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नमो को नमन! योजनाओं की बिसात पर कराह रही 'भोले की काशी'

Rishi
Published on: 11 Aug 2017 4:56 PM IST
नमो को नमन! योजनाओं की बिसात पर कराह रही भोले की काशी
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केस नं.- 1

चौकाघाट-लहरतारा निर्माणाधीन फ्लाईओवर के नीचे यातायात ठप है। पुल के लिए पिलर ढालने का काम चल रहा है जिसके चलते दोनों ओर लंबा जाम लगा है। दिल्ली जाने के लिए निकले रोहन पिछले दो घंटे से इस जाम में फंसे हुए हैं। उन्हें इस बात का डर है कि जाम के चलते कहीं उनकी ट्रेन ना छूट जाए। उनके जैसे अन्य लोग भी अपनी मंजिल पर पहुंचने के लिए परेशान हैं।

केस नं.-2

महमूरगंज से मंडुवाडीह मार्ग पर भी दोपहर से वाहनों का लंबा रेला लगा है। शाम के चार बजने को हैं, लेकिन वाहनों का कारवां बढ़ता ही जा रहा है। लहरतारा के पास रेलवे ब्रिज के निर्माण के चलते आए दिन ऐसा ही रेला लगा रहता है। यहंा से गुजरने वाले लोग हर रोज इसी तरह की समस्या से दो चार होते हैं मगर शासन-प्रशासन को कोसने के सिवा कुछ भी करने में असमर्थ हैं।

केस नं.-3

अर्दली बाजार स्थित महावीर मंदिर चौराहे के पास जेएनयूआरएम के तहत सीवर डालने का काम चल रहा है। बीच सडक़ बड़ा गढ्ढा खोदा गया है। दो हफ्ते से अधिक का समय हो चुका है, वरुणा पार के सबसे व्यस्त इलाके में सीवर डालने का काम चल रहा है, जिसकी वजह से यहंा के लोगों का जीना मुहाल हो गया है। सडक़ किनारे धंधा मंदा पड़ा हुआ है तो आने-जाने वालों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

ये तीन सडक़ें गवाह हैं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में अफसरों की लापरवाही की। शहर की कई सडक़ें खोदकर यूं ही छोड़ दी गई है, जिन पर चलते समय पूरा शहर छटपटा रहा है। तीन सालों से दावा किया जा रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार की दर्जनों योजनाओं से काशी का कायाकल्प हो जाएगा, लेकिन वह दिन कब आयेगा, इसे बताने वाला कोई नहीं। योजनाओं की बिसात पर पूरी काशी कराह रही है।

मौजूदा वक्त में शहर की शक्लो सूरत बदलने के लिए केंद्र और राज्य की दो दर्जन से अधिक योजनाएं चल रही हैं, लेकिन अधिकारियों और कार्यदायी संस्थाओं की लापरवाही के चलते अधिकतर प्रोजेक्ट काफी विलंब से चल रहे हैं। इसका नतीजा यहां के वाशिंदों को को भुगतना पड़ रहा है।

चौकाघाट-लहरतारा फ्लाईओवर

दो साल हुआ में सिर्फ 22 फीसदी काम

शहर को जाम के जंजाल से निकालने के लिए चौकाघाट से लहरतारा तक फ्लाईओवर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। राज्य सरकार की ओर से बनाया जा रहा यह फ्लाईओवर कैंट रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड को जोडऩे वाले मुख्य मार्ग पर स्थित है। चूंकि यह रास्ता शहर के महत्वपूर्ण स्थलों से जुड़ा है, इसलिए यहां ट्रैफिक का लोड हमेशा बहुत ज्यादा रहता है। आए दिन लोग जाम की समस्या से यहां पर त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। यहंा पर पूर्व में बने उपरगामी सेतु के कैंट बस स्टैंड के पास समाप्त होने के कारण जाम हमेशा लगता है। इसलिए प्रोजेक्ट का पूरा होना अत्यंत आवश्यक है।

बावजूद इसके सेतु निर्माण निगम के अधिकारी लापरवाही बरत रहे हैं। मानो उन्हें लोगों की दिक्कतों की कोई फिक्र ही न हो। फ्लाईओवर निर्माण को शुरू हुए दो साल का वक्त बीत चुका है, इसके बाद भी अब तक सिर्फ 22 फीसदी ही काम हो पाया है। लिहाजा इस मार्ग पर सुबह से शाम तक जाम के हालात बने रहते हैं। सबसे ज्यादा दिक्कत स्टेशन और बस स्टैंड जाने वाले मुसाफिरों को झेलनी पड़ती है। निर्माण के चलते बीच सडक़ सामान बिखरा पड़ा है।

