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Loksabha Elelction 2024: 18वीं लोकसभा के चुनाव में कौन कितना भारी,इसे पढ़ें तो आईने की तरह साफ हो जाएगी तस्वीर
Loksabha Elelction 2024:सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की कोशिश है कि वह लोकसभा की अधिकतम सीटों को कब्जा करके सरकार बनाने में अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर सकें
Loksabha Elelction 2024: देश में 18वीं लोकसभा के चुनाव के लिए रणभेरी बज चुकी है । सभी पार्टियां संसद के निचले सदन में अपनी अधिकतम भागीदारी मजबूत करने के लिए पूरे दमखम से मैदान में उतर गई हैं। सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की कोशिश है कि वह लोकसभा की अधिकतम सीटों को कब्जा करके सरकार बनाने में अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर सकें। अगर अपने देश में 74 साल के लोकतंत्र पर एक नजर डालें तो 17 लोकसभा चुनावों में केंद्र की सत्ता दो दलों के हाथ में रही है। कांग्रेस और भाजपा। इसके अलावा सत्ता में भी कुछ गिने चुने दलों की ही भागीदारी रही है।
जिसमें 1951-52 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कुल 489 सीटों में 364 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। जबकि दूसरे नंबर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (भाकपा) थी जिसे 16 सीटें मिली थीं और सोशलिस्ट पार्टी को 12 सीटें मिली थीं। लेकिन खास बात यह थी कि वोट शेयरिंग में कांग्रेस को 44.99 फीसद वोट मिले थे । तो भाकपा को मात्र 3.29 प्रतिशत वोट मिले थे और सोशलिस्ट पार्टी को 10.59 प्रतिशत वोट शेयर मिले थे। लेकिन दूसरे लोकसभा चुनाव में कुल सीटें 494 थीं तो कांग्रेस को 47.78 फीसद वोट के साथ 371 सीटें मिली थीं तो भाकपा को 8.92 प्रतिशत वोट के साथ 27 सीटें मिली थीं। कांग्रेस और भाकपा दोनों की वोट शेयरिंग बढ़ी थी तो तीसरे नंबर पर रही सोशलिस्ट पार्टी ने अपना स्थान खो दिया। उसकी जगह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने 10.41 फीसद वोट के साथ 19 सीटों पर कब्जा करके ले ली।
शुरू से ही एक चीज साफ दिखायी देने लगी थी कि क्षेत्रीय दलों को जनता ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है जनता को स्थायित्व और सुरक्षा दोनों चाहिए। जिसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी ही दे सकती हैं। यह क्रम तीसरे लोकसभा चुनाव में भी दिखा जो 1962 में हुए। इस चुनाव में कुल 494 लोकसभा सीटों में 361 सीटें कांग्रेस को मिलीं। हालांकि उसका वोट प्रतिशत कम 44.72 हुआ। दूसरे नंबर पर भाकपा ही रही जिसका वोट प्रतिशत 9.94 रहा और सीटें 29 रहीं। इस बार तीसरे नंबर पर स्वतंत्र पार्टी रही जिसे 7.89 फीसद वोट के साथ 18 सीटें मिलीं।
समाजवाद सिमटने लगा। लेकिन चौथे लोकसभा चुनाव में एक बड़ा बदलाव यह दिखायी दिया कि कुल 520 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को 40.78 प्रतिशत वोट के साथ केवल 283 सीटें मिलीं यानीं जनता का कांग्रेस से मोहभंग होना शुरू हो गया। लेकिन इसका फायदा वामपंथी ताकतों को नहीं मिला। दूसरे स्थान पर स्वतंत्र पार्टी आ गई जिसने 8.67 फीसद वोटों के साथ 44 सीटों को हासिल किया। कम्युनिज्म ने दूसरा स्थान खोया । तो तीसरा स्थान भी न पा सकी। क्योंकि तीसरे स्थान पर 9.31 फीसद वोट के साथ 35 सीटें हासिल करके जनसंघ आ गया।
इस बीच कम्युनिस्ट पार्टी में विघटन हो गया और 1971 के पांचवें लोकसभा चुनाव में जो कि 518 सीटों पर हुए कांग्रेस 43.68 फीसद वोट के साथ 352 सीटों पर रही तो माकपा 5.12 फीसद वोटों के साथ 25 सीटों पर और भाकपा 4.73 प्रतिशत वोट लेकर 23 सीटों पर रही।छठा लोकसभा चुनाव एक बड़े बदलाव की आहट था। जिसमें इमरजेंसी से नाराज जनता ने 542 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को झटका दिया। जनता पार्टी 41.32 फीसद वोट लेकर पहले स्थान पर आई । जबकि कांग्रेस 34.52 फीसद वोट के साथ 154 सीटें लेकर दूसरे स्थान पर खिसक गई। तीसरे स्थान पर माकपा रही उसे 4.29 फीसद वोट के साथ 22 सीटें मिलीं।
जनता पार्टी ने आपसी कलह की वजह से जनादेश की उपेक्षा कर दी और टूट गई। नतीजतन 1980 के मध्यावधि चुनाव में 42.69 प्रतिशत वोट के साथ 353 सीटें लेकर कांग्रेस की वापसी हो गई। जनता पार्टी (सेक्युलर) 9.39 फीसद वोट के साथ 41 सीटें लेकर दूसरे स्थान पर रही । तो माकपा 6.24 फीसद वोट के साथ 37 सीटें लेकर तीसरे स्थान पर रही।1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर में 541 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस 48.12 फीसद वोट लेकर 414 सीटें लेकर पहले स्थान पर आई जो कि एक रिकार्ड है। जबकि तेलुगुदेशम पार्टी 4.06 फीसद वोट के साथ 30 सीटों पर रही और माकपा 5.72 प्रतिशत वोट लेकर 22 सीटें ही ले सकी।
1989 के लोकसभा चुनाव में 529 सीटों में कांग्रेस को 197 सीटें और 39.53 प्रतिशत वोट मिले । जबकि जनता दल को 143 सीटें और 17.79 प्रतिशत वोट और तीसरे स्थान पर रही भारतीय जनता पार्टी को 85 सीटें और 11.36 प्रतिशत वोट मिले।21 मई , 1991 को राजीव गांधी की हत्या हो गई और दसवीं लोकसभा के लिए 1991 में हुए चुनाव में कुल 534 सीटों में कांग्रेस 36.40 प्रतिशत के साथ 244 सीटें मिलीं । जबकि भारतीय जनता पार्टी 20.07 प्रतिशत वोट के साथ 120 सीटें और जनता दल 11.73 प्रतिशत वोट के साथ केवल 59 सीटें हासिल कर सका।
11वीं लोकसभा के चुनाव 1996 में 543 सीटों पर हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 161 सीटें और 20.29 प्रतिशत वोट मिले। कांग्रेस को 140 सीटें और 28.80 प्रतिशत वोट तथा जनता दल को 46 सीटें 8.08 प्रतिशत वोट मिले। 12वीं लोकसभा के चुनाव 1998 में कुल 543 सीटों पर हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें 25.59 प्रतिशत वोट, कांग्रेस को 141 सीटें 25.82 प्रतिशत वोट औऱ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) 32 सीटें और 5.16 प्रतिशत वोट मिले। एक साल बाद 1999 में फिर से 13वीं लोकसभा के लिए कुल 543 पर चुनाव हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें और 23.75 प्रतिशत वोट, कांग्रेस को 114 सीटें 28.30 प्रतिशत वोट और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को 33 सीटें और 5.40 प्रतिशत वोट मिले।
इसके बाद का दौर फिर कांग्रेस का रहा 2004 में 14वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 145 सीटें और 26.53 फीसद वोट मिले। भारतीय जनता पार्टी को 138 सीटें और 22.16 प्रतिशत वोट मिले । जबकि भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) को 43 सीटें और 5.66 प्रतिशत वोट मिले। इसी तरह से 2009 में 15वीं लोकसभा के लिए कुल 543 सीटों पर हुए चुनाव में कांग्रेस को 206 सीटें 28.55 प्रतिशत वोट और भारतीय जनता पार्टी को 116 सीटें और 18.80 प्रतिशत वोट तथा समाजवादी पार्टी को 23 सीटें और 3.23 प्रतिशत वोट मिले।
लेकिन इसके बाद भारतीय जनता पार्टी जहां नई ताकत बनकर उभरी । वहीं कांग्रेस हाशिये पर सिमटती चली गई। 16 वीं लोकसभा के चुनाव 2014 कुल 543 सीटों पर हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी 282 सीटें जीतकर बड़ी ताकत बनकर उभरी उसे 31.34 प्रतिशत वोट मिले। वहीं कांग्रेस मात्र 44 सीटें जीत सकी और उसका वोट प्रतिशत गिरकर 19.52 पर आ गया । जबकि अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम 37 सीटें जीतकर 3.31 प्रतिशत वोट हासिल कर सकी।नरेंद्र मोदी की बेहतर नीतियों के चलते 2019 में 17 वीं लोकसभा के चुनाव 543 सीटों पर हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी को 303 सीटों पर कामयाबी 37.70 फीसदी वोट मिले। कांग्रेस को मात्र 52 सीटें और 19.67 प्रतिशत वोट मिले जबकि द्रविड़ मुनेत्र कड़गम को 24 सीटें और 2.36 प्रतिशत वोट मिले।