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UP: प्रदेश के जेलों में बंद हैं 516 निर्दोष बच्चे, किस बात की मिल रही सजा?
मानवेंद्र मल्होत्रा
आगरा: न्याय की प्रक्रिया में शिथिलता के कारण आरोपियों के छूट जाने या निर्दोषों के सजा भुगतने के मामले कई बार सुर्खियों में रहते हैं। मगर, न्याय की अनदेखी के चलते जब मासूम बच्चों के बचपन की अनदेखी हो तो सवाल चुभने लगता है। यह विडंबना ही है कि प्रदेश की जेलों में न्याय के इंतजार में महिला कैदियों के साथ उनके 516 बेगुनाह बच्चे भी सजा भुगत रहे हैं। सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत प्राप्त आंकड़ों द्वारा यह खुलासा हुआ है।
प्रदेश की जेलों को लेकर यूं तो कई सवाल उठते रहे हैं, लेकिन उनसे आम जनता का कोई खास लेना-देना होता नहीं है। मगर, एक सवाल ऐसा है जो सभ्य समाज को सोचने पर मजबूर करता है और वो है उन निर्दोष बच्चों के जीवन का जो बिना किसी अपराध के अपना बचपन जेल की सलाखों के पीछे बिताने को मजबूर हैं।
आगरा के चाइल्ड राईट EVM आरटीआई एक्टिविस्ट नरेश पारस को सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार प्रदेश की जेलों में फिलहाल ऐसे 516 बच्चे अपनी मां के साथ जेल में सजा काट रहे हैं। इनमें 76 महिला कैदियों को सजा सुनाई जा चुकी है। जबकि 440 अभी सिर्फ आरोपी हैं और उनके मुकदमों की सुनवाई न्यायालयों में लंबित है।
जेल में ना तो टीचर, ..और ना ही पौष्टिक आहार
यह विडंबना ही है कि न्याय के इंतजार में उनके साथ उनके 516 बच्चे भी जेलों में बंद हैं। इन बच्चो में 275 लड़के और 241 लड़कियां हैं। हालांकि, इन बच्चों को पढ़ाने के लिए जेल प्रबंधन की ओर से व्यवस्था की बात कही जाती है, लेकिन सच्चाई कुछ और ही है। अधिकतर जेलों में इन बच्चों को पढ़ाने के लिए कोई शिक्षक नहीं है। कोई बच्चा कुपोषण का शिकार न हो, इसके लिए सरकार बच्चो के लिए पौष्टिक आहार की व्यवस्था की जाती है मगर जेलों में बंद इन बच्चों की कोई जांच नहीं की जाती है और ना ही इनके लिए किसी पौष्टिक आहार की अलग से व्यवस्था की गई है।
...आखिर सरकार क्यों नहीं है संवेदनशील
ऐसे में जेलों में सजा काट रहे इन निर्दोष बच्चों में कई कुपोषित भी हों तो तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। कमोवेश यही हाल टीकाकरण को लेकर भी है। क्योंकि जेलों में इन बच्चों के टीकाकरण की कोई व्यवसथ नहीं है। ऐसे में बड़े सवाल खड़े होते हैं कि आखिर सरकार इन बच्चों के खो रहे बचपन और आने वाले भविष्य के लिए संवेदनशील क्यों नहीं है।
ऐसे बच्चों के लिए सरकार बनाए योजना
जब इस बारे में आरटीआई और चाइल्ड राईट एक्टिविस्ट एवं महफूज संस्था के रीजनल को-ऑडिनेटर नरेश पारस से बात की गई तो उनका कहना है कि 'जेलों में बंद बच्चों को ना तो शिक्षा मिल पा रही है और न ही पर्याप्त और पौष्टिक आहार। ऐसे में ये बच्चों के मानवाधिकारों का हनन है। सरकारों को सवेंदनशील रुख अपनाते हुए ऐसे बच्चों के लिए योजना बनानी चाहिए। सरकार जेलों में न्याय पाने की उम्मीद में बंद महिलाओं के बच्चों के लिए ऐसे नए संस्थान शुरू करे, जो इन बच्चों को न सिर्फ आसरा दें बल्कि इनके रहन-सहन, पढ़ाई, खेल-कूद और खाने-पीने की व्यवस्था भी करें।'
इन जेलों में हैं सर्वाधिक निर्दोष बच्चे:
गोरखपुर- 28
आगरा- 26
कानपुर- 17
मिर्जापुर- 16
कुशीनगर- 11
फिरोजाबाद- 9