लिहाजा इस मार्ग पर ट्रैफिक रेंगता रहता है। लापरवाही का आलम यह है कि फ्लाईओवर की डिजाइन में भी खामियां देखने को मिल रही हैं। इसे लेकर अब विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।

आंकड़ों में फ्लाईओवर

स्वीकृत लागत- 77.41 करोड़ रुपए

सेतु की लंबाई- 1710 मीटर

कार्य आरंभ- 25 अक्टूबर 2015

समय सीमा- मार्च 2018

काम पूरा- 23 फीसदी

डिजाइन ठीक करने की कोशिश

प्रोजेक्ट में हो रही देरी के बाबत राज्य सेतु निर्माण निगम के सहायक अभियंता एके आर्य कहते हैं कि हमारी कोशिश है कि जल्द से जल्द प्रोजेक्ट को पूरा किया जाए। पहले इस फ्लाईओवर को पूरा करने की समय सीमा दिसंबर 2018 दी गई थी, लेकिन अब इसे घटाकर मार्च 2018 कर दिया गया है। शासन ने हमें नौ महीने पहले ही फ्लाईओवर बनाने की चुनौती दी है। जहां तक फ्लाईओवर के डिजाइन की बात है तो उसे ठीक करने की कोशिश की जा रही है। बगल के फ्लाईओवर के मानक को देखते हुए निर्माणाधीन फ्लाईओवर की डिजाइन तैयार की गई है।

आईपीडीएस परियोजना

शहर के बड़े हिस्से में बाकी पड़ा है काम

शहर में तारों के जंजाल को दूर करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़ी पहल की थी। आईपीडीएस योजना के तहत बनारस में खंभों पर लटकने वाले तारों को भूमिगत करने का काम शुरू हुआ। माना गया कि इससे काशी की शक्लो-सूरत बदल जाएगी। केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने खुद आकर वाराणसी में अफसरों की बैठक की और कहा कि हम वाराणसी को नजीर के रूप में पेश करना चाहते हैं।

उन्होंने तय समय सीमा में काम पूरा करने का निर्देश दिया मगर ऐसा होता नहीं दिखता क्योंकि अभी तक मात्र 40 फीसदी ही काम पूरा हो सका है। सितंबर 2015 में काम शुरू हुआ, लेकिन अधिकारियों के लापरवाह रवैये ने इस योजना पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

दावा किया जा रहा है कि सितबंर 2017 तक पूरे शहर में तारों को भूमिगत कर दिया जाएगा, लेकिन जमीनी स्तर पर हालात कुछ और है। सिर्फ पक्के महाल (गंगा किनारे वाले क्षेत्र) के अलावा कुछ चुनिंदा इलाकों को छोड़ दिया जाए तो शहर के एक बड़े हिस्से में काम होना बाकी है। लापरवाही सिर्फ काम के रफ्तार के स्तर पर ही नहीं है बल्कि जिस तरीके से काम किया जा रहा है, उससे भी इस योजना पर सवाल खड़े हो रहे हैं।

अब इसे समय सीमा की कटौती कहें या आईपीडीएस कर्मचारियों की लापरवाही, आलम यह है कि ये बिजली के भूमिगत केबिल डालने के मानक की खुलकर धज्जी उड़ा रहे हैं। सतही तौर पर ही केबिल डाल दी जा रही है।

इतना ही नहीं कर्मचारी केबिल डालने के लिए जो खुदाई कर रहे हैं उससे जगह-जगह पेयजल की पाइपलाइन क्षतिग्रस्त हो रही है, लेकिन जल निगम हो या जलकल, कर्मचारी क्षतिग्रस्त पेयजल पाइप लाइनों की मरम्मत से कतराने लगे हैं। यानी कहीं ये बिजली के तारों को भूमिगत करने के चक्कर में जमीन के भीतर बारूद तो नहीं बिछाया जा रहा। यही नहीं जिन सडक़ों की खोदाई हुई है, उनकी मरम्मत में भी लापरवाही बरती जा रही है। गोदौलिया में तो यह आलम था कि पूरी सडक़ ही धंस गई तो वहीं भेलूपुर में भूमिगत तार के पास लगे बॉक्स की चपेट में आने से एक सांड़ की मौत हो गई।

