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Election 2024: पूर्वांचल की दो सीटों पर बदला समीकरण, अखिलेश की सियासी चाल से घिरीं अनुप्रिया पटेल और रिंकी कोल
Lok Sabha Election 2024: इन दोनों दिग्गज उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में उतरने से पूर्वांचल की इन दो लोकसभा सीटों पर अब चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं।
Lok Sabha Election 2024: समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने पूर्वांचल की दो महत्वपूर्ण लोकसभा सीटों पर बड़ा सियासी खेल कर दिया है। रविवार को सपा मुखिया ने अपनी आखिरी सूची जारी करते हुए मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज लोकसभा क्षेत्रों के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान कर दिया। सबसे महत्वपूर्ण सीट मिर्जापुर है जहां सपा ने पूर्व में घोषित प्रत्याशी को बदलते हुए भदोही से भाजपा के मौजूदा सांसद रमेश बिंद को चुनावी अखाड़े में उतार दिया है।
उल्लेखनीय बात यह है कि इस लोकसभा क्षेत्र में एनडीए की ओर से अपना दल (एस) की मुखिया और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल चुनाव मैदान में उतरी हैं।
इसके साथ ही सपा ने रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट से भाजपा के पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार को टिकट दिया है। इन दोनों दिग्गज उम्मीदवारों के चुनाव मैदान में उतरने से पूर्वांचल की इन दो लोकसभा सीटों पर अब चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल गए हैं। रॉबर्ट्सगंज में अपना दल (एस) ने अपनी मौजूदा विधायक रिकी कोल को चुनाव मैदान में उतारा है।
टिकट कटने से नाराज थे बीजेपी सांसद रमेश बिंद
मिर्जापुर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने पहले राजेंद्र एस बिंद को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान किया था मगर उन्हें अनुप्रिया पटेल के खिलाफ मजबूत प्रत्याशी नहीं माना जा रहा था। दूसरी ओर भदोही के मौजूदा भाजपा सांसद रमेश बिंद पार्टी की ओर से टिकट काटे जाने से भीतर ही भीतर काफी नाराज चल रहे थे।
भाजपा ने इस बार उनका टिकट काटकर निषाद पार्टी के विनोद बिंद को भदोही से चुनाव मैदान में उतार दिया है। भदोही की सीट सपा ने तृणमूल कांग्रेस को दे दी है और तृणमूल कांग्रेस ने इस सीट पर ललितेश पति त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारा है।
प्रत्याशी बदलने से अनुप्रिया की मुश्किलें बढ़ीं
भदोही से टिकट काटे जाने से नाराज रमेश बिंद टिकट कटने के बाद बगावती तेवर अपनाए हुए थे और उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव से संपर्क साधा। रमेश बिंद ने शनिवार को समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण की और रविवार को उन्हें पार्टी का टिकट भी मिल गया। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बड़ी सियासी चाल चलते हुए राजेंद्र एस बिंद के स्थान पर रमेश बिंद को मिर्जापुर सीट से उतारने का ऐलान कर दिया।
सपा मुखिया अखिलेश यादव का यह कदम सियासी नजरिए से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि मिर्जापुर-भदोही क्षेत्र में रमेश बिंद की मजबूत पकड़ मानी जाती है। माना जा रहा है कि उनके चुनाव मैदान में उतरने से अनुप्रिया पटेल की सियासी राह अब आसान नहीं रह गई है। इस लोकसभा क्षेत्र में आखिरी चरण में एक जून को मतदान होना है और इसलिए उनके पास अभी चुनाव प्रचार के लिए थोड़ा वक्त भी बचा हुआ है।
आखिर कौन है रमेश बिंद
भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में वीरेंद्र सिंह मस्त का टिकट काटकर रमेश बिंद को भदोही लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा था और इस चुनाव में रमेश बिंद को कामयाबी हासिल हुई थी। इससे पूर्व रमेश बिंद मिर्जापुर की मझवां विधानसभा सीट से तीन बार बसपा विधायक रह चुके हैं।
उन्होंने 2019 में ही भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी और भदोही सीट से टिकट पाने में कामयाब रहे थे। 2019 के चुनाव में रमेश बिंद ने सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशी और पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा को हराकर जीत हासिल की थी। इस बार भी उन्होंने टिकट पाने के लिए पूरा जोर लगा रखा था मगर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने उनका टिकट काट दिया था।
रॉबर्ट्सगंज में भी सपा ने किया खेल
इसके साथ ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर भी पूर्व सांसद छोटेलाल खरवार को चुनाव मैदान में उतार कर एनडीए को कड़ी चुनौती दे दी है। एनडीए के सीट बंटवारे में यह सीट अपना दल (एस) के खाते में गई है और पार्टी ने इस सीट पर पूर्व विधायक राहुल कोल की पत्नी और मौजूदा विधायक रिकी कोल को चुनाव मैदान में उतारा है।
2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर अपना दल (एस) के पकौड़ी लाल कोल ने जीत हासिल की थी मगर अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल ने इस बार उनका टिकट काटकर उनकी बहू रिकी कोल को टिकट दे दिया है।
खरवार बढ़ाएंगे रिकी कोल की मुसीबत
छोटेलाल खरवार को भी मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा है। उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर इस सीट पर जीत हासिल की थी और अब इस बार वे सपा के टिकट पर रिकी कोल को कड़ी चुनौती दे सकते हैं।
समाजवादी पार्टी ने अपने आखिरी दो टिकटों के जरिए अपना दल (एस) की मजबूत घेराबंदी की है। माना जा रहा है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस कदम से अनुप्रिया पटेल और रिंकी कोल की सियासी राह अब आसान नहीं होगी।