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Election 2024 : हरियाणा में चुनाव तक नहीं खत्म हो सका कांग्रेस का घमासान, विरोधी गुट ने नहीं किया हुड्डा के चहेतों का प्रचार
लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हो रहा है मगर कांग्रेस की आपसी गुटबाजी पार्टी के लिए महंगी पड़ती दिख रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।
Election 2024 : हरियाणा में लोकसभा की 10 सीटों पर शनिवार को मतदान होने वाला है। इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि कुरुक्षेत्र सीट आप प्रत्याशी को दी गई है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला हो रहा है मगर कांग्रेस की आपसी गुटबाजी पार्टी के लिए महंगी पड़ती दिख रही है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। ऐसे में भाजपा ने इस बार भी सभी सीटों पर चुनाव प्रचार में पूरी ताकत लगाई है।
दूसरी ओर कांग्रेस गुटबाजी के चलते चुनाव प्रचार में पिछड़ी हुई दिखी। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इस बार अपने आठ करीबियों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने करीबी कांग्रेस नेताओं को जीत दिलाने के लिए खूब मेहनत की है मगर दूसरी ओर कुमारी शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी का गुट हुड्डा के करीबियों के चुनाव प्रचार से पूरी तरह कटा रहा। ऐसे में मौजूदा लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को लेकर पहले से ही सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस की यह गुटबाजी पार्टी के लिए महंगी साबित हो सकती है।
प्रचार से कटा रहा हुड्डा विरोधी गुट
हरियाणा का लोकसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए काफी अहम माना जा रहा है जहां एक ओर भाजपा पिछले चुनाव का प्रदर्शन एक बार फिर दोहराना चाहती है,वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के लिए यह चुनाव वजूद बचाने की लड़ाई माना जा रहा है। लोकसभा चुनाव के नतीजे आगामी विधानसभा चुनाव पर भी असर डालने वाले साबित होंगे। यही कारण है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं।
कांग्रेस के टिकट बंटवारे में हुड्डा की खूब चली और इसी का नतीजा था कि वे कांग्रेस के कोटे की नौ में से आठ सीटों पर अपने करीबियों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। उनके विरोधी गुट से सिर्फ पूर्व केंद्रीय मंत्री शैलजा सिरसा से टिकट पाने में कामयाब हो सकीं।
अपने करीबियों के चुनाव प्रचार में हुड्डा ने इस बार खूब पसीना बहाया है जबकि दूसरी ओर शैलजा, रणदीप सुरजेवाला और किरण चौधरी के त्रिगुट ने हुड्डा के करीबियों के चुनाव प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई। शैलजा ने अपने चुनाव क्षेत्र में प्रचार के लिए हुड्डा को बुलाया तक नहीं। इसी से समझा जा सकता है कि चुनाव के दौरान भी दोनों गुटों के बीच तलवारें खिंची रहीं जिसका नतीजे पर बड़ा असर पड़ सकता है।
बेटे की जीत के लिए हुड्डा ने लगाई ताकत
हरियाणा के लोकसभा चुनाव में इस बार सबकी निगाहें रोहतक लोकसभा क्षेत्र पर लगी हुई हैं। इस लोकसभा सीट पर कांग्रेस ने दीपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव मैदान में उतारा है जो पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बेटे हैं। दीपेंद्र सिंह हुड्डा चौथी बार सांसद बनने के लिए चुनावी मैदान में उतरे हैं मगर भाजपा की ओर से उन्हें कड़ी चुनौती मिल रही है। बेटे को चुनाव जिताने के लिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने इस बार कई दिनों तक रोहतक में डेरा डाले रखा।
पिछले लोकसभा चुनाव में दीपेंद्र सिंह हुड्डा को भाजपा के हाथों हार का सामना करना पड़ा था और इसलिए इस बार की सियासी लड़ाई उनके लिए काफी अहम मानी जा रही है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा का विरोधी गुट उनके बेटे के चुनाव प्रचार के लिए भी नहीं पहुंचा।
गृह क्षेत्र में भी शैलजा ने नहीं किया प्रचार
सोनीपत लोकसभा सीट पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपने करीबी सतपाल ब्रह्मचारी को टिकट दिलाया है। सियासी जानकारों का कहना है कि रोहतक में ब्राह्मणों का वोट हासिल करने के लिए हुड्डा ने ब्रह्मचारी को टिकट दिलाया।
हिसार सीट पर चुनाव लड़ रहे जयप्रकाश जेपी को भी हुड्डा का करीबी माना जाता है। हिसार कुमारी शैलजा का गृह क्षेत्र है मगर इसके बावजूद वे जयप्रकाश का चुनाव प्रचार करने के लिए हिसार नहीं पहुंचीं। भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से अपनी पूर्व सांसद बेटी श्रुति चौधरी का टिकट कटने से नाराज किरण चौधरी ने भी इस लोकसभा क्षेत्र में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।
आप का प्रचार मगर कांग्रेस से परहेज
एक और उल्लेखनीय बात यह है कि कांग्रेस में हुड्डा के विरोधी गुट ने कुरुक्षेत्र में आप प्रत्याशी तक का प्रचार किया मगर कांग्रेस प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार से लगभग कटे रहे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला कुमारी शैलजा के चुनाव क्षेत्र सिरसा के बाद सबसे ज्यादा कुरुक्षेत्र में ही सक्रिय दिखे। हालांकि इसका एक कारण यह भी माना जा रहा है कि सुरजेवाला की विधानसभा सीट कैथल भी इसी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है।
इन दो सीटों के अलावा वे किसी तीसरी लोकसभा सीट पर प्रचार करते हुए नहीं दिखे। इससे समझा जा सकता है कि कांग्रेस की गुटबाजी ने कितना बड़ा असर दिखाया है। कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व कोशिश करने के बावजूद पार्टी की इस गुटबाजी को खत्म करने में कामयाब नहीं हो सका। जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की यह गुटबाजी पार्टी के लिए महंगी साबित हो सकती है। गुटबाजी से कई लोकसभा सीटों पर पार्टी का समीकरण प्रभावित होता दिख रहा है।
गुटबाजी का दिख सकता है बड़ा असर
इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की इस गुटबाजी का दूसरे दलों की ओर से फायदा उठाने की कोशिश भी की जा रही है। दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी और इनेलो को इसका फायदा हो सकता है। जेजेपी की ओर से तो किरण चौधरी को अपनी पार्टी की सदस्यता लेने का खुला आमंत्रण तक दे दिया गया था। वैसे जेजेपी और इनेलो की कमजोर पकड़ के कारण हरियाणा में मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है।
हरियाणा की आठ लोकसभा सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है जबकि कुरुक्षेत्र में भाजपा और आप प्रत्याशी के बीच भिड़ंत हो रही है। हिसार लोकसभा सीट का मामला कुछ अलग है क्योंकि इस सीट पर चौटाला कुनबे की सुनैना चौटाला और नैना चौटाला के चुनाव मैदान में उतरने से दिलचस्प मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है। कांग्रेस की यह गुटबाजी कई सीटों पर भाजपा के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है।