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ताकि ये कानून भी रवायत न बन जाय...

Dr. Yogesh mishr
Published on: 23 April 2018 1:48 PM IST
भारतीय खेल टीम अकसर ओलंपिक से खाली हाथ लौट आती है। लेकिन हम टीम के प्रदर्शन की आलोचना नहीं करते। टीम का स्वागत करते हैं। इस परंपरा ने तकरीबन हर बार टीम को खाली हाथ या कभी कभार एक-दो मेडल के साथ घर वापसी पर भी नसीहत नहीं देने दी। दिल्ली, सूरत, उन्नाव, एटा, मेरठ, कठुवा, रामपुर,इंदौर में बच्चियों के साथ रेप हुआ। हर घटना पिछली घटना से ज्यादा विभत्स रही। नर पिशाच वृत्ति का यह क्रम थमने का नाम नहीं ले रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बच्चियों के साथ दुराचार करने वाले को फांसी की सजा देने का कानून तैयार करने की दिशा में पहल की है। पर सिर्फ बच्चियों से साथ दुराचार को ही क्यों फांसी की सज़ा दी जाय ? दुराचार पर फांसी क्यों नहीं होनी चाहिए ? पर नए कानून में दुराचार के पुष्टि का भी कठोर मानदंड तैयार करना होगा। भारत में कानूनों के दुरुपयोग की कानूनों से भी बहुत अधिक नजीरें हैं।
दुराचार के किसी भी आरोप की तहकीकात जिस राज्य में यह वारदात हुई है उसके सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक स्तर के किसी अफसर से दो-तीन दिन में करवा ली जाय। तय समय में सजा में बाधक तत्वों-गवाहों, वकीलों, पुलिस की तफ्तीशों के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए। गलत आरोप में फंसाने वालों के खिलाफ भी छोटा ही सही पर दंड की व्यवस्था की जानी चाहिए। लेकिन सिर्फ इससे निरंतर बढ रहे यौनाचार की स्थिति पर नियंत्रण पाना आसान नहीं दिखता है। हत्या के खिलाफ मृत्युदंड है पर हत्याएं जारी हैं। वस्तुतः बच्चियों के साथ बढ रहे यौनाचार के सामाजिक पहलू की पड़ताल की भी जरुरत है। भारत में दुराचार महिलाओं के खिलाफ चौथा सर्वाधिक किया जाना अपराध है। वर्ष 2013 में 24929 रेप के मामले सामने आये जो साल 2015 में बढ़कर 34651 हो गये हैं यानी हर दिन 95 महिलाओं के साध दुराचार किया जा रहा है। मतलब हर 15 मिनट में देश में कहीं न कहीं दुरचार रो रहा है। दुराचार करने वाले अपराधियों में 95 फीसदी ऐसे हैं जो पीड़िता को पहले से जानते हैं। इसमें 27 फीसदी उनके पड़ोसी, 9 फीसदी परिवार के नजदीकी रिश्तेदार, 2 फीसदी लिव इन रिलेशन वाले या फिर पति और 22 फीसदी वे लोग हैं जो विवाह का झांसा देकर दुराचार करते हैं।
दुराचार की वारदातों की पड़ताल इस किंवदती को भी तोड़ती है कि जहां जितना शिक्षा होगी वहां ऐसी वारदाते उतनी  कम होंगी। मसलन एक साल में केरल में 1256 और बिहार में 1041 दुराचार के मामले सामने हैं। केरल पूर्णतया शिक्षित राज्य है। बिहार की जनसंख्या केरल से तीन गुना है।  दुराचार की वारदातों की वजह सेक्स या यौन सुख नहीं हो सकता है बल्कि, यह स्त्री शरीर के प्रति क्रूरतम हिंसा है समाज जितना हिंसक होगा, स्त्री के प्रति अपराध उतना ही बढ़ेगा। प्रतिशोध की भावना की जद में सबसे पहले स्त्री का शरीर ही आता है। एक समाज दूसरे समाज पर हमलावर होता है तो पहला हमला स्त्रियों की यौनिकता पर ही होता है। कभी- कभी सेक्स हमारे धर्म से जुड़ा था। इसे सुख मानकर धर्म हमें विपथगामी बनाने से रोकता है। पर वैश्वीकरण ने सेक्स को आनंद में तब्दील कर दिया। आनंद नकारात्मक संवेदना है यह दूसरों की पीड़ा को नज़रअंदाज करता है।  जबकि सुख में अनुकूलता प्रसन्नता और शांति सब समाई होती है।सेक्स को आनंद समझने की हमारी मानसिकता ने ब्रूटल सेक्स, वाइल्ड सेक्स, नेचुरल औऱ अननेचुरल तरीके के तमाम विकृतियां जनी हैं।
एक अध्ययन के मुताबिक साल 2016 में दुनिया की सिर्फ एक वेबसाइट से इतना पोर्न डाटा देखा गया कि अगर उसे पेन ड्राइव में रखा जाय तो इसके लिए 194,000,000 पेनड्राइव लगेंगी और इन्हें अगर एक के पीछे एक रखा जाय तो धरती से चंद्रमा तक की पूरी दूरी इससे तय हो जाएगी। साल 2017 में अकेले पोर्नहब नाम की वेबसाइट को 2800 करोड़ (28.5 बिलियन हिट्स) से ज्यादा के हिट्स मिले थे । यानी हर सेकेंड 1000 हिट्स और हर दिन 78.1 मिलियन हिट्स जो कि पूरे ब्रिटेन की जनसंख्या से ज्यादा है। एक साल में इस वेबसाइट पर कुल साढ़े चार अरब घंटे पोर्न देखा जाय जो 5,246 शताब्दियों के बराबर है।
एक दूसरे अध्ययन के मुताबिक अगर कोई पोर्न साइट देखने का आदी है तो संभल जाना चाहिए क्योंकि ये ड्रग्स की तरह का लत लगाने वाला नशा है। यह एग्रेसिव सेक्स, अप्राकृतिक सेक्स की तरफ ले जाता है। सेक्स के बारे में आपके विचार बदल देता है। यह आपके दिमाग को बदल देता है, हिंसा को बढावा देता है, मानव तस्करी को बढावा देता है, यह सेक्स लाइफ बर्बाद कर देता है, झूठ से भरा है। भारत में मोबाइल कनेक्शन की संख्या 117 करोड़ पहुंच गयी है। ब्राडबैंड कनेक्शन की संख्या 37.8 करोड़ के पार है, जबकि फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या 25 करोड़ पार कर चुकी है। हर पांच में से एक आदमी सोशल साइट और सर्च इंजन पर सिर्फ पोर्न साइट देखने आता है। तीस फीसदी इंटरनेट ट्राफिक पोर्न साइट से आता है। इसमें एक तिहाई महिलाएं भी शामिल हैं। ग्यारह साल की उम्र में बच्चे पोर्न साइट देखना शुरु कर देते हैं। इन स्थितियों में इस बात का आंदेशा बढ़ता है कि फांसी जैसे प्रावधानों के बाद सुबूत मिटाने के लिए हत्याओँ के मामले बढ सकते हैं। एक समय झूठ बोलना अपराध माना जाता था। लेकिन आज कालेज जाती अपनी बच्चियों, दफ्तर जाती अपनी पत्नी और बहनों के लिए हम ड़रे सहमे हुए हैं। हमें अपराधियों में समाये दंडमुक्ति का विश्वास तोड़ना होगा। यह सिर्फ कानून से नहीं टूट सकता इसके लिए समाजिक सहभागिता भी जरुरी है। दुराचारी की इज्जत पर भी उतना ही धब्बा लगना चाहिए जितना की बेवजह पीड़ित के ऊपर लगता है। उसका समाजिक बहिष्कार होना चाहिए। उसके मां-बाप, परिवार का भी सर शर्म से झुकना चाहिए। यह काम समाज करेगा।
यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि दुराचारी के लिए आजीवन कारावास और फांसी सरीखे कठोर दंड बनाने वाली सरकार, सरकार को संजीवनी देने वाले विपक्ष में किसी पार्टी ने दुराचार के अपने किसी आरोपी विधायक औऱ सांसद को बाहर का रास्ता नहीं दिखाया। एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 48 सांसदों-विधायकों पर महिला अपराध से जुड़े केस दर्ज हैं। इनमें 45 विधायक और 3 सांसद हैं। राजनीतिक दलों की मंशा का मतलब तभी समझ में आएगा जब वे यहां से शुरुआत करें नहीं तो भारतीय टीम की तरह इस तरह के कानूनों के स्वागत की रवायत एक बार फिर...।
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Dr. Yogesh mishr

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