निकाय चुनाव- खिला कमल, योगी पास, साइकिल जाम,कांग्रेस फिर नाकाम

उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के नतीजे भाजपा के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आए। सूबे की सत्ता संभालने के बाद अपनी पहली परीक्षा में मुख्यमंत्री योगी

Anoop Ojha
Published on: 1 Dec 2017 1:51 PM GMT
निकाय चुनाव- खिला कमल, योगी पास, साइकिल जाम,कांग्रेस फिर नाकाम
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UP निकाय चुनाव- खिला कमल, योगी पास, साइकिल हुई पंचर, कांग्रेस उबरने में फिर नाकाम

UP निकाय चुनाव: BJP ने ताकत झोंकी, पर विपक्ष क्यों दे रहा वॉकओवर अनुराग शुक्ला

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के निकाय चुनावों के नतीजे भाजपा के लिए बड़ी खुशखबरी लेकर आए। सूबे की सत्ता संभालने के बाद अपनी पहली परीक्षा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का रिपोर्ट कार्ड भाजपा को खुश कर गया। सूबे की जनता ने 16 नगर निगमों में से 14 पर कमल खिला दिया है। भाजपा ने अयोध्या, मथुरा व काशी के साथ ही लखनऊ, गोरखपुर, कानपुर, आगरा, झांसी, इलाहाबाद, गाजियाबाद, फिरोजाबाद, सहारनपुर, बरेली, मुरादाबाद में भी परचम फहराया है। बसपा ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराते हुए अलीगढ़ और मेरठ में विजय हासिल की है। इन दोनों शहरों के नतीजे इस बात के संकेत हैं कि हाथी को लोगों का साथ फिर मिलने लगा है। इस विजय के साथ सियासी रेस में बैठ चुका हाथी अब फिर से ट्रैक पर आ गया है। इन नतीजों से भाजपा को योगी के नेतृत्व पर ठप्पा लगाने की संजीवनी मिल गयी है तो समाजवादी पार्टी की साइकिल पंचर हो गयी है। नतीजों से साफ है कि कांग्रेस एक बार फिर अपनी पतली हालत से उबरने में नाकाम रही है।

दरअसल निकाय हमेशा से ही भाजपा का मजबूत किला रहे हैं। ऊपर से भाजपा ने चुनाव में पूरा जोर लगा दिया था। मुख्यमंत्री योगी को यह पता था कि उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव उनकी सरकार की ताकत, सियासी पकड़ और विरोधियों के उनके पैराशूट से उतरने का जवाब बन सकते है। यही वजह है कि उन्होंने इन चुनावों को महज शहर की सरकार के लिहाज से नहीं देखा। मुख्यमंत्री ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने के लिए 40 सभाएं कीं। भाजपा ने इसे चरण वार वाररूम बनाकर अंजाम दिया। यही कारण है कि इसके परिणाम पिछले दशक में सबसे बेहतर आए हैं। वहीं नए नगर निगमों में अयोध्या, मथुरा, सहारनपुर और फिरोजाबाद में हर जगह कमल खिला है।

सीएम योगी आदित्यनाथ या यूं कहें कि यूपी बीजेपी यह बात अच्छे ढंग से जानती है कि भगवान राम का मुद्दा हर चुनाव की तरह आगामी और वर्तमान चुनाव में कितना संवेदशील है। सबसे अहम यह कि योगी ने इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया था। उन्हें पता था कि यह चुनाव पार्टी के साथ ही उनके राजनीतिक दक्षता का प्रमाण भी पेश करेगा। दरअसल, विधानसभा चुनाव में 325 प्लस का प्रचंड बहुमत पाने के बाद पहली बार बीजेपी जनता के बीच गयी थी। यह चुनाव जीएसटी, व्यापारियों के गुस्से, योगी के कामकाज की स्टाइल सबका लिटमस टेस्ट था। गौरतलब है कि इस निकाय चुनाव से पहले अब तक कोई भी उपचुनाव नहीं हुए। सरकार को 8 महीने भी हो चुके हैं। ऐसे में योगी के फैसलों चाहे वह अवैध स्लॉटर हाउस की बंदी हो या एंटी रोमियो स्क्वाड, गोरक्षा, जीएसटी से व्यापारियों की नाराजगी का मुद्दा हो, यह इन सभी से जुड़ा लिटमस टेस्ट भी था।

