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विश्व रक्तदान दिवस: महान पुण्य है रक्तदान
पूनम नेगी
लखनऊ: चिकित्सा विज्ञान की वर्तमान उपलब्धियां सचमुच चमत्कृत करने वाली हैं। गंभीर से गंभीर रोगों का इलाज व आधुनिकतम तकनीकें उपलब्ध हैं। देश-दुनिया के चिकित्सा वैज्ञानिक तमाम तरह की दवाओं, वैक्सीन और एंटीबायोटिक्स ईजाद कर चुके हैं। लेकिन जिंदा रहने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी तत्व "रक्त" को अभी तक बनाया नहीं जा सका है। रक्त जीवन का आधार है। शरीर में रक्त की कमी से गंभीर बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं।
एक अनुमान के अनुसार रक्ताल्पता के कारण भारत में प्रति वर्ष 15 लाख लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं। हर तीसरे सेकेण्ड में अपने यहां किसी न किसी को रक्त की आवश्यकता पड़ती है और अस्पतालों में भर्ती हर दस रोगी में से एक रक्त के अभाव से ग्रस्त होता है। रक्त की इस कमी को पूरा करने के लिए प्रति वर्ष 14 जून को "विश्व रक्तदान दिवस" मनाया जाता है।
इस दिन देश भर में रक्तदान शिविरों का आयोजन कर प्रसार और जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों को रक्तदान के लिए प्रोत्साहित किया जाता है; ताकि हादसों, ऑपरेशन तथा गंभीर रोगों के इलाज के दौरान खून की कमी को पूरा किया जा सके। खून की यह आवश्यकता केवल दान यानी डोनेशन से ही पूरी हो सकता है। रक्तदान को महादान इसीलिए कहा गया है ताकि खून की कमी से मरने वाले लोगों का जीवन बचाया जा सके।
विश्व रक्तदान दिवस 14 जून को ही क्यों?
आप जानते हैं कि रक्तदान दिवस 14 जून को ही क्यों मनाया जाता है! विश्व स्वास्थ्य संगठन ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए 14 जून का दिन इसलिए चुना क्योंकि इस दिन अपने समय के विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद दरअसल कार्ल लेण्ड स्टाइनर (14 जून 1868 -26 जून 1943) का जन्मदिन होता है; जिन्होंने इंसानी खून के ए बी ओ रक्त समूह और रक्त में मिलने वाले एक अहम तत्व आरएच फैक्टर की खोज की थी। इस खोज के लिए उन्हें 1930 में नोबल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। चिकित्सा विज्ञान में इस महान योगदान के लिए उन्हें ट्रांसफ्यूजन मेडिसन का पितामह भी कहा जाता है।
भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत है लेकिन उपलब्ध 75 लाख यूनिट ही हो पाता है। यानी करीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आंकड़ों के मुताबिक यहां हर साल 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 32 फीसदी ही जुट पाता है।
जो हाल दिल्ली का है वही शेष भारत का है। यह अकारण नहीं कि भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है। विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वैच्छिक होता है।
रक्तदान को लेकर भ्रांतियां और चिकित्सा विज्ञान
रक्त की उपयोगिता हम सभी जानते हैं। रक्त से हमारी जिंदगी तो चलती ही है, हम अन्य लोगों का जीवन भी बचा सकते हैं। मगर दुनिया के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में अभी भी लोगों के मन में रक्तदान को लेकर अनेक भ्रांतियां हैं। कई लोग समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महीनों लग जाते हैं। इतना ही नहीं अनेक लोगों को यह गलतफहमी भी है कि नियमित खून देने से रोग प्रतिकारक क्षमता कम हो जाती है जिससे बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं।
भारतीय रेडक्रास सोसाइटी के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक की निदेशक डॉ. वनश्री सिंह के अनुसार हालांकि जागरूकता अभियानों के कारण देश में रक्तदान को लेकर भ्रातियां कम हुई हैं पर अब भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। डॉ. वनश्री के मुताबिक रक्तदान के सम्बन्ध में चिकित्सा विज्ञान कहता है कि कोई भी स्वस्थ्य व्यक्ति जिसकी उम्र 18 से 60 साल के बीच हो जो 45 किलोग्राम से अधिक वजन का हो और जिसे जो एचआईवी, हेपाटिटिस बी या सी, ब्लड शुगर जैसी बीमारी न हो, वह रक्तदान कर सकता है।
एक बार में सिर्फ मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, जिसकी पूर्ति शरीर में चौबीस घण्टे के अन्दर हो जाती है और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है। अहम बात यह है कि हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल तीन माह में स्वयं ही मर जाते हैं, लिहाज़ा प्रत्येक स्वस्थ्य व्यक्ति तीन माह में एक बार रक्तदान कर सकता है। जानकारों के मुताबिक आधा लीटर रक्त तीन लोगों की जान बचा सकता है।
यही नहीं जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं उन्हें हृदय सम्बन्धी बीमारियां कम परेशान करती हैं। आम जन को यह पता होना चाहिए कि मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता बल्कि यह तो बहुत ही कल्याणकारी कार्य है जिसे जब भी अवसर मिले, जरूर करना चाहिए।
पेशेवर रक्तदानकर्ताओं का रैकेट
आज ब्लड बैंकों में कई पेशेवर डोनर्स जब-तब रक्त बेचते हैं। तमाम शराबी, ड्रगिस्ट अपनी लत की भूख मिटाने के लिए थोड़े से पैसे की खातिर कई-कई बार रक्त बेचते हैं। इनमें से अधिकांश गंभीर रोगों से भी ग्रस्त होते है। अब ऐसा रक्त किसी को चढ़ा दिया जाए तो स्वाभाविक है कि वह बचने की बजाय बेमौत मारा जाएगा। लेकिन होता ऐसा ही है।
आज भी दिल्ली, मुंबई जैसे मेट्रो ही नहीं, लखनऊ, कानपुर जैसे बड़े शहरों व कस्बों में भी ऐसे रक्तदाता मिल जाएंगे जो कि चंद रुपयों के लिए अपना रक्त बेच देते हैं। इनमें से अधिकांश का रक्त दूषित होता है या उन्होंने दो चार दिन के भीतर ही रक्त दिया रहता है। जरूरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है परंतु बाद में उसे इसके हानिकारक परिणाम भुगतने पड़ते हैं।