×

Jalaun Lok Sabha Seat: जालौन में हैट्रिक लगाने उतरे हैं भाजपा के भानु प्रताप, इस बार सपा के अहिरवार ने मुश्किल कर रखी है राह

Jalaun Lok Sabha Seat: लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा हैट्रिक लगाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं। इंडिया गठबंधन की ओर से सपा के नारायण दास अहिरवार उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 19 May 2024 4:54 PM IST
There is a tough contest between BJP candidate Bhanu Pratap Verma and SPs Narayan Das Ahirwar from India Alliance on Jalaun Lok Sabha seat
X

जालौन लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा और इंडिया गठबंधन की ओर से सपा के नारायण दास अहिरवार के बीच कड़ा मुकाबला: Photo- Social Media

Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में बुंदेलखंड की जालौन लोकसभा सीट को काफी अहम माना जा रहा है। इस लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा हैट्रिक लगाने के लिए चुनाव मैदान में उतरे हैं। वैसे भानु प्रताप वर्मा आठवीं बार इस लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे हैं और वे पांच बार सांसद बन चुके हैं।

इंडिया गठबंधन की ओर से सपा के नारायण दास अहिरवार उन्हें कड़ी चुनौती दे रहे हैं। बसपा भी इस सीट पर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश में जुटी हुई है और पार्टी ने सुरेश चंद्र गौतम को चुनाव मैदान में उतार कर भाजपा और सपा को घेरने का प्रयास किया है।

Photo- Social Media

जालौन लोकसभा सीट का स्वरूप

पांचवें चरण में उत्तर प्रदेश की 14 लोकसभा सीटों पर मतदान होना है और इन सभी सीटों पर चुनावी शोर थम चुका है। जालौन लोकसभा सीट पर भी मतदाता कल प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करेंगे। यह लोकसभा सीट तीन जिलों कानपुर देहात, जालौन और झांसी को मिलाकर बनी है। यह एक सुरक्षित सीट है और इसमें कानपुर देहात की भोगनीपुर, जालौन की माधोगढ़, कालपी, उरई और झांसी जिले की गरौठा विधानसभा सीटें शामिल हैं।

तीन जिलों की विधानसभा सीटें शामिल होने के कारण इस लोकसभा क्षेत्र का दायरा काफी विस्तृत होता है और सभी मतदाताओं तक संपर्क के लिए पहुंचना उम्मीदवारों के लिए काफी मुश्किल काम होता है। इस बार भी तपती गर्मी के बीच मतदाताओं से संपर्क साधना प्रत्याशियों के लिए काफी मुश्किल साबित हो रहा है।

हैट्रिक लगाने उतरे हैं भाजपा के भानु प्रताप

1962 के चुनाव में अस्तित्व में आई जालौन लोकसभा सीट पर 1991 के लोकसभा चुनाव में पहली बार भाजपा का खाता खुला था। उस समय भाजपा के गया प्रसाद कोरी ने इस सीट पर जीत हासिल की थी उसके बाद 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के भानु प्रताप वर्मा इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रहे जबकि 2009 में इस सीट पर बसपा के बृजलाल खाबरी ने सबको पीछे धकेलते हुए जीत हासिल की थी।

वर्ष 2004 में केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार सत्ता से बेदखल हो गई थी मगर उस चुनाव में भी भाजपा के भानु प्रताप वर्मा ने यहां अपनी ताकत दिखाते हुए जीत हासिल की थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर पहली बार समाजवादी पार्टी का खाता खुला था और पार्टी के घनश्याम अनुरागी को जीत मिली थी।

2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ने इस सीट पर भी असर दिखाया था और भाजपा के भानु प्रताप वर्मा दोनों चुनावों में जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। अब भाजपा ने एक बार फिर भानु प्रताप वर्मा पर ही भरोसा जताते हुए उन्हें जालौन लोकसभा क्षेत्र में हैट्रिक लगाने का मौका दिया है। वैसे भानु प्रताप वर्मा इस लोकसभा क्षेत्र में पांच बार चुनावी जीत हासिल कर चुके हैं।

इस बार बदला हुआ है क्षेत्र का सियासी माहौल

इस बार के लोकसभा चुनाव में भानु प्रताप वर्मा के लिए हैट्रिक लगाना आसान नहीं माना जा रहा है क्योंकि इस बार 2014 और 2019 जैसा माहौल नहीं दिख रहा है। 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नए नेतृत्व के प्रति लोगों में आकर्षण और यूपीए के प्रति आक्रोश था जबकि 2019 में पुलवामा विस्फोट के बाद की गई बालाकोट एयर स्ट्राइक से उमड़े देश प्रेम ने काफी असर दिखाया था। इस बार पिछले दो चुनावों जैसा माहौल नहीं दिख रहा है जिससे भानु प्रताप वर्मा की चुनौती बढ़ गई है।

इस बार के लोकसभा चुनाव में महंगाई, बेरोजगारी, पेपर लीक की घटनाओं, बुंदेलखंड में विकास की धीमी रफ्तार और संविधान संशोधन की चिताओं ने नए समीकरण को जन्म दिया है। यही कारण है कि इस बार भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा कड़े मुकाबले में फंस गए हैं। हालांकि उन्होंने इस चुनाव क्षेत्र में हैट्रिक लगाने के लिए पूरी ताकत लगा रखी है मगर सपा के नारायण दास अहिरवार उनकी राह में बड़ा रोड़ा बने दिख रहे हैं।

बसपा प्रत्याशी सुरेश चंद्र गौतम: Photo- Social Media

मायावती की अनदेखी से बसपा प्रत्याशी मुश्किल में

बसपा मुखिया मायावती ने इस लोकसभा क्षेत्र में सुरेश चंद्र गौतम को चुनाव मैदान में जरूर उतारा है मगर बसपा का अच्छा खासा वोट होने के बावजूद गौतम अपना चुनावी माहौल बनाने में कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। बसपा मुखिया मायावती ने भी क्षेत्र के प्रति ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई।

अगर वे इस इलाके में आकर सभा करतीं तो बसपा प्रत्याशी को अपना माहौल बनाने में जरुर मदद मिलती मगर बहन जी ने इस इलाके में एक भी सभा नहीं की है। बसपा ने इस लोकसभा क्षेत्र में 1999 में आखिरी जीत हासिल की थी जब पार्टी के बृजलाल खबरी 13,425 वोटों के मामूली अंतर से चुनाव जीतने में कामयाब रहे थे। उसके बाद बसपा प्रत्याशी को कभी भी इस लोकसभा क्षेत्र में जीत हासिल नहीं हो सकी।

भानु प्रताप की सियासी राह आसान नहीं

इस बार भी बसपा प्रत्याशी की ओर से मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की जा रही है मगर भाजपा प्रत्याशी भानु प्रताप वर्मा और सपा के नारायण दास अहिरवार के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है।

अहिरवार वोट इस बार सपा प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद दिख रहा है जबकि कई पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का झुकाव भी सपा के पक्ष में दिख रहा है। ऐसी स्थिति में भाजपा के भानु प्रताप वर्मा के लिए मुकाबला आसान नहीं माना जा रहा है।

2019 के लोकसभा चुनाव का नतीजा

2019 के चुनाव में भानु प्रताप को 5,79,536, बसपा के अजय पंकज को 4,22,381 और कांग्रेस के बृजलाल खाबरी को 89,336 वोट मिले थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस बार सपा के साथ कांग्रेस है जबकि बसपा के वोट बैंक में भी सेंधमारी होती दिख रही है।

पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के भानु प्रताप वर्मा ने 1,57,155 वोटों से जीत हासिल की थी। सपा-बसपा के एकजुट होकर चुनाव लड़ने के बाद मिली इस जीत के बाद भानु प्रताप वर्मा इस बार हैट्रिक लगाने के लिए पूरी तरह से आशावान दिख रहे हैं।

हाथी की सुस्त रफ्तार से सपा को मिली ताकत

वैसे इस बार के लोकसभा चुनाव में हाथी की सुस्त रफ्तार के कारण सपा प्रत्याशी नारायण दास अहिरवार की ताकत भी बढ़ी हुई दिख रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि बसपा जितनी कमजोर होगी, सपा प्रत्याशी की ताकत उतनी बढ़ जाएगी।

फिलहाल इस लोकसभा क्षेत्र में कड़े मुकाबले की उम्मीद जताई जा रही है और अब यह देखने वाली बात होगी कि भानु प्रताप वर्मा इस बार हैट्रिक लगाने में कामयाब हो पाते हैं या नहीं।बुंदेलखंड में भीषण गर्मी को देखते हुए इस बार कम मतदान होने की आशंका जताई जा रही है और इसलिए जीत-हार का अंतर भी काफी कम वोटों का हो सकता है।



Shashi kant gautam

Shashi kant gautam

Next Story