सवालों पर विराम

बीजेपी की इस बड़ी कामयाबी से योगी आदित्यनाथ के जननेता होने के सवालों पर विराम लगेगा। यही वजह है कि योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में न सिर्फ व्यक्तिगत रुचि ली थी बल्कि इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया। इससे पहले किसी बीजेपी के सीएम ने इस तरह निकाय चुनाव में दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। इस जीत के बाद योगी आदित्यनाथ का कद पार्टी में भी और बढ़ गया है। वह एक प्रशासक के तौर पर स्थापित हुए हैं और सरकार के कामकाज को जनता की हरी झंडी के तौर पर दिखाया जाएगा। योगी के खिलाफ उठी कई आवाजों की हिम्मत टूटी है और उन्होंने उस छवि को तोड़ दिया है जिसमें पोस्टर बॉय के तौर पर लोकसभा 2014 के बाद हुए उपचुनावों में असफल नायक का कलंक छिपा था।

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चिराग तले अंधेरा

ये चुनाव जहां हर दल के लिए सियासी संदेश लेकर आए वहीं हर दल को आइना भी दिखा गए। कांग्रेस अमेठी लोकसभा के गौरीगंज में चौथे नंबर पर रही तो भाजपा ने इसे मुद्दा बना दिया। हालांकि सच्चाई यह भी है कि लोकसभा के अलावा गौरीगंज विधानसभा भी कभी कांग्रेस का गढ़ नहीं रहा है। यहां से कभी वह जीतती है तो कभी हार जाती है। वहीं कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य ने खुद चुनाव लड़ा और वह पहले दो स्थान पर भी नहीं रहे। इस जीत में भाजपा को अपने मैनेजमेंट पर भी ध्यान देना होगा क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने जिस बूथ पर वोट डाला था वहां के वार्ड में भी भाजपा हार गयी और गोरक्षपीठ के आसपास के चार वार्ड भी भाजपा हार गयी। इसी तरह भाजपा कौशांबी में छह नगर पंचायत में हार गयी। गौरतलब है कि यह उपमुख्यमंत्री के प्रभाव वाला इलाका है।

लौट आया हाथी

सियासी तौर पर बीमार चल रहे हाथी को इन निकाय चुनावों ने संजीवनी दे दी है। बसपा ने जहां शुरुआती रुझानों में छह सीटों पर बढ़त बनाकर सियासी गणित के उलटफेर की कहानी लिखी थी वहीं अंत में दो सीटें जीतकर यह साबित कर दिया कि हाथी न तो मरा है न ही नौ लाख का हुआ है। वह अब भी सियासी दंगल में किसी को भी पटखनी दे सकता है। इस चुनाव में यह संदेश भी छिपा है कि बसपा को एक बार फिर मुस्लिमों का साथ मिला है। वह भी सपा और कांग्रेस की कीमत पर। यही वजह है कि सपा और कांग्रेस का खाता नहीं खुला और बसपा ने ही सियासी तौर भाजपा को टक्कर दी है। वह भी तब जब मायावती पूरी तरह सक्रिय नहीं थी। जब चुनाव शबाब पर थे तो मायावती भोपाल में रैली कर रही थीं और लखनऊ में तो उन्होंने अपना वोट तक नहीं डाला था।

समझ से परे रही अखिलेश की रणनीति

सपा निकाय चुनाव में उसी तरह से टैक्टिकल वोटिंग का शिकार हुई जैसे लोकसभा में बसपा हुई थी। नतीजा भी वही हुआ। सपा का खाता नहीं खुला। मेयर यानी नगर निगम के अलावा पार्टी को नगर पालिका और नगर पंचायत में जिस तरह की सफलता मिली उसमें सिर्फ टैक्टिकल वोटिंग की कमी दिखी वरना वोट के लिहाज से वह बसपा से बेहतर दिख रही है। दरअसल समाजवादी पार्टी बीजेपी की सियासी दुश्मन नंबर एक होने का दावा कर रही है पर उसका सबसे बडा चेहरा अखिलेश यादव प्रचार से गायब रहे। उन्होंने कई मौकों पर कहा था कि उनके कार्यकर्ता ही इस चुनाव को लडऩे में सक्षम हैं यानी या तो वह इन चुनावों को अहमियत नहीं दे रहे थे या फिर कुछ ज्यादा ही आसान समझ रहे थे या फिर इन चुनावों में उन्हें अपनी पार्टी का हश्र पता था। अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के यूथ आइकान हैं और अपनी पार्टी के सबसे बड़े स्टार है पर उनका प्रचार से गायब होना रणनीति के लिहाज से भी लोगों को समझ में नहीं आ रहा है।

