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Lok Sabha Election 2024: स्पीकर पद में क्यों है टीडीपी की दिलचस्पी?
Lok Sabha Election 2024: टीडीपी अब स्पीकर पद इसलिए चाहती है क्योंकि नायडू अध्यक्ष पद के महत्व से अच्छी तरह वाकिफ हैं
Lok Sabha Election 2024:एनडीए में किंगमेकर बने टीडीपी की डिमांड लिस्ट में लोकसभा स्पीकर पद भी शामिल है, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स में बताया जा रहा है।चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी ने 1998 में एनडीए सरकार में अटल बिहारी वाजपेयी को अपना समर्थन देने की पेशकश की। उन्होंने कोई कैबिनेट पद नहीं मांगा, लेकिन अध्यक्ष पद मांगा और इस पद के लिए जीएमसी बालयोगी को नामित किया था। 2002 तक टीडीपी के बाला योगी लोकसभा अध्यक्ष थे। 2002 में ही एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई थी।
अब दिलचस्पी क्यों?
बीते दस साल में लोकसभा अध्यक्ष पद पर परंपरागत रूप से भाजपा का कब्जा रहा है।बताया जाता है कि टीडीपी अब स्पीकर पद इसलिए चाहती है क्योंकि नायडू अध्यक्ष पद के महत्व से अच्छी तरह वाकिफ हैं, खासकर ऐसे समय में जब सरकार सदन में अविश्वास प्रस्ताव का सामना कर रही हो।
बतौर इंश्योरेंस
नायडू जानते हैं कि अगर आगे चल कर उनकी पार्टी में विभाजन की कोशिशें हुईं तो इसमें स्पीकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी और वही संभावित विभाजन से बचा सकेंगे।
- दलबदल विरोधी कानून में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि अंतिम निर्णय का समय और प्रकृति निर्धारित करने का अधिकार उनके पास होता है।
- ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां स्पीकर पर अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला सुनाने में पक्षपात करने का आरोप लगाया गया है।
- दलबदल के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के पास भी सीमित अधिकार हैं।
- महाराष्ट्र में शिव सेना में विभाजन के मामले में बहुत देर से फैसला हुआ और वह भी सुप्रीम कोर्ट के अल्टीमेटम के बाद। देरी से हुई सुनवाई ने पार्टी में विभाजन को बढ़ावा मिला जिससे एकनाथ शिंदे को नई सरकार बनाने में मदद मिली।
लोकसभा अध्यक्ष का पद इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर सरकार गिर भी जाती है, तो सदन के भंग होने तक अध्यक्ष को हटाया नहीं जा सकता। इसलिए, अगर टीडीपी को स्पीकर का पद मिल जाता है और वह कांग्रेस के साथ मिल जाती है, तो स्पीकर पद पर बने रहेंगे। सदन स्पीकर को केवल प्रभावी बहुमत से पारित प्रस्ताव के माध्यम से ही हटा सकता है, जिसका मतलब सदन की कुल संख्या का 50 फीसदी से अधिक है।
अध्यक्ष की शक्तियाँ
- लोकसभा के प्रमुख के रूप में, अध्यक्ष को व्यवस्था और शिष्टाचार बनाए रखने की शक्ति दी जाती है।
- अध्यक्ष सदस्यों, सदन और उसकी समितियों की शक्तियों और विशेषाधिकारों का संरक्षक भी होता है।
- अध्यक्ष ही तय करता है कि कौन सा सदस्य संसद को संबोधित करेगा और किस तरह के प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
- अध्यक्ष सरकार द्वारा पारित किए जाने वाले कानून को धन विधेयक के रूप में स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है। धन विधेयक वे होते हैं जो कराधान या सरकार के सार्वजनिक व्यय जैसे वित्तीय मामलों से संबंधित होते हैं। उन्हें केवल लोकसभा में पेश और पारित किया जाता है और उन्हें राज्यसभा द्वारा अनुमोदित करने की आवश्यकता नहीं होती है।
- अध्यक्ष संसद का एजेंडा भी तय करता है और कोरम न होने पर इसकी कार्यवाही को निलंबित/स्थगित कर सकता है।
- संविधान की 10वीं अनुसूची के अनुसार स्पीकर को दलबदल के आधार पर संसद के किसी सदस्य को सदन से अयोग्य ठहराने का अधिकार है। 10वीं अनुसूची को 1980 के दशक के मध्य में पैसे या पद जैसे लालच के लिए राजनीतिक दलबदल को रोकने के लिए पेश किया गया था। हालांकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किसी सदस्य को अयोग्य ठहराने का स्पीकर का फैसला अदालतों द्वारा न्यायिक समीक्षा के अधीन है।