TRENDING TAGS :
Lok Sabha Election 2024: अब चुनाव में तांगे-कारों के काफिले नहीं, वर्चुअल जनसंपर्क का सहारा
Lok Sabha Election 2024: झांसी लोकसभा सीट पर 1960-70 के दशक में चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी डोर टू डोर तक जाते थे। लेकिन, वक्त के साथ चुनाव में नेताओं के प्रचार प्रसार के तौर-तरीके बदल गए हैं।
Lok Sabha Election 2024: चुनाव प्रचार और जनसम्पर्क के तरीकों में समय-समय पर बदलाव आते रहे हैं। प्रत्याशियों के चुनाव प्रचार में तांगे पर भोंपू लगाकर वोट देने की अपील की जाती थी। फिर प्रत्याशी और समर्थक साइकिल से जनसम्पर्क को निकलते थे। समय के साथ तांगे और साइकिलें गायब हो गईं, उनके स्थान पर कारों के काफिले सरपट दौड़ते नजर आने लगे। अब समय और बदल गया है। प्रत्याशी हाईटेक हो गए हैं, वह वर्चुअल जनसंपर्क करने को प्राथमिकता देने लगे हैं।
झांसी लोकसभा सीट पर 1960-70 के दशक में चुनाव प्रचार के लिए प्रत्याशी डोर टू डोर तक जाते थे। वक्त के साथ चुनाव में नेताओं के प्रचार प्रसार के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। पहले नेताजी कार्यकर्ताओं के साथ साइकिल से चुनाव प्रचार में निकलते थे। प्रचार के दौरान तांगे पर ढोल मजीरा रखा जाता था और माइक बंधा होता था। गीत गायन के साथ पार्टी की नीतियों का प्रचार होता था। नेता जब भी जनता के बीच जाते अपने लिए वोट मांगते, पार्टी की नीतियों को बताते, लेकिन किसी प्रत्याशी पर कोई टिप्पणी नहीं की जाती थी। समय के साथ-साथ चुनाव प्रचार में भी बदलाव आ गया। तांगे और साइकिलों की जगह बड़ी-बड़ी कारों के काफिले नजर आने लगीं। महंगी और आलीशान कार में फूल मालाओं से लदे बैठे नेताजी शीशे के पीछे से ही जनता को देखकर हाथ हिलाकर अभिवादन करते दिख जाते हैं। धूल उड़ाती कार निर्वाचन क्षेत्र से कब गुजर गई यह पता ही नहीं चलता है। पार्टी के आम कार्यकर्ता भी नेताजी से हाथ मिलाने से वंचित रह जाते हैं। तब के चुनाव और अब वर्ष 1990 के बाद होने वाले चुनाव में बड़ा फर्क आ गया है।
अब तो नेता जनसंपर्क के लिए गांवों, गली-मुहल्लों का रुख तक नहीं करते हैं। पार्टियों ने सोशल मीडिया पर ग्रुप बना लिए हैं, इन ग्रुपों में प्रत्याशी अपनी बात कह रहे हैं। वॉट्सऐप, फेसबुक, टि्वटर पर टैक्स्ट, ऑडियो और वीडियो मैसेज डालकर प्रत्याशी के पक्ष में हवा बनाई जाने लगी है। ऐसे में प्रत्याशी डोर टू डोर जनसम्पर्क की जगह वर्चुअल जनसम्पर्क को तरजीह देने लगे हैं। ऐसे में जब आम मतदाता के मोबाइल पर कोई मैसेज आता है तो उसे लगता है कि नेताजी ने उसे व्यक्तिगत रूप से मैसेज भेजा है, बस यही सोंचकर मतदाता गदगद हो जाता है। जबकि यह मैसेज नेताजी ने नहीं बल्कि उनके कार्यालय में बैठे लोग भेजते हैं।
कहां गए चुनावी बिल्ले
तांगे पर हाथ में माइक लेकर पार्टी की पुराना खुर्राट किस्म का कार्यकर्ता जोशीले नारे लगाता हुआ चलता था। तांगे के पीछे पार्टी के बिल्ले मांगने के लिए बच्चों की भीड़ दौड़ती थी। नारे लगाते हुए कार्यकर्ता बच्चों की ओर पार्टी के बिल्ले उछालता जाता था। जिस बच्चे को पार्टी का बिल्ला मिल जाता था वह शान से अपनी कमीज पर पिन से लगा लेता था। शाम तक बच्चे की कमीज पर जनसंघ का दीपक, कांग्रेस का गाय बछड़ा या कम्युनिस्ट पार्टी का हंसिया हथौड़ा के बिल्ले नजर आते थे।