फिर टूटी कांग्रेस की उम्मीद

कांग्रेस का अमेठी में हारना और पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन आदित्य का दूसरे स्थान पर भी न होना, इस बात का संकेत है कि प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति अब भी दयनीय ही है। राजधानी में मेयर के प्रत्याशी को लेकर ही कांग्रेस के तीन दावेदार हो गये थे। प्रदेश स्तर के नेता राष्ट्रीय हो चुके हैं और प्रदेश में दमदार नेता बचे ही नहीं। ऐसे में कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि वह निकाय चुनाव किसके भरोसे लड़े। वैसे जमीन पर कांग्रेस अध्यक्ष राजबब्बर ने फैजाबाद, आगरा, और अम्बेडकरनगर में रोड शो किया। पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला ने भी कानपुर में प्रचार किया। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव शकील अहमद शामली के कान्धला और कैराना जैसे अल्पसंख्यक बहुल इलाकों में प्रचार में जुटे रहे। सांसद संजय सिंह और प्रमोद तिवारी भी जनसभाएं करते रहे पर जनता ने उनके हाथ को अपना साथ नहीं दिया।

नतीजे को गुजरात में भुनाएगी बीजेपी

निकाय चुनाव में 14 मेयर पद जीतने वाली बीजेपी को इसका फायदा गुजरात चुनाव में भी मिलेगा। दरअसल यूपी निकाय चुनाव के रिजल्ट की टाइमिंग भी जबरदस्त है। गुजरात विधानसभा चुनाव में 9 दिसंबर को पहले चरण की वोटिंग होनी है। इस परिणाम ने व्यापारियों के गुस्से की बात को खारिज करने में बीजेपी को असली हथियार दिया है। गुजरात में इस चुनाव की गूंज होगी। इसका उदाहरण भाजपा नेताओं के बोल से दिख रहा है। अमेठी में कांग्रेस के चौथे स्थान पर आने पर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी पर निशाना साधा कि जो अपना निकाय नहीं जीत सकता वो क्या बात करता है। वहीं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी राहुल पर निशाना साधने से नहीं चूके। उन्होंने कहा कि ये चुनाव सबकी आंख खोलने वाले हंै। जो लोग गुजरात के बारे में बड़ी-बड़ी बात करते हैं उनका सफाया हो गया। यहां तक कि अमेठी में भी उनका सूपड़ा साफ हो गया। उन्होंने कहा कि ये मोदी के विकास और विजन की जीत है।

अब नहीं होगा महागठबंधन

दरअसल इन नतीजों ने न सिर्फ शहर की सरकार की तस्वीर साफ की है बल्कि प्रदेश की सियासत की दिशा भी दिखा दी है। बसपा को मिली सफलता के बाद प्रदेश में बिहार की तर्ज पर महागठबंधन की स्थिति अब बीच रास्ते दम तोडऩे लगी है। मायावती की सियासत समझने वाले जानते हैं कि मायावती कभी भी तब तक गठबंधन नहीं करतीं जब तक वह उसकी लीडर न हों। ऐसा कोई भी गठबंधन नहीं चला जिसमें मायावती को सेकेंड इन कमांड की भूमिका दी गयी है। लोकसभा में खाता न खोल पाने और विधानसभा में सिमट जाने के बाद भी मायावती ने महागठबंधन को तरजीह नहीं दी थी। अब निकाय चुनाव में उन्हें अपने काडर के साथ ही मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला है। ऐसे में वह अब हर हाल में अपने दम पर चुनाव लडऩे की तैयारी करेंगी।

नगर निगम के परिणाम के ट्रेंड

पार्टी 2017 (कुल सीट 16) 2012 (कुल सीट 12) 2006 (कुल सीट 12)

भाजपा 14 10 08

सपा 00 सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा 01

बसपा 02 सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा सिंबल पर चुनाव नहीं लड़ा

कांग्रेस 00 00 03

अन्य/ निर्दलीय 00 02 00

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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