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Mission 2024: चुनाव की बातें: नेता ले रहे इंफ्लुएंसरों की मदद

विभिन्न पार्टियां इन इंफ्लुएंसर्स के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 में सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय देश के युवा और 45 से कम के वोटरों को लुभाना चाहती हैं। इन इंफ्लुएंसरों के लाखों लाख फॉलोअर्स होते हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani Lal
Published on: 27 March 2024 6:33 PM IST
Leaders are taking help of influencers on social media to woo voters in Lok Sabha elections 2024
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लोकसभा चुनाव 2024 में वोटरों को लुभाने के लिए सोशल मीडिया पर नेता ले रहे इंफ्लुएंसरों की मदद: Photo- Social Media

Mission 2024: आम चुनाव के लिए प्रचार में नेता तो दौड़-भाग कर ही रहे हैं, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स (social media influencers) प्रचार का बड़ा माध्यम बन गए हैं। देश में होने वाले आम चुनाव में इंफ्लुएंसर नए प्रचारक हैं। भारत सबसे अधिक इंटरनेट यूजर्स का देश है। यहां 80 करोड़ यूजर्स हैं और इंस्टाग्राम और यूट्यूब के सबसे ज्यादा उपभोक्ता भी हैं। इसलिए राजनीतिक दल समझ रहे हैं कि इन इंफ्लुएंसर्स की ताकत कितनी ज्यादा है।

नया औजार

चूंकि लोगों को प्रभावित करने के लिए सोशल मीडिया अब बहुत बड़ा औजार बन गया है सो मतदाता को किसी खास रास्ते पर ले जाने के लिए इंफ्लुएंसरों का इस्तेमाल किया जा रहा है। हजारों सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स (social media influencers) अप्रैल में होने वाले आम चुनाव से पहले राजनीतिक दलों का प्रचार कर रहे हैं। विभिन्न पार्टियां इन इंफ्लुएंसर्स के जरिए लोकसभा चुनाव 2024 में सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय देश के युवा और 45 से कम के वोटरों को लुभाना चाहती हैं। इन इंफ्लुएंसरों के लाखों लाख फॉलोअर्स होते हैं। सौ से ज्यादा सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स को पिछले साल भारतीय जनता पार्टी ने इंदौर में एक सम्मेलन में बुलाया था। तब से कई इंफ्लुएंसरअपने फेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट पर बीजेपी के पक्ष में पोस्ट डाल रहै हैं।

भाजपा सबसे आगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद पिछले एक साल में कई सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स से बात या मुलाकात की है। ये सभी ऐसे लोग हैं जिनके इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर फॉलोअर्स की बड़ी संख्या है। कुछ तो ऐसे हैं जिनके फॉलोअर्स करोड़ों में हैं। पार्टी नेता और मंत्री मुख्यधारा के मीडिया को दरकिनार कर इन लोगों को इंटरव्यू दे रहे हैं। इनमें ट्रैवल, फूड, धर्म और टेक हर तरह के क्षेत्र के इंफ्लुएंसर्स शामिल हैं। नेता जानते हैं कि अगर कोई तीसरा बात करता है तो इससे पार्टी की आवाज की विश्वसनीयता बढ़ती है। लोग उस पर ज्यादा यकीन करते हैं।

कांग्रेस की भी रणनीति

इंफ्लुएंसर्स का फायदा उठाने की कोशिश सिर्फ भाजपा ही नहीं कर रही है बल्कि कांग्रेस और अन्य दल भी इसमें लगे हुए हैं। अगर यह इंफ्लुएंसर सीधे तौर पर कांग्रेस के बारे में नहीं बोलते हैं तो भी वे अपनी राय रख रहे हैं जो कांग्रेस की विचारधारा और रुख के अनुरूप है।पिछले पंजाब विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने भी ऐसे ही प्रयोग किए थे। दक्षिण में तेलंगाना की भारत राष्ट्र समिति ने राज्य चुनाव में अपने प्रचार के लिए करीब 250 इंफ्लुएंर्स को साथ लिया था।

खतरा भी है

कुछ विशेषज्ञ इस चलन के खतरों से भी आगाह करते हैं। सबके सामने फेक न्यूज और दुष्प्रचार एक बेहद बड़ा खतरा है और इंटरनेट उसका सबसे बड़ा माध्यम है। ऐसे में पारदर्शिता का सवाल बेहद अहम हो जाता है।

भारत में दो करोड़ से ज्यादा ऐसे मतदाता हैं जिनकी उम्र 18 से 29 साल के बीच है। ये तो वे लोग हैं जिन्हें इंटरनेट पर सबसे सक्रिय माना जाता है। इसके अलावा भी भारत की बड़ी आबादी है जो वॉट्सऐप और फेसबुक रील्स की बड़ी उपभोक्ता है। इंफ्लुएंसर्स के जरिए राजनीतिक दल सीधे इन लोगों तक पहुंच रहे हैं। जहां तक चुनाव परिणामों पर सोशल मीडिया प्रचार के महत्व की बात है तो, 40 प्रतिशत की इंटरनेट पहुंच के साथ, औसतन दो लाख लोगों के विधानसभा क्षेत्र में, डिजिटल माध्यमों के माध्यम से 75,000 से 80,000 लोगों को प्रभावित करना संभव है। किसी भी विधानसभा चुनाव में 5,000 वोटों का अंतर एक अच्छी जीत-हार का अंतर है।

अन्य विश्लेषकों को दर्शकों को मतदाताओं में बदलने की सोशल मीडिया की क्षमता पर संदेह है। उनका कहना है कि इसके लिए और अधिक विश्लेषण और शोध की आवश्यकता है।



Shashi kant gautam

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