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Loksabha Election 2024: अलीगढ़ लोकसभा सीट पर सपा को आज तक नहीं मिली जीत, जानें यहां का समीकरण
Loksabha Election 2024 Aligarh Seats Details: मथुरा लोकसभा सीट जाट बहुल्य माना जाता है। इस सीट पर अब तक चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय से आते हैं। 2009 में जयंत चौधरी सांसद चुने गए थे। लेकिन, तब आरएलडी का भाजपा के साथ गठबंधन था।
Loksabha Election 2024: यूपी का अलीगढ़ शहर देश भर में चर्चा का केंद्र रहता है। यह शहर शिक्षा, उद्योग और राजनीति का संगम है। यहां का ताला उद्योग और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) शिक्षा के केंद्र के रूप में दुनियाभर में मशहूर हैं। यह शहर अपनी प्राचीन विरासत के लिए भी जाना जाता है। अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र भले ही मुस्लिम बाहुल्य माना जाता हो। लेकिन 1957 के बाद से आज तक यहां से एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिल सकी है। यहां की सियासत का ताला कभी लहर तो कभी ध्रुवीकरण की चाबी से खुलता है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) यहां की सियासी तासीर को गर्म करने के लिए इस्तेमाल होता रहता है। इस बार के चुनाव में भाजपा ने यहां के वर्तमान सांसद सतीश कुमार गौतम पर तीसरी बार दांव लगाया है। जबकि इंडिया गठबंधन के तहत सपा ने चौधरी विजेंद्र सिंह को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने हितेंद्र कुमार उर्फ बंटी उपाध्याय को उम्मीदवार बनाया है।
अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के सतीश कुमार गौतम ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे अजीत बलियान को 2,29,261 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में सतीश कुमार गौतम को 6,56,215 और अजीत बलियान को 4,26,954 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के बिजेंद्र सिंह को 50,880 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा के सतीश कुमार गौतम ने बसपा के अरविन्द कुमार सिंह को 2,86,736 वोट से हराकर एक दशक बाद फिर इस सीट पर कमल खिलाया था। इस चुनाव में सतीश कुमार गौतम को 5,14,624 और अरविन्द कुमार सिंह को 2,27,886 वोट मिले थे। जबकि सपा के जफर आलम को 2,26,284 और कांग्रेस के बिजेंद्र सिंह को 62,674 वोट मिले थे। अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 15 है। इसमें वर्तमान में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस लोकसभा क्षेत्र का गठन अलीगढ़ जिले के अलीगढ़ शहर, कोल, खैर, अतरौली और बरौली विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है। फिलहाल इन 5 सीटों पर भाजपा के विधायक हैं।
यहां जानें सपा उम्मीदवार चौधरी विजेंद्र सिंह के बारे में
चौधरी विजेंद्र सिंह अलीगढ़ की राजनीति में जाना-पहचाना नाम रहे हैं। चौधरी विजेंद्र सिंह कांग्रेस से एक बार सांसद और 3 बार विधायक रह चुके हैं। चौधरी विजेंद्र सिंह जाट नेता हैं। विजेंद्र सिंह ने 2020 में ही कांग्रेस पार्टी छोड़ी थी। इसके बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे। बता दें कि चौधरी विजेंद्र सिंह ने साल 2004 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर अलीगढ़ से चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में उन्होंने विजय हासिल की थी। मगर इसके बाद से वह लोकसभा के लगातार 3 चुनाव हारे। साल 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में तो चौधरी विजेंद्र सिंह जमानत भी नहीं बचा पाए थे।
अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र के बारे में
- यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
