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Loksabha Election 2024: अमेठी लोकसभा क्षेत्र की जनता अबकी किसको भेजेगी दिल्ली? जानें यहां का सियासी समीकरण

Loksabha Election 2024 Amethi Seats Details: लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी संजय गांधी और इंदिरा गांधी की तरह अपनी जमीन वापस लेने अमेठी फिर आएंगे? जानें यहां का इतिहास

Sandip Kumar Mishra
Published on: 8 April 2024 7:02 PM IST (Updated on: 14 May 2024 7:26 PM IST)
Loksabha Election 2024: अमेठी लोकसभा क्षेत्र की जनता अबकी किसको भेजेगी दिल्ली? जानें यहां का सियासी समीकरण
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Loksabha Election 2024: दिल्ली से 700 किमी दूरी पर स्थित अमेठी लोकसभा सीट कभी गांधी परिवार का गढ़ रहा है। लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में इस क्षेत्र के मतदाताओं ने 5 साल से लगातार संघर्ष कर रही स्मृति इरानी के पक्ष में भरपूर मतदान कर दिल्ली भेज दिया। इस चुनाव में स्मृति इरानी ने राहुल गांधी को 55,120 वोटों से हराया था। स्मृति इरानी को 4,68,514 और राहुल गांधी को 4,13,394 वोटो मिले थे। राहुल गांधी के इस हार से कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की राजनीतिक चमक ही धूमिल हो गई। इस बार फिर भाजपा ने स्मृति इरानी को अमेठी से उम्मीदवार के रूप में उतारा है। लेकिन कांग्रेस अब तक तय नहीं कर सकी है कि वह किसे चेहरा बनाए जिसका हाथ पकड़कर अमेठी की जनता दिल्ली पहुंचा दे। भाजपा ने लोकसभा चुनाव 2014 में अमेठी से स्मृति इरानी को उम्मीदवार के रूप में उतारा था। हालांकि, उस चुनाव में राहुल गांधी ने 1,07,903 वोटों से स्मृति इरानी को हरा दिया था। लेकिन, उनके वोटों में भारी गिरावट आ गई।


अमेठी लोकसभा सीट पर 2014 में भाजपा पहुंची दूसरे स्थान पर

लोकसभा चुनाव 2009 में जहां उन्हें कुल वोटों के 71.78 फीसदी वोट मिले थे तो 2014 में यह मत प्रतिशत घटकर 46.71 हो गया। पर वह अंतर 2009 के 3.70 लाख वोटों के अंतर की तुलना में काफी कम था। इतना ही नहीं 2009 में तीसरे स्थान पर रही भाजपा के प्रत्याशी प्रदीप कुमार सिंह को मिले 5.81 प्रतिशत की तुलना में स्मृति ईरानी को 34.38 प्रतिशत वोट मिले। अब भाजपा वहां तीसरे स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच गई थी। राहुल गांधी को जीत जरूर मिली पर यह ज़ाहिर होने लगा कि नेहरू-गांधी परिवार का जादू इस इलाके से खत्म हो रहा है। उस चुनाव के बाद स्मृति ईरानी मोदी सरकार के मंत्रीमंडल में शामिल हो गईं। लेकिन उन्होंने अमेठी से नाता नहीं तोड़ा। शायद इसी का फल उनको लोकसभा चुनाव 2019 में मिला था। अमेठी लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 37 है। इसमें वर्तमान में 5 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इस लोकसभा क्षेत्र का गठन अमेठी जिले के तिलोई, जगदीशपुर ,गौरीगंज व अमेठी और रायबरेली जिले के सलोन विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है। फिलहाल इन

5 में से 3 सीटों पर भाजपा और 2 पर समाजवादी पार्टी के विधायक हैं। यह लोकसभा क्षेत्र सुलतानपुर से अलग होकर 1967 में अस्तित्व में आया था। यहां कुल 17,43,515 मतदाता हैं। जिनमें से 8,18,812 पुरुष और 9,24,563 महिला मतदाता हैं। बता दें कि अमेठी लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,42,956 यानी 54.08 प्रतिशत मतदान हुआ था।