तार डालने के बाद भी खुदी पड़ी हैं सडक़ें

पिछले लगभग दो सालों से हो रही अंडरग्राउंड केबलिंग के तहत हुई खुदाई में चेतगंज, चौक, बांसफाटक, लक्सा, आदमपुर, अस्सी, शिवाला समेत कई ऐसे इलाके अब तक खुदे पड़े हैं, जहां तार डालने का काम काफी पहले हो चुका है। इससे बुरी हालत गलियों की है। गायघाट, गोलघर, ब्रह्मनाल, कचौड़ी गली, मीरघाट समेत असल बनारस कहे जाने वाले पक्के महाल के तमाम इलाके अब तक खोदे पड़े हैं। इस कारण क्षेत्र के लोगों के अलावा इस रूट पर आने वाले सैलानियों को बहुत ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है।

इस बात को लेकर आईपीडीएस प्रोजेक्ट की समीक्षा करने आई राधिका झा ने भी साफ कहा कि खोदी गई सडक़ें तुरंत बनाएं और इसके लिए अब हर शनिवार को उन्होंने डीएम से वर्क प्रोग्रेस रिपोर्ट भेजने का भी आदेश दिया है। इस योजना को लेकर काशी के कई बड़े जानकरों ने भी सवाल उठाए हैं।

बिजली विभाग के एक बड़े अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि आईपीडीएस के अधिकारियों के पास ना तो कोई नक्शा है और ना ही काशी की भूमिगत स्थिति की सटीक जानकारी। कहीं कोई मुकम्मल योजना नहीं है। मानकों की घोर अनदेखी की जा रही है। आलम यह है कि जमीन के नीच तीन फीट तक भी खोदाई नहीं हो रही है।

आंकड़ों में आईपीडीएस

स्वीकृत लागत - 527 करोड़

काम आरंभ- 18 सितंबर 2015

समय सीमा-सितंबर-2017

काम पूरा- 40 फीसदी

अक्टूबर तक काम पूरा होने का दावा

आईपीडीएस के तहत हो रहे कामों में बरती जाने वाली लापरवाही के संबंध में विभाग के अधिकारी दूसरा ही राग अलाप रहे हैं। विभाग के अधिक्षण अभियंता आरडी सिंह के मुताबिक सरकार की ओर से पहले दिसंबर 2017 तक की समय सीमा निर्धारित की गई थी, लेकिन राज्य सरकार ने अब इसे और घटा दिया है। इसके अलावा सावन में कांवडिय़ों की भीड़ के चलते शहर में सडक़ों की खोदाई का काम रोक दिया गया है। हमारी उम्मीद है कि अक्टूबर तक काम पूरा हो जाएगा। मंडुवाडीह रेलवे ओवरब्रिज

रोज दो लाख से अधिक लोगों का आवागमन प्रभावित

शहर में जाम की समस्या को खत्म करने के लिए मंडुवाडीह रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण शुरू हुआ। अगस्त 2014 में तत्कालीन सिंचाई एवं पीडब्ल्यूडी राज्यमंत्री सुरेंद्र पटेल ने इस ओवरब्रिज का शिलान्यास किया। उस वक्त तय हुआ कि 18 महीने में पुल बनकर तैयार हो जाएगा, लेकिन तय समय सीमा से डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। रेलवे पुल अब तक बनकर तैयार नहीं हुआ है। इसके चलते लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। खासतौर से महमूरगंज, लहरतारा, चांदपुर और मंडुवाडीह जाने वाले दो लाख से अधिक लोग प्रतिदिन इससे प्रभावित हैं। निर्माण के चलते इन रास्तों पर चलना दूभर हो गया है।

बारिश के दिनों में तो हालात और बदतर हो जाते हैं। सुबह से लेकर रात तक इस इलाके में ट्रैफिक जाम रहता है। वैकल्पिक मार्ग न होने से लोग इस जाम में पिसते रहते हैं। यह हाल तब है जब राज्य और केंद्र दोनों में बीजेपी की सरकार है। सेतु निगम ने अपना काम लगभग पूरा कर दिया है, लेकिन रेलवे की गति समझ से बाहर है।

दोनों विभागों में तालमेल ना होने के कारण निर्माण में देरी हो रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले महीने कमिश्नर नितिन रमेश गोर्कण के साथ समीक्षा बैठक कर इस पुल को जल्द चालू करने का निर्देश दिया था, लेकिन रेलवे के अधिकारियों के अडिय़ल रवैये के चलते लापरवाही बनी हुई है।

