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Election 2024: जालंधर में कड़े मुकाबले में फंसे पूर्व CM चन्नी, तीन दलों की घेराबंदी से मुश्किल हुई सियासी राह
Lok Sabha Election 2024: AAP ने इस सीट पर अपने मौजूदा सांसद सुशील कुमार रिंकू को टिकट दिया था मगर भाजपा ने सियासी खेल करते हुए रिंकू को अपने चुनाव मैदान में उतार दिया।
Lok Sabha Election 2024: पंजाब की जालंधर लोकसभा सीट को इस बार काफी अहम मान जा रहा है क्योंकि कांग्रेस ने इस सीट पर अपने बड़े चेहरे और पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को चुनाव मैदान में उतारा है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित इस सीट पर दूसरे दलों ने भी मजबूत चेहरों को उतार कर जालंधर सीट की लड़ाई को रोमांचक बना दिया है। मजे की बात यह है कि चन्नी के अलावा बाकी तीनों दलों के प्रत्याशी दल बदलने के बाद चुनावी अखाड़े में उतरे हैं।
पंजाब में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी ने इस सीट पर अपने मौजूदा सांसद सुशील कुमार रिंकू को टिकट दिया था मगर भाजपा ने बड़ा सियासी खेल करते हुए रिंकू को अपने सिंबल पर चुनाव मैदान में उतार दिया। आम आदमी पार्टी ने इस सीट पर दो बार के विधायक और शिरोमणि अकाली दल के पूर्व नेता पवन कुमार टीनू को टिकट दिया है तो शिरोमणि अकाली दल ने कांग्रेस के पूर्व सांसद मोहिंदर सिंह केपी पर भरोसा जताया है। चार मजबूत चेहरों के चुनाव मैदान में उतरने के कारण इस लोकसभा सीट पर कड़ा मुकाबला हो रहा है।
भाजपा ने खेला बड़ा सियासी दांव
पंजाब की जालंधर लोकसभा सीट को काफी महत्वपूर्ण माना जाता रहा है और इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल भी चुनाव जीत चुके हैं। वैसे इस लोकसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी संतोख चौधरी ने जीत हासिल की थी। चौधरी का असामयिक निधन होने के बाद पिछले साल मई महीने में इस सीट पर उपचुनाव कराया गया था जिसमें आम आदमी पार्टी के टिकट पर सुशील कुमार रिंकू ने जीत हासिल की थी।
आम आदमी पार्टी ने इस बार के लोकसभा चुनाव में भी रिंकू को ही अपना उम्मीदवार बनाने का ऐलान किया था मगर रिंकू ने पाला बदलते हुए भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली जिस पर लोगों को काफी हैरानी हुई थी। उम्मीदवार की तलाश में जुटी भाजपा ने रिंकू को आनन-फानन में जालंधर के चुनावी अखाड़े में उतार दिया है जिससे इस सीट की लड़ाई काफी रोमांचक हो गई है।
जालंधर को पूर्वजों की जमीन बता रहे चन्नी
इस लोकसभा क्षेत्र में नौ विधानसभा सीटें शामिल हैं। फिल्लौर (एससी), नकोदर, शाहकोट, करतारपुर (एससी), जालंधर वेस्ट (एससी), जालंधर सेंट्रल, जालंधर नॉर्थ, जालंधर कैंट और आदमपुर (एससी)। पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी अपना विधानसभा क्षेत्र चमकौर साहिब छोड़कर जालंधर सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं।
वे अपनी चुनावी सभाओं के दौरान अपने विधानसभा क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों का जिक्र करते हुए यह कहना नहीं भूलते कि मेरे पूर्वज यहीं के हैं और मैं अब अपने पूर्वजों की जमीन पर ही रहने आया हूं। वे क्षेत्र के लोगों से यही रहकर उनकी सेवा करने का वादा भी कर रहे हैं।
चन्नी की उम्मीदवारी से कांग्रेस में बगावत
वैसे इस लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस की लड़ाई आसान नहीं मानी जा रही है। पूर्व सांसद संतोख चौधरी के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस को 24 वर्ष बाद जालंधर में हार झेलनी पड़ी थी। कांग्रेस के किले को ध्वस्त करते हुए आप उम्मीदवार सुशील कुमार रिंकू ने जीत हासिल की थी। जालंधर में कांग्रेस ने चन्नी पर दांव तो लगा दिया मगर पार्टी में बगावत के कारण मुश्किलें भी पैदा हो गईं। पूर्व सांसद संतोख चौधरी की पत्नी टिकट कटने से नाराज होकर भाजपा में शामिल हो गई हैं जबकि उनके विधायक बेटे ने भी कांग्रेस से बगावत कर डाली है।
पूर्व सांसद एवं विधायक महेंद्र सिंह केपी ने अकाली दल का दामन थाम लिया और अब वे शिरोमणि अकाली दल के प्रत्याशी के रूप में चन्नी को चुनौती देने में जुटे हुए हैं। जम्मू-कश्मीर में वायुसेना के वाहन पर हुए आतंकी हमले को स्टंट बताकर चन्नी ने खुद अपने लिए मुसीबत मोल ले ली। लोगों की नाराजगी के बाद चन्नी ने इस मुद्दे पर सफाई भी पेश की। चन्नी को इस टिप्पणी के लिए चुनाव आयोग से भी चेतावनी मिली थी।
मुख्यमंत्री मान के लिए प्रतिष्ठा की जंग
जालंधर लोकसभा सीट पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के लिए प्रतिष्ठा बचाने की जंग बन गई है और इसीलिए उन्होंने आप प्रत्याशी को जीत दिलाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है जालंधर में पार्टी के एकमात्र सांसद ने टिकट मिलने के बाद भी उसे ठुकरा दिया और राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर तमाम सवाल खड़े करते हुए भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली। दूसरी ओर कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री को चुनाव मैदान पर उतारा है।
चन्नी पर आप सरकार ने घोटाले के आरोप लगाकर विजिलेंस जांच शुरू करवाई है। यही कारण है कि आप उम्मीदवार पवन कुमार टीनू को जीत दिलाने के लिए भगवंत मान ने पूरी ताकत लगा रखी है। इसको इसी से समझा जा सकता है कि वे इस चुनाव क्षेत्र में अभी तक छह रोड शो कर चुके हैं और अपनी सभाओं में वे दूसरे प्रत्याशियों पर तीखा हमला करने में जुटे हुए हैं।
दलित मतदाताओं की भूमिका सबसे अहम
जालंधर लोकसभा सीट पर सभी दलों की ओर से दलित मतदाताओं को साधने की कोशिश की जा रही है। दरअसल इस सीट पर दलित आबादी करीब 37 फीसदी है और दलित मतदाताओं का रुख ही इस सीट के विजेता का नाम तय करेगा। भाजपा ने रविदासिया बिरादरी से संबंध रखने वाले सुशील कुमार रिंकू को चुनाव मैदान में उतार कर कांग्रेस, आप और अकाली दल तीनों दलों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है।
रिंकू 2023 में सांसद बनने से पहले 2017 से 2022 तक कांग्रेस के विधायक भी रह चुके हैं। ऐसे में उनकी इस इलाके पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। रिंकू की चुनौती का सामना करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी ने भी दलित मतदाताओं को साधने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है।
कांग्रेस को अपने गढ़ में मिल रही कड़ी चुनौती
जालंधर लोकसभा सीट को कांग्रेस का गढ़ माना जाता रहा है और 1951 से अब तक हुए लोकसभा चुनावों (दो उपचुनाव भी शामिल) में कांग्रेस इस सीट पर 14 बार जीत हासिल कर चुकी है। अकाली दल और जनता दल को दो-दो बार और एक बार कांग्रेस को इस सीट पर जीत मिली है।
1989 और 1998 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल ने इस सीट पर कांग्रेस को हराकर जीत हासिल की थी। पिछले साल हुए उपचुनाव में 24 वर्ष बाद कांग्रेस को इस सीट पर हार झेलनी पड़ी थी।
अब इस बार के लोकसभा चुनाव में कड़े मुकाबले को देखते हुए सियासी दिग्गज भी चुनावी तस्वीर का सही आकलन नहीं कर पा रहे हैं। जानकारों का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री चन्नी को इस सीट पर कड़ी चुनौती मिल रही है और अब सबकी निगाहें एक जून को होने वाले मतदान पर लगी हुई हैं।