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योगी की पहली अग्निपरीक्षा, क्या बचा पाएंगे खुद का किला और केशव का गढ़?

Gagan D Mishra
Published on: 9 Sept 2017 3:50 PM IST
योगी की पहली अग्निपरीक्षा, क्या बचा पाएंगे खुद का किला और केशव का गढ़?
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योगी की पहली अग्निपरीक्षा, क्या बचा पाएंगे खुद का किला और केशव का गढ़?

गगन दीप मिश्र

लखनऊ: सीएम योगी आदित्यनाथ एमएलसी चुन लिए गए हैं, यूपी बीजेपी को महेंद्र नाथ पांडेय के रूप में अपना नया अध्यक्ष मिल गया और अब पार्टी के साथ साथ योगी के सामने उनकी पहली अग्निपरीक्षा उनके किले और उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य के गढ़ को कायम रखने की है।

नए घटनाक्रम के तहत विधान परिषद के सदस्य के रूप में शपथ ग्रहण के 14 दिन में योगी और मौर्य को सांसद पद से इस्तीफा देना होगा। चूँकि लोकसभा में उनका कार्यकाल मई 2019 तक है, इसलिए दोनों सीटों पर उपचुनाव भी तय है। इसके लिए पार्टी और योगी दोनों ने कमर कस ली है।

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गोरखपुर योगी का किला माना जाता है, वो 5 बार से वहां से सांसद है। इसी के चलते ये सीट उनकी प्रतिष्ठा से जुडी है। अब उनका पूरा ध्यान इस उपचुनाव पर केन्द्रित है, कि किसी भी तरह दोनों सीटों को बीजेपी की झोली में डाली जाए।

वहीँ, माना जा रहा कि इन दोनों सीटों के उपचुनाव में विपक्ष साझा प्रत्याशी उतार सकता है, जिसको देखते हुए बीजेपी ऐसे प्रत्याशियों की खोज कर रही है जो योगी और केशव की जगह ले सके। साथ ही विपक्ष को कड़ी टक्कर भी दे सके।

बीजेपी के लिए ये दोनों सीट के लिए उपचुनाव इस लिए भी चुनौती भरा है क्यों कि आम चुनाव में गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्रों में बड़ी दिलचस्प लड़ाई रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इन सीटों पर सभी विपक्षी दलों को मिले कुल वोटों से भी ज्यादा वोट मिले थे।

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गोरखपुर, बीजेपी खासकर योगी के लिए हमेशा से गढ़ रहा है। यहाँ की सीट पर हिंदू महासभा की ओर से 1989 में महंत अवैद्यनाथ लोक सभा के लिए चुने गये। महंत अवैद्यनाथ योगी आदित्यनाथ के गुरु थे। बाद में हुए दो चुनाव जीतने के बाद महंत की राजनीतिक विरासत को योगी आदित्यनाथ ने 1998 में संभाला, तो फिर पिछले 5 बार से लगातार योगी बीजेपी के टिकट से संसद पहुंचते रहें। योगी का इस सीट पर एकछत्र राज रहा है लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने के लिए उन्हें विधान परिषद का सदस्य बनना पड़ा, इसलिए उन्हें सीट छोड़नी पड़ेगी।

वहीँ फूलपुर की बात करें तो कांग्रेस की परम्परागत सीट रही है, जो 2014 के लोकसभा के चुनाव में ये सूबे के डिप्टी सीएम केशव मौर्य नाम हुई थी। नेहरू की विरासत वाली इस सीट पर समाजवादियों ने जरूर परचम फहराया लेकिन कमल पहली बार केशव मौर्य ने ही खिलाया था। केशव ने कांग्रेस के प्रत्याशी क्रिकेटर मोहम्मद कैफ को हरा ऐतिहासिक जीत हासिल की थी।

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बीजेपी को अब गोरखपुर और फूलपुर के लिए योगी और केशव जैसा चेहरा चाहिए। इसी के चलते बीजेपी इन दोनों सीटों के लिए अभी से समीकरण बनाने में जुट गई है। वहीँ विपक्ष ने बीजेपी की घेराबंदी करने की पूरी तैयारी कर रखी है। ऐसे में अब देखना होगा कि योगी और बीजेपी किस तरह से विपक्ष की रणनीति को भेदकर कमल की जीत को बरकरार रखते हैं?

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