आंकड़ों में मंडुवाडीह रेलवे ओवरब्रिज

स्वीकृत लागत- 3526.43 लाख

पुल की लंबाई- 782.81 मीटर

काम आरंभ- अगस्त 2014

समय सीमा- फरवरी 2016

काम पूरा- 70 फीसदी

बाबतपुर एयरपोर्ट फोरलेन

धूल के गुबार से सडक़ पर चलना मुश्किल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शहर से एयरपोर्ट को जोडऩे वाली सडक़ को फोरलेन करने का ऐलान किया था। शुरुआती दिनों में तो सडक़ निर्माण की रफ्तार धीमी थी, लेकिन राज्य में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इसमें तेजी आई है। वाराणसी में कचहरी से बाबतपुर तक 17 किलोमीटर फोरलेन के निर्माण होना है। इस मार्ग पर पडऩे वाले तीन किलामीटर लंबे फ्लाईओवर को बनाने में एनएचएआई ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पुल का अधिकांश निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। पुल बनने से लोगों को आवागमन में काफी सुविधा मिल सकेगी। हालांकि इसके अलावा सडक़ निर्माण में अपेक्षित तेजी नहीं दिख रही है।

यही नहीं कुछ जगह मुआवजे को लेकर भी पेंच फंसा हुआ है जिसके चलते काम में देरी आ रही है। यही नहीं हाईवे पर जगह-जगह निर्माण कार्य होने से एयरपोर्ट जाने वाले मुसाफिरों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। बेतरतीब सडक़ों पर धूल के गुबार के बीच मुसाफिर बनारस में प्रवेश करने के लिए मजबूर हैं। सबसे खराब हालत तो सडक़ किनारे रहने वाले लोगों की हैं। काजीसराय के रहने वाले सुरेश कहते हैं कि निर्माण कार्य के चलते पूरे इलाके में धूल का गुबार छाया रहता है, जिससे लोगों में सांस की दिक्कत बढऩे लगी है।

यही नहीं सडक़ों में गड्ढा होने के चलते हादसे की भी आशंका बनी रहती है। अभी तक कोई अफसर यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि आखिर यह ड्रीम प्रोजेक्ट कब तक पूरा होगा।

आंकड़ों में बाबतपुर-कचहरी फोरलेन

स्वीकृत लागत- 629 करोड़

काम आरंभ- सितंबर 2015

समय सीमा- सितबंर 2017

काम पूरा- 70 फीसदी

शहर में केंद्र और राज्य सरकार की दो दर्जन से अधिक परियोजनाएं चल रही हैं। हमारी कोशिश है कि इन परियोजनाओं को तय सीमा पर पूरा किया जाए। हालांकि कुछ परियोजनाओं में बुनियादी दिक्कतें हैं, जिन्हें अब दूर कर लिया गया है। इसके अलावा सावन के चलते शहर कांवडिय़ों से पटा पड़ा है। किसी तरह की कोई घटना ना हो इसलिए फिलहाल एक महीने से अधिकांश परियोजनाओं के काम रोक दिए गए हैं। सावन खत्म होते ही परियोजनाएं फिर से रफ्तार पकड़ेंगी।रामगोपाल मोहले, महापौर

तस्वीरों में देखें, कैसे कराह रही काशी

Rishi

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आशीष शर्मा ऋषि वेब और न्यूज चैनल के मंझे हुए पत्रकार हैं। आशीष को 13 साल का अनुभव है। ऋषि ने टोटल टीवी से अपनी पत्रकारीय पारी की शुरुआत की। इसके बाद वे साधना टीवी, टीवी 100 जैसे टीवी संस्थानों में रहे। इसके बाद वे न्यूज़ पोर्टल पर्दाफाश, द न्यूज़ में स्टेट हेड के पद पर कार्यरत थे। निर्मल बाबा, राधे मां और गोपाल कांडा पर की गई इनकी स्टोरीज ने काफी चर्चा बटोरी। यूपी में बसपा सरकार के दौरान हुए पैकफेड, ओटी घोटाला को ब्रेक कर चुके हैं। अफ़्रीकी खूनी हीरों से जुडी बड़ी खबर भी आम आदमी के सामने लाए हैं। यूपी की जेलों में चलने वाले माफिया गिरोहों पर की गयी उनकी ख़बर को काफी सराहा गया। कापी एडिटिंग और रिपोर्टिंग में दक्ष ऋषि अपनी विशेष शैली के लिए जाने जाते हैं।

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