांफ रहा है।
यूपी में सॢवस सेक्टर के साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट के विकास का एक नायाब फ्यूजन किया है जिसमें असीम संभावनाएं हैं। ऐसे में साफ है कि सरकार की नेक नीयत, लालफीताशाही की नजरे इनायत यूपी को उद्योग प्रदेश भी बना सकती हैं।
पिछले 10 साल में यूपी में वास्तविक पूंजी निवेश (रुपया करोड़ में)
- 2007-08 में पूंजी निवेश -4918.26
- 2008-09 में पूंजी निवेश -5176.63
- 2009-10 में पूंजी निवेश -11 951.93
- 2010-11में पूंजी निवेश -10446.03
- 2011-12 में पूंजी निवेश -25052.42
- 2012-13 में पूंजी निवेश -665 955
- 2013-14 में पूंजी निवेश -5213.03
8. 2014-15 - मेंपूंजी निवेश- 7671.2034
2015-16 - मेंपूंजी निवेश- 7830.716 9