अमेठी लोकसभा क्षेत्र का राजनीति इतिहास

अमेठी लोकसभा सीट के पड़ोस में मौजूद रायबरेली से जब 1967 में इंदिरा गांधी चुनाव लड़ने आईं । तो कांग्रेस ने गांधी परिवार के करीबी उन्नाव के रहने वाले विद्याधर वाजपेयी को वहां से उम्मीदवार बनाया। जनता ने उन्हें सर-माथे पर बिठाया। 1971 में विद्याधर वाजपेयी की जीत इतनी एकतरफा थी कि बाकी सभी उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई। कांग्रेस को यहां 62 फ़ीसदी वोट मिले। दूसरे पायदान पर रहे जनसंघ को 13 प्रतिशत से भी कम वोटों से संतोष करना पड़ा था। इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपने बड़े बेटे संजय को उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार करने के लिए राजनीति में उतारने का फैसला किया। उनके लिए अमेठी लोकसभा सीट चुनी गयी। देश में लगे इमजरेंसी के बीच नवंबर 1976 में संजय अमेठी पहुंचे और कस्बे से सटे खरौना गांव में सड़क बनाने के लिए फावड़ा उठा लिया। बात इंदिरा के ताकतवर बेटे संजय की थी तो पूरे देश से कांग्रेस कार्यकर्ता हाथ बंटाने चले आए, प्रशासन लग गया। 45 दिन तक चले इस श्रमदान से गांव में तीन सड़कें भी बनीं और पूरे देश में सुर्खियां भीं। हालांकि, बेहतर छवि बनाने का यह कवायद इमजरेंसी से उपजे गुस्से को शांत नहीं कर सकी। 1977 में हुए चुनाव में अमेठी ने संजय की लॉन्चिंग खराब कर दी। यहां से जनता पार्टी के रवींद्र सिंह जीते। हालांकि, 1980 में अमेठी ने इरादा बदला और जिस संजय को पहले 26 प्रतिशत वोटों से हराया था, उन्हें 40 फीसदी वोटों के अंतर से जिताकर दिल्ली भेज दिया।

संजय के बाद हुई राजीव गांधी की एंट्री



संजय गांधी की चुनाव के कुछ महीनों बाद विमान दुर्घटना में मौत हो गई। अमेठी में उनकी राजनीतिक विरासत संभालने के लिए इंदिरा ने अपने छोटे बेटे राजीव गांधी को भेजा। 1981 में हुए उपचुनाव में संजय की सहानुभूति और राजीव के स्वागत में अमेठी एकमत हो गया। कुल पड़े वोटों में 84 प्रतिशत राजीव के खाते में गए। लोकदल के टिकट पर बिहार से शरद यादव चुनाव लड़ने आए, लेकिन, वह 7 प्रतिशत वोट भी नहीं पा सके। राजीव 77 प्रतिशत वोटों के अंतर से जीते जो वोट प्रतिशत के लिहाज से यहां की सबसे बड़ी जीत है। संजय की मौत के बाद गांधी परिवार में दरार बढ़ी और संजय की पत्नी मेनका गांधी ने अलग सियासी रास्ता चुना। जिस अमेठी से उनके पति ने सियासत शुरू की थी, 1984 में वहां उनकी राजनीतिक विरासत पर मेनका गांधी ने दावा ठोक दिया। इंदिरा की हत्या के गम और राजीव के कद के आगे अमेठी ने किसी और गांधी की ओर नहीं देखा। राजीव को 83 प्रतिशत से अधिक वोट मिले और मेनका को 11 प्रतिशत वोट मिले थे। 1989 में जब राजीव पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा तो वीपी सिंह ने मोर्चा खोला । तब भी अमेठी पीएम राजीव के साथ ही रहा। नेहरू परिवार को गांधी सरनेम देने वाले महात्मा गांधी के पोते राजमोहन गांधी भी 1989 में चुनौती देकर नतीजा नहीं बदल पाए। 50 प्रतिशत वोटों के अंतर से राजीव फिर जीते। तीसरे नंबर पर रहे बसपा के संस्थापक कांशीराम को महज 6 प्रतिशत वोट मिले थे। 1991 में भी राजीव को जीत मिली। लेकिन नतीजा आने से पहले बम ब्लास्ट में वे जान गंवा चुके थे।