- यहां कुल 18,87,127 मतदाता हैं।
- जिनमें से 8,74,894 पुरुष और 10,12,116 महिला मतदाता हैं।
- अलीगढ़ लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 11,63,950 यानी 61.68 प्रतिशत मतदान हुआ था।
अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास
अलीगढ़ को 18वीं सदी से पहले कोल या कोइल के नाम से जाना जाता था। प्राचीन ग्रंथों में कोल को एक जनजाति या जाति, किसी स्थान या पर्वत का नाम या फिर ऋषि या राक्षस का नाम माना जाता है। जिले का शुरुआती इतिहास अस्पष्ट है। बताया जाता है कि 18वीं सदी में शिया कमांडर नजाफ खान ने कोल क्षेत्र पर कब्जा जमा लिया और इसे अलीगढ़ का वर्तमान नाम दिया। यहां के मशहूर अलीगढ़ किले को फ्रांसीसी इंजीनियरों द्वारा बनाया गया था। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) में उर्दू के विभागाध्यक्ष रहे प्रो. अख़लाक़ मुहम्मद ख़ान की रचनाओं के बदौलत दुनिया इन्हें ‘शहरयार' के नाम से जानती है। शहरयार ने लिखा है कि-
‘क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में
आईना हमें देख के हैरान सा क्यूँ है।’
अलीगढ़ की सियासी तस्वीर भी कुछ ऐसी ही है। अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय AMU से पढ़कर निकले चेहरे राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री सहित तमाम अहम कुर्सियों तक पहुंचे हैं। दिल्ली से अलीगढ़ की रोड कनेक्टिविटी बेहतर होने के कारण यह दूरी महज कुछ घंटों की है। इसलिए, यहां की जनता को भी राष्ट्रीय राजनीति का मिजाज ही भाता है। यमुना एक्सप्रेसवे, दिल्ली-हावड़ा एनएच-91 सिक्स लेन से जुड़ने के कारण अलीगढ़ में उद्योग को काफी बढ़ावा मिलता है। अलीगढ़ में 1971 से अब तक 21 दंगे हो चुके हैं और 16 बार कर्फ्यू लग चुका है। बाहर से बने 'परसेप्शन' से इतर अहम तथ्य यह भी है कि अलीगढ़ से आज तक एक ही मुस्लिम चेहरा संसद तक पहुंचा है। वह भी 1957 में जब यहां से दो लोग चुने जाते थे।
सत्यपाल मलिक बने 1989 में सांसद
आजादी से लेकर अब तक हुए लोकसभा चुनावों में अलीगढ़ ने राष्ट्रीय दलों से उतरे चेहरों को ही जिताकर संसद भेजा है। 7 बार महिलाएं जीती हैं। पहले दो चुनाव यहां कांग्रेस ने जीते। 1962 में रिब्लकिन पार्टी ऑफ इंडिया से बुद्ध प्रिय मौर्य ने उम्मीदवारी ठोंकी। इस दल का नाता डॉ़ भीमराव आंबेडकर से था। बीपी मौर्य का दलित-मुस्लिम एकता का नारा काम कर गया और कांग्रेस यहां से हार गई। पिछले कुछ साल में एमएयू के संदर्भ में चर्चा में रहे राजा महेंद्र प्रताप सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। योगी सरकार ने हाल में जाट राजा महेंद्र सिंह के नाम राज्य विश्वविद्याल भी अलीगढ़ में स्थापित किया है। 1967 में बाजी चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल (BKD) के हाथ लगी। यहां से शिव कुमार शास्त्री जीते। 1971 तक कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी और एक धड़े की अगुआई कर रही थीं इंदिरा गांधी। 'गरीबी हटाओ' के इंदिरा गांधी के नारे पर पूरा देश रीझ गया। लेकिन अलीगढ़ की हवा को एक घटना ने बदल दिया। कांग्रेस ने यहां से मोहम्मद यूनुस सलीम को उम्मीदवार बनाया। शिव कुमार शास्त्री फिर BKD के उम्मीदवार थे। चुनाव के दिन अलीगढ़ में दंगा हो गया। आजादी के बाद इस शहर में यह पहला बड़ा दंगा था। एक हफ्ते का कर्फ्यू लगाना पड़ा। मतदान आगे बढ़ा। दंगों ने सामाजिक ताना-बाना उधेड़ दिया और सांप्रदायिक विभाजन और ध्रुवीकरण का सुर मुखर हो गया। 36 हजार वोटों से शास्त्री ने कांग्रेस को फिर पटखनी दे दी। 1977 और 1980 में अलीगढ़ ने जनता दल का साथ दिया तो 1984 में इंदिरा की हत्या के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस की फिर वापसी हुई। 1989 में बोफोर्स घोटाले के शोर के बीच सत्यपाल मलिक जनता दल के टिकट पर यहां सांसद बने। हालांकि, 1996 में जब वह सपा से लड़े तो 40 हजार वोट पर ही सिमट गए।
1991 में शीला गौतम ने पहली बार खिलाया कमल
अयोध्या में राममंदिर का मुद्दा 90 दशक में राष्ट्रीय स्वरूप ले चुका था। इस आंदोलन के प्रमुख चेहरों में शुमार कल्याण सिंह का गृहक्षेत्र अतरौली अलीगढ़ लोकसभा सीट का ही हिस्सा है। हिंदू-मुस्लिम तनाव का दायरा बढ़ता जा रहा था। 90-91 में अलीगढ़ में भी माहौल खराब हो गया। अलीगढ़ में दोनों ही साल अलग-अलग दिनों को मिलाकर एक-एक महीने का कर्फ्यू भी लगा। इसने धार्मिक ध्रुवीकरण को यहां की सियासत का अनिवार्य तत्व बना दिया। 1991 में उद्योगपति परिवार से आने वाली शीला गौतम ने यहां पहली बार कमल खिलाया। इसके बाद अलीगढ़ की राजनीति में भगवा राजनीति और चटख होती गई। लगातार चार चुनावों में शीला को अलीगढ़ ने भाजपा के टिकट पर संसद भेजा। इस पर 2004 में ब्रेक लगाया कांग्रेस ने। जाट बिरादरी से आने वाले बिजेंद्र सिंह ने 2700 वोटों के नजदीकी मुकाबले में शीला को हरा दिया। तीसरे नंबर पर रहे बसपा के जयवीर सिंह भी 7,000 वोट से ही पीछे थे। 2009 में बसपा ने जयवीर की पत्नी राजकुमारी चौहान को उम्मीदवार बनाया। सपा ने मुस्लिम उम्मीदवार उतारा, कांग्रेस व भाजपा भी मजबूती से लड़ी। चतुष्कोणीय मुकाबले में महज 14.38 प्रतिशत वोट पाकर राजकुमारी सांसद बन गईं। बसपा का खाता खुला और 16 हजार वोटों के अंतर से सपा खाते खोलने से चूक गई।
अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण
अलीगढ़ लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां करीब 4,00,000 मुस्लिम मतदाता हैं। ब्राह्मण, ठाकुर व वैश्य की सम्मिलित आबादी लगभग 5,00,000 है। जबकि 2,00,000 जाटव और इतने ही जाट मतदाता हैं। इसके अलावा 2,50,000 से 3,00,000 लोध, पाल आदि बिरादरी के मतदाता हैं। इस लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाला अतरौली विधानसभा कल्याण सिंह का गढ़ है। लोध वोटर यहां बहुतायत में हैं। बता दें कि 2019 में वोटों का बंटवारा रोकने के लिए सपा, बसपा व रालोद एक साथ आए और जाट उम्मीदवार अजीत बालियान को उतारा। जातीय गणित के लिहाज से यह सबसे मजबूत समीकरण था। लेकिन दूसरी ओर AMU में जिन्ना की तस्वीर के विरोध से लेकर तिरंगा यात्रा तक के पक्ष में मुखर सतीश गौतम फिर भाजपा उम्मीदवार थे। जातीय गणित पर भावनाओं का समीकरण भारी पड़ा गया।
अलीगढ़ लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद
- कांग्रेस से चांद सिंघल और नरदेव स्नाटक 1952 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से चांद सिंघल और जमाल ख्वाजा 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- रिब्लकिन पार्टी ऑफ इंडिया से बुद्ध प्रिया मौर्य 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भारतीय क्रांति दल से शिव कुमार शास्त्री 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से नवाब सिंह चौहान 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से इंद्रा कुमारी 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से उषा रानी तोमर 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
- जनता दल से सत्यपाल मलिक 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से शीला गौतम 1991, 1996, 1998 और 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
- कांग्रेस से बिजेंद्र सिंह 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- बसपा से राज कुमारी चौहान 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
- भाजपा से सतीश कुमार गौतम 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।