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Loksabha Election 2024: इटावा लोकसभा सीट पर किसी को दुबारा नहीं मिला मौका, कांशीराम यहीं से जीतकर पहली बार पहुंचे दिल्ली
Loksabha Election 2024 Etawah Seats Details: इटावा की जनता का सियासी रूख को परखना सियासतदानों के लिए हमेशा मुश्किल भरा रहा है। यहां के लोगों को सियासतदानों के चेहरों को परखने की कसौटी इतनी कड़ी है कि एक बार जीतने के बाद अगली बार के लिए कोई भी खुद को सुरक्षित समझने की स्थिति में नहीं रहता।
Loksabha Election 2024: यमुना नदी के किनारे पर बसा इटावा जिले का अपना अलग राजनीतिक पहचान है। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का गृह जनपद है। इटावा लोकसभा सीट से 90 के दशक में बसपा संस्थापक कांशीराम चुनाव जीतकर दिल्ली पहुंचे थे। इटावा की जनता का सियासी रूख को परखना सियासतदानों के लिए हमेशा मुश्किल भरा रहा है। यहां के लोगों को सियासतदानों के चेहरों को परखने की कसौटी इतनी कड़ी है कि एक बार जीतने के बाद अगली बार के लिए कोई भी खुद को सुरक्षित समझने की स्थिति में नहीं रहता।
अब तक के लोकसभा चुनावों में एक चेहरे को छोड़कर कोई भी ऐसा नहीं हुआ, जिसे इटावा की जनता ने लगातार मौका दिया हो। भाजपा ने वर्तमान सांसद रामशंकर कठेरिया पर दुबारा दांव लगाया है। जबकि सपा ने जितेंद्र दोहरे को उम्मीदवार बनाया है। वहीं बसपा ने हाथरस की पूर्व सांसद सारिका सिंह को चुनावी मैदान में उतारा है। सभी उम्मीदवार अपने-अपने समीकरण के तहत यहां के मतदाताओं को रिझाने में जुटे हुए हैं। अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो भाजपा के रामशंकर कठेरिया ने सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे कमलेश कठेरिया को 64,437 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में रामशंकर कठेरिया को 5,22,119 और कमलेश कठेरिया को 4,57,682 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के अशोक कुमार दोहरे को महज 16,570 वोट मिले थे।
Etawa Vidhan Sabha Chunav 2022
Etawah Lok Sabha Chunav 2014
वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के अशोक कुमार दोहरे ने सपा के प्रेम दास कठेरिया को 1,72,946 वोट से हराकर 16 साल बाद इस सीट को भाजपा के खाते में डाला था। इस चुनाव में अशोक कुमार दोहरे को 4,31,646 और प्रेम दास कठेरिया को 2,66,700 वोट मिले थे। जबकि बसपा के अजय पाल सिंह जाटव को 1,92,804 और कांग्रेस के हंस मुखी कोरी को महज 13,397 वोट मिले थे।
यहां जानें इटावा लोकसभा क्षेत्र के बारे में
- इटावा लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 41 है।
- यह लोकसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया था।
- इस लोकसभा क्षेत्र का गठन इटावा जिले के भरथना, इटावा और औरैया जिले के दिबियापुर, औरैया के अलावा कानपुर देहात के सिकंदरा विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
- इटावा लोकसभा क्षेत्र के 5 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा और 2 पर सपा का कब्जा है।
- यहां कुल 17,57,984 मतदाता हैं। जिनमें से 8,01,062 पुरुष और 9,56,876 महिला मतदाता हैं।
- इटावा लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 10,28,811 यानी 58.52 प्रतिशत मतदान हुआ था।
इटावा लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास
यूपी के इटावा का कांग्रेस से एक दिलचस्प नाता है। 1857 में जब देश में क्रांति की ज्वाला धधकी थी, तब एओ ह्यूम यहां के कलेक्टर हुआ करते थे। यह वह ह्यूम हैं, जिन्होंने 28 दिसंबर, 1885 को कांग्रेस की स्थापना की थी। चंबल और यमुना के बीच स्थित इस क्षेत्र का नाम ईंट के कारोबार से जोड़ा जाता है। 1957 में इटावा लोकसभा क्षेत्र अस्तित्व में आया तो पहले चुनाव में ही यहां की जनता ने समाजवाद का रंग गाढ़ा किया। सोशलिस्ट पार्टी से अर्जुन सिंह भदौरिया और कांग्रेस से रोहनलाल चतुवेर्दी चुने गए। 1962 में बाजी कांग्रेस के जीएन दीक्षित के हाथ लगी तो अगले चुनाव में फिर अर्जुन सिंह ने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लक्ष्य भेदा।
1971 में इटावा इंदिरा के 'गरीबी हटाओ' के नारे पर रीझ गया तो 1977 में जेपी के 'इंदिरा हटाओ' के नारे के साथ बह गया। यह लहर इतनी तेज थी कि जनता पार्टी के उम्मीदवार अर्जुन सिंह भदौरिया की झोली में 75फीसदी से अधिक वोट गिरे थे। जनता पार्टी को 1980 में भी जीत मिली। लेकिन चेहरा बदल गया। इस बार राम सिंह शाक्य चुने गए। इंदिरा की हत्या के बाद सहानुभूति के सुर में इटावा ने भी सुर मिलाया और 1984 में कांग्रेस के रघुराज सिंह जीते। हालांकि, इसके बाद कांग्रेस के लिए इटावा की ज़मीन बंजर हो गई। अब तक उसे यहां सफलता नहीं मिली है।
मुलायम सिंह के सहयोग से कांशीराम पहली बार बने सासंद
90 के दशक में यूपी की सियासत में नया प्रयोग हुआ। 'कमंडल' की धार रोकने के लिए 'मंडल' की राजनीति को पैना कर रहे मुलायम सिंह यादव और यूपी में दलित राजनीति का नया अध्याय लिख रहे कांशीराम ने हाथ मिला लिया। 1993 के विधानसभा चुनाव में नेताओं व जातियों की इस नई जुगलबंदी ने अयोध्या में विवादित ढांचे के गिरने से आए भाजपा के राजनीतिक उफान को थाम लिया। इस दोस्ती की जमीन तैयार की 1991 के लोकसभा चुनाव ने। बसपा संस्थापक कांशीराम इसके पहले के चुनावों में हाथ आजमाने के बाद भी संसद तक नहीं पहुंच पाए थे। उन्होंने इस बार इटावा से पर्चा भरा। मुलायम जनता दल में थे। तत्कालीन सांसद राम सिंह शाक्य पार्टी के उम्मीदवार थे। मुलायम ने अपने उम्मीदवार को छोड़कर कांशीराम पर दांव लगा दिया। जनता को यह दोस्ती रास आई और कांशीराम को पहली बार लोकसभा पहुंचा दिया। उस चुनाव में दूसरे नंबर पर भाजपा रही।
1996 से इटावा लोकसभा सीट पर सपा को हुआ कब्जा
1996 के चुनाव के पहले मुलायम सिंह यादव की अपनी पार्टी सपा अस्तित्व में आ चुकी थी। पहले चुनाव में ही उसे यहां जीत मिली। लेकिन भाजपा के मुकाबले वोट का अंतर महज 9 हजार का था। भाजपा की उम्मीदवार सुखदा मिश्रा ने 1998 में इस अंतर को पाट दिया। यहां पहली बार कमल खिला दिया। इसके बाद इटावा की सियासी सड़क पर सपा सरपट दौड़ी। 1999 से 2009 तक पार्टी ने हैटट्रिक लगाई। 1999 और 2004 में जीत दर्ज कर रघुराज सिंह शाक्य पहले चेहरे बने, जिन्होंने लगातार दो चुनाव जीते। परिसीमन के बाद 2009 में इटावा लोकसभा सीट सुरक्षित हो गई। लेकिन सपा का परचम कायम रहा, प्रेमदास कठेरिया सपा के टिकट पर सांसद बने थे।
इटावा लोकसभा क्षेत्र में जातीय समीकरण
इटावा लोकसभा सीट के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर गैर-दलित वोटों का रुख नतीजे तय करता है। यहां 2.50 लाख ब्राह्मण, 1.25 लाख क्षत्रिय और 90 हजार से अधिक वैश्य हैं। 2.25 लाख यादव, 1.25 लाख लोधी व लगभग इतने ही शाक्य और 1 लाख से अधिक पाल बिरादरी के मतदाताओं की संख्या बताई जाती है। इसके अलावा 1 लाख से अधिक मुस्लिम मतदाता भी हैं। सियासी दलों की नांव माहौल के साथ अपने-अपने कोर वोटरों के साथ आने या छिटकने पर टिकी है।
इटावा लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद
- सोशलिस्ट पार्टी से अर्जुन सिंह भदोरिया और कांग्रेस से रोहनलाल चतुवेर्दी 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से जीएन दीक्षित 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से अर्जुन सिंह भदोरिया 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से श्री शंकर तिवारी 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से अर्जुन सिंह भदोरिया 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता पार्टी से राम सिंह शाक्य 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- कांग्रेस से रघुराज सिंह चौधरी 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- जनता दल से राम सिंह शाक्य 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- बसपा से कांशीराम 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- सपा से राम सिंह शाक्य 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से सुखदा मिश्रा 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- सपा से रघुराज सिंह शाक्य 1999 और 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- सपा से प्रेमदास कठेरिया 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से अशोक कुमार दोहरे 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
- भाजपा से राम शंकर कठेरिया 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।