संजय सिंह ने पहली बार खिलाया कमल

1991 के उपचुनाव व 1996 के आम चुनाव में भी कांग्रेस की जीत कायम रही। हालांकि, कांग्रेस के कभी सिपाहसालार रहे संजय सिंह ने 1998 में भाजपाई होकर अमेठी में पहली बार कमल खिलाया था। लेकिन 1999 में राजीव की पत्नी सोनिया गांधी ने यहां से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत किया तो जनता ने हाथों-हाथ लिया। 2004 में सोनिया ने रायबरेली में सास की विरासत संभाली और बेटे राहुल गांधी की अमेठी से राजनीतिक पारी शुरू करवाई। राहुल ने यहां जीत की हैटट्रिक लगाई।

लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस की अपनी जमीन बचाने की है लड़ाई

लोकसभा चुनाव 2024 में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या राहुल गांधी संजय गांधी और इंदिरा गांधी की तरह अपनी जमीन वापस लेने अमेठी फिर आएंगे? 1977 में हार के बाद 1980 में संजय ने अमेठी व इंदिरा ने रायबरेली में दोबारा चुनाव लड़कर जीत हासिल की थी। हालांकि, अमेठी को लेकर गांधी परिवार व कांग्रेस का असमंजस व अनिर्णय जितना लंबा खिंच रहा है, मुश्किलें भी उतनी बढ़ रही हैं। विधानसभा चुनाव 2017 के बाद अमेठी की किसी विधानसभा सीट पर कांग्रेस का खाता नहीं खुला है। कांग्रेस तिलोई, सलोन व जगदीशपुर में लड़ी और तीनों हारी। 2022 में भी ये तीनों सीटें भाजपा जीती। अमेठी और गौरीगंज सपा ने जीता। हालांकि, गौरीगंज के विधायक राकेश प्रताप सिंह खुलकर अब भाजपा के पाले में हैं और अमेठी की विधायक महाराजी प्रजापति का पलड़ा भी सत्ता की ओर झुका हुआ है। इन हालात में चुनाव की तस्वीर पूरी तरह से गांधी परिवार की उम्मीदवारी पर टिकी है।

अमेठी लोकसभा में जातीय समीकरण

अमेठी लोकसभा सीट के जातीय समीकरणों की बात करें तो यहां पर सबसे अधिक दलित मतदाताओं की भागीदारी है, जिनकी संख्या करीब 26 फीसदी है। इनके अलावा करीब 20 फीसदी मुस्लिम, 18 प्रतिशत ब्राह्मण, 11 प्रतिशत क्षत्रिय हैं। इस सीट पर 10 प्रतिशत कुर्मी- लोध और 16 फीसदी मौर्य- यादव हैं, जो किसी भी प्रत्याशी की हार जीत में अहम भूमिका निभाते हैं।

अमेठी लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से विद्याधर वाजपेयी 1967 और 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से रवीन्द्र प्रताप सिंह 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से संजय गांधी 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राजीव गांधी 1981, 1984, 1989 और 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से सतीश शर्मा 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से संजय सिंह 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से सोनिया गांधी 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।
  • कांग्रेस से राहुल गांधी 2004, 2009 और 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से स्मृति इरानी 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनी गईं।


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Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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