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UP Lok Sabha Election: मायावती ने अखिलेश के लिए बजाई खतरे की घंटी, पांच में से चार सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशी उतारे
UP Lok Sabha Election: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तो सीटों को लेकर गठबंधन जरूर हो गया है मगर मायावती ‘एकला चलो’ की राह पर चल रही हैं।
UP Lok Sabha Election: लोकसभा चुनाव में इस बार बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती (Mayawati) ने किसी भी दल के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच तो सीटों को लेकर गठबंधन जरूर हो गया है मगर मायावती ‘एकला चलो’ की राह पर चल रही हैं। धीरे-धीरे उन्होंने अपने प्रत्याशियों के नामों का ऐलान भी शुरू कर दिया है। मायावती के इस कदम से साफ है कि वे आने वाले दिनों में सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की मुश्किलें बढ़ाने वाली हैं।
बसपा की ओर से पिछले तीन-चार दिनों के दौरान पांच प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया गया है और उल्लेखनीय बात यह है कि इनमें से चार प्रत्याशी मुस्लिम हैं। मुस्लिम और यादव वोट बैंक को सपा मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की बड़ी ताकत माना जाता रहा है मगर मायावती (Mayawati) इसमें सेंध लगाने की कोशिश में जुट गई हैं। लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) के दौरान भाजपा को मजबूत चुनौती देने की कोशिश में जुटे सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए मायावती का यह कदम खतरे की घंटी माना जा रहा है।
सपा को हो सकता है बड़ा नुकसान
यदि पिछले चुनावों को देखा जाए तो मुस्लिम वोट भाजपा के खिलाफ एकमुश्त पड़ते रहे हैं। यदि किसी चुनाव क्षेत्र में किसी दल की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारा गया तो इसका बड़ा फायदा समाजवादी पार्टी को ही मिलता रहा है। पूर्व के चुनावों में भी बसपा की ओर से मुस्लिम प्रत्याशी उतारने पर इसका खामियाजा सपा को ही भुगतना पड़ा है। हाल में आजमगढ़ में हुए लोकसभा उपचुनाव के दौरान मायावती ने गुड्डू जमाली को खड़ा करके समाजवादी पार्टी की हार की पटकथा लिख दी थी।
आजमगढ़ को सपा का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है मगर गुड्डू जमाली की वजह से लोकसभा उपचुनाव के दौरान भाजपा इस सीट पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी। गुड्डू जमाली ने करीब ढाई लाख से अधिक वोट हासिल किए थे और भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ ने सपा को करीब डेढ़ लाख वोटों से हरा दिया था। इसीलिए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने गुड्डू जमाली को पार्टी में शामिल करके विधान परिषद चुनाव में प्रत्याशी बना दिया है ताकि आजमगढ़ में सपा की राह आसान हो सके।
लोकसभा चुनाव में बन सकती है वही स्थिति
यदि पिछले विधानसभा चुनाव को देखा जाए तो कई सीटों पर बसपा प्रत्याशी सपा की हार का कारण बने थे। यद्यपि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा सिर्फ एक सीट हासिल करने में कामयाब हुई थी मगर पार्टी ने कई सीटों पर सपा प्रत्याशियों की हार में महत्वपूर्ण भूमिका जरूर निभाई थी।
अब लोकसभा चुनाव के दौरान भी वैसी ही स्थितियां बनती हुई दिख रही है।
बसपा की ओर से मुस्लिम प्रत्याशियों को उतारे जाने से सपा के वोट बैंक में मजबूत सेंधमारी की आशंका पैदा हो गई है। बसपा मुखिया के इस कदम से साफ हो गया है कि उनकी पार्टी भले ही न जीत पाए मगर त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में भाजपा को इसका बड़ा सियासी फायदा मिल सकता है।
पांच में से चार मुस्लिम प्रत्याशी
बसपा की ओर से अभी तक प्रदेश की पांच लोकसभा सीटों पर प्रत्याशी घोषित किए गए हैं और इनमें से चार प्रत्याशी मुस्लिम हैं। बसपा ने कन्नौज से पूर्व सपा नेता अकील अहमद, अमरोहा से मुजाहिद हुसैन, पीलीभीत से पूर्व मंत्री अनील अहमद खां फूल बाबू और मुरादाबाद से इरफान सैफी को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान किया है। उल्लेखनीय बात यह है कि बसपा की ओर से अभी तक पांच प्रत्याशी घोषित किए गए हैं और इनमें से चार मुस्लिम हैं।
बसपा से जुड़े हुए सूत्रों का कहना है कि पार्टी मुखिया मायावती ने प्रदेश की लगभग सभी सीटों पर अपने प्रत्याशी तय कर लिए हैं। अधिकांश मंडल प्रभारी को प्रत्याशियों के नाम की जानकारी भी दी जा चुकी है। बसपा संस्थापक कांशीराम की जयंती पर 15 मार्च से मंडल स्तर पर आयोजित होने वाले सम्मेलनों के दौरान पार्टी प्रत्याशियों के नामों का ऐलान किया जाएगा।
भाजपा को हो सकता है बड़ा फायदा
उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में बड़ी हार के बाद मायावती ने 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया। सपा से गठबंधन करने का मायावती को फायदा भी मिला और बसपा 2019 के चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही। मायावती की जीत में सपा से हाथ मिलाने का भी खासा असर रहा,लेकिन चुनाव के बाद सपा से बसपा का गठबंधन टूट गया।
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान बसपा 27 सीटों पर नंबर दो पर रही थी जबकि फतेहपुर सीकरी सीट पