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Video Crocodile Farming: जानिए क्या है 'मगरमच्छ खेती' का सच, कहाँ कहाँ इसके मांस को खाते हैं लोग, क्या कहता है भारत का कानून
Video Crocodile Farming: क्या आप जानते हैं कि मगरमच्छों की खेती कैसे होती है और किस किस देश में इसके मांस को खाया जाता है? आइये हम आपके इन सभी सवालों का जवाब लेकर आएं हैं।
Video Crocodile Farming: मगरमच्छों ने हमेशा मानव संस्कृति में एक विशिष्ट भूमिका निभाई है। उन्हें कुछ क्षेत्रों में पवित्र प्राणियों के रूप में पूजा जाता है तो कहीं मगरमच्छों के मांस और त्वचा के लिए उनका शिकार किया जाता था। वहीँ भोजन के अलावा,उनका इस्तेमाल धार्मिक या सजावटी उद्देश्यों के लिए भी किया जाता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मगरमच्छों की खेती कैसे होती है और किस किस देश में इसके मांस को खाया जाता है? आइये हम आपके इन सभी सवालों का जवाब लेकर आएं हैं।
मगरमच्छ खेती का पूरा सच
मगरमच्छ का इतिहास
1800 के दशक में मगरमच्छ की खाल के व्यावसायिक उपयोग के पहले इसे उत्तरी अमेरिका में पाया जाता था। गृहयुद्ध (1861-65) के ठीक बाद विशेष रूप से जूतों की मांग, बेल्ट, सैडलबैग, केस और इसी तरह की कई तरह की वस्तुओं की भी मांग अधिक थी। इस प्रकार, हजारों अमेरिकी घड़ियाल (एलीगेटर मिसिसिपेंसिस) का शिकार किया गया। चूंकि मांग जंगली मगरमच्छ संसाधन से अधिक हो गई थी, इसलिए फसल को मगरमच्छ की अन्य प्रजातियों को और दक्षिण (मेक्सिको और मध्य अमेरिका) में भी इसे निर्देशित किया गया था। लेकिन इसके बाद अधिकांश मगरमच्छों की आबादी बहुत कम हो गई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद और बाद के आर्थिक पुनरुद्धार के दौरान, मगरमच्छ की खाल फिर से मांग में थी। अफ्रीका में, नील मगरमच्छ (क्रोकोडायलस नीलोटिकस) का बड़ी संख्या में शिकार किया गया था। दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया और प्रशांत द्वीपों में, यूरोपीय बाजारों को संतुष्ट करने के लिए खारे पानी के मगरमच्छों और अन्य मगरमच्छ प्रजातियों की जंगली आबादी का शिकार तेज़ी से हुआ।
दक्षिण अमेरिका में, केमैन व्यावसायिक शिकार 1950 के दशक के अंत में शुरू हुआ, जिसकी शुरुआत ब्लैक केमैन (मेलानोसुचस नाइगर) से हुई, जिसकी त्वचा को केमैन में सबसे मूल्यवान माना जाता है। जब जंगली काले केमैन की आबादी कम हो गई और शिकार लाभदायक नहीं हुआ , तो अन्य केमैन प्रजातियों (मुख्य रूप से अमेज़ॅन बेसिन में केमैन क्रोकोडिलस) को लक्षित किया गया। कुछ प्रजातियों की खाल (जैसे बौना कैमन्स, पालेओसुचस एसपीपी।) पर बड़ी हड्डी जमा होने के कारण वो वाणिज्यिक रूप से मूल्यवान नहीं थे, और इसलिए स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाह के उपयोग को छोड़कर उनका शिकार नहीं किया गया था। यहाँ आपको बता दें कि काइमन या केमैन मध्य अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के दलदली भूमि पर निवास करता है जबकि मगरमच्छ केवल दक्षिण-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के पूर्वी क्षेत्रों में निवास करता है। इसके अलावा, दोनों में एक और मुख्य अंतर ये है कि काइमैन में एक बहुत बड़ा ऊपरी जबड़ा है जबकि मगरमच्छ के पास एक छोटा जबड़ा है।
हालाँकि, 1950, 1960 और 1970 के दशक के दौरान इस व्यापक, विश्वव्यापी शोषण के परिणामस्वरूप अधिकांश प्रजातियों की आबादी बहुत कम हो गई, और कुछ मामलों में उनकी सीमा के कुछ हिस्सों को हटा दिया गया।
बहुत लम्बी उम्र जीता है मगरमच्छ
मगरमच्छ समुद्र, नदियों तथा झीलों में पाए जाते हैं। इनकी खाल काफी खुरदरी होती है ये सरीसृप की श्रेणी में आते हैं। इनकी औसतन लंबाई करीब 14 फीट और वजन 300 किलोग्राम तक होता है। इनका शिकार ज़्यादातर छोटे केकड़े , मछलियां और मेंढक होते हैं। मगरमच्छ भले ही काफी फुर्ती से अपना शिकार करता हो लेकिन इसके शरीर को बहुत ज्यादा ऊर्जा की जरूरत नहीं होती है। इन्हे धुप में रहना बेहद पसंद है। ये कभी कभी पानी की सतह पर भी आराम से तैरते रहते हैं। इनकी संरचना कुछ ऐसी है कि ये हड्डियों तक को पचा लेते हैं। धरती पर पाया जाने वाला ये सबसे बड़ा सरीसृप है। ये भारत से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक में पाया जाता है। अगर बात करें इन औसत आयु की तो ये करीब 100 वर्ष तक जीते हैं।
कैसे होती है मगरमच्छ की खेती
1960 और 1970 के दशक में घटती जंगली आबादी के साथ, मगरमच्छ की खेती की अवधारणा ने गति पकड़नी शुरू की। ये वो समय था जब कई देशों ने मगरमच्छों की रक्षा के लिए कानून बनाया और जंगली प्रजातियों में व्यापार को विनियमित करने के लिए CITES को अधिनियमित (1975) किया गया। मगरमच्छ की खेती को न केवल जंगली आबादी पर दबाव कम करने के एक तरीके के रूप में देखा गया, बल्कि एक ऐसे साधन के रूप में भी देखा गया जिसके माध्यम से मगरमच्छों के संरक्षण के लिए व्यावसायिक प्रोत्साहन उत्पन्न किया जा सकता है।
"मगरमच्छ फार्म" शब्द का उपयोग किसी भी सुविधा का वर्णन करने के लिए किया जाता है जो वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए मगरमच्छों को पैदा करता है और / या बढ़ाता है। कड़ाई से बोलना, एक "मगरमच्छ फार्म" एक ऐसी सुविधा है जो जंगली अंडे, हैचलिंग या किशोरों को इकट्ठा करती है जिनके वयस्कता में जीवित रहने की कम संभावना होती है, और उन्हें कैद में रखा जाता है। CITES के नजरिए से, तीन उत्पादन प्रणालियां मगरमच्छों पर लागू होती हैं: पशुपालन, बंदी प्रजनन और जंगली फसल।
यहाँ आपको बता दें कि मगरमच्छ की खेती गहन पशुपालन का एक रूप है। पालने की आवश्यकताएं सभी मगरमच्छ प्रजातियों के लिए समान हैं, हालांकि कुछ पहलू अलग-अलग हैं और प्रजाति-विशिष्ट हैं। उदाहरण के लिए, सियामी मगरमच्छ को खारे पानी के मगरमच्छ के सापेक्ष एक अच्छी "खेत" प्रजाति माना जाता है।
कहाँ कहाँ मगरमच्छ को खाने की तरह खाया जाता है
थाईलैंड
मगरमच्छ को सबसे ज़्यादा थाईलैंड में खाया जाता है। जहाँ इन्हे जिंदा काटा जाता है। इसकी स्किन से जहाँ कीमती सामान बनाए जाते हैं वहीँ इनको बड़े पैमाने पर काटा जाता है। थाईलैंड में मगरमच्छों के स्लॉटर हाउस में इनकी स्किन, मीट और ब्लड का तेज़ी से इतनेमाल किया जाता है। इतना ही नहीं थाईलैंड में मगरमच्छों के कई सबसे बड़े फर्म्स मौजूद हैं। जिसको देखने टूरिस्ट भी भरी संख्या में वहां आते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार थाईलैंड में मगरमच्छ के 1000 से ज्यादा फर्म है। जहाँ लगभग 12 लाख मगरमच्छों को रखा जाता है।
वहीँ थाईलैंड के सबसे बड़े फर्म जिसका नाम श्री आयुथ्या क्रोकोडाइल फर्म है ये वहां लगभग 35 सालों से चल रहा है। ये फर्म हर तरह के काम करती है और साथ ही कई लोगों को रोज़गार भी दे रही है। साथ ही इससे देश की आमदनी भी काफी बढ़ी है। वहां की ओनर ने बताया कि मगरमच्छों को यहाँ लीगल तौर पर काटा जाता है। इतना ही नहीं उन्हें मगरमच्छ से तैयार किये गए प्रोडक्ट को बनाने और एक्सपोर्ट करने की भी अनुमति है। यहाँ मगरमच्छ का मीट प्रति किलो 570 रुपए में बिकता है। साथ ही साथ मगरमच्छों का पित्त और खून दवाओं में उपयोग में लाया जाता है। इसको सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है। इसके अलावा उनकी स्किन से हैंडबैग और लेदर सूट्स जैस प्रोडक्ट भी बनाए जाते हैं। जिसकी कीमत डेढ़ लाख रुपए (2356 डॉलर) तक होती है और मगरमच्छ की स्किन से बने सूट्स की कीमत करीब 4 लाख रुपए (5885 डॉलर) है।
चीन
पिछले कुछ सालों में चीन के वुहान के मीट मार्केट से तो सभी लोग परिचित हो ही चुके हैं। यहाँ हर तरह के जानवरों का मांस खरीदा और बेचा जाता है जिसमे मगरमच्छ का मांस भी काफी प्रचलित है।
सेंट्रल अफ्रीका
यहाँ के जंगलों में लोग विलुप्त होती प्रजातियों का शिकार कर उसका मांस मार्केट में बेचते हैं। जिसमे मगरमच्छ का मांस धड़ल्ले के बेचा और खरीदा जाता है। कहते हैं जिस दिन ये मार्किट लगती है वहां पैर रखने तक की जगह नहीं होती। इस मार्केट में बंदर, मगरमच्छ, अजगर और कई जानवरों का मांस बिकता है। ये सेंट्रल अफ्रीका का बंदका मार्केट है जो हर शुक्रवार को भारी भीड़ से भरा रहता है।
मगरमच्छ के अंगों का कहाँ और कैसे होता है इस्तेमाल
यूँ तो भारत में मगरमच्छों को मारना उनका मांस बेचना और खरीदना सख्त मना है लेकिन कई देशों में इनका मांस धड़ल्ले से बेचा और खरीदा जाता है। भोजन के अलावा,उनका इस्तेमाल धार्मिक या सजावटी उद्देश्यों के लिए किया जाता रहा है। आज के आधुनिक युग में इनकी चमड़ी से बेल्ट, पर्स, बैग, लेदर सूट वगैरह में किया जाता है। जिसके लिए लोग लाखों रूपए तक खर्च कर देते हैं।
भारत में मगरमच्छों की खेती
दक्षिण भारत में मगरमच्छों की सबसे बड़ी जंगली प्रजनन आबादी अमरावती जलाशय और उसमें बहने वाली चिन्नार, थेनार और पंबार नदियों में रहती है। ये ब्रॉड-थूंटेड मगर मगरमच्छ, जिन्हें मार्श मगरमच्छ और फारसी मगरमच्छ के रूप में भी जाना जाता है, भारत में पाए जाने वाले मगरमच्छों की तीन प्रजातियों में सबसे आम और व्यापक हैं। ये मछली, अन्य सरीसृप, छोटे और बड़े स्तनधारी खाते हैं और कभी-कभी मनुष्यों के लिए भी खतरनाक होते हैं। फ़िलहाल अमरावती, पेरियार और चिन्नार और अधिकांश अन्य बारहमासी नदियों में प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले मगरमच्छ (लुटेरा मगरमच्छ) के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसलिए इन मगरमच्छों के बंदी प्रजनन की परियोजना अमरावती में अस्तित्व में आई।
तमिलनाडु के अन्य क्रोकोडाइल सेंटर की तरह अमरावती में मगरमच्छ के कैप्टिव प्रजनन का उद्देश्य मगरमच्छ के अंडों को जंगली चंगुल से इकट्ठा करना और कैद में पालना और अपनी स्थिति को बहाल करने के लिए युवा मगरमच्छ को जंगल में छोड़ना है। अमरावती सागर मगरमच्छ फार्म, 1976 में स्थापित, भारत में सबसे बड़ी मगरमच्छ नर्सरी (कैद) तिरुप्पुर से पल्लादम और उदुमलपेट के माध्यम से सिर्फ 90 कि.मी. और एक किमी है।
भारत में मगरमच्छ या किसी वन्य जीव को मरना किस अपराध की श्रेणी में आता है
हमारे देश भारत में, वन्य जीव के संरक्षण और सुरक्षा को वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (‘अधिनियम’) के अंतर्गत रखा गया है। ये अधिनियम तब प्रकाश में आया जब पिछले सभी कानून जैसे जंगली पक्षी और पशु संरक्षण अधिनियम, 1912 इसके लिए नाकाफी लगे। फिलहाल नए कानून ने पिछले कानून की सभी कमियों को दूर कर दिया। इसके अंतर्गत धारा 3 के तहत जानवरों को पकड़ना, मारना, बेचना, खरीदना, और साथ ही साथ उनके पक्षति (प्लमेज) (पंख) को रखना भी प्रतिबंधित है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के जून 2009 के आकलन के अनुसार संकटग्रस्त प्रजातियों की “रेड डाटा सूची” / लाल सूची में इसे मगरमच्छ को “असुरक्षित (Vulnerable या VU)” श्रेणी मे रखा था। वहीँ मगरमच्छ को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के सूची I के तहत संरक्षित किया गया है। वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत वन्य जीव को किसी भी तरह की हानि पहुंचना अपराध की श्रेणी में आता है। जिसके लिए सजा का प्रावधान है।
कितने साल की होती है सजा
भारत में मगरमच्छ की संख्या को बढ़ने पर सरकार ज़ोर दे रही है साथ ही इसके लिए विशेष कानून भी है जो वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत आता है जिसकी धारा 16 (सी) के तहत जंगली पक्षियों या सरीसृपों को नुकसान पहुंचाना दंडनीय अपराध है साथ ही अगर कोई उनके अंड़ों को नुकसान पहुंचाता है या घोंसलों को नष्ट करने का प्रयास करता है तो ये सब अपराध है। ऐसा करने पर दोषी पाए गए व्यक्ति को 3 से 7 साल का कारावास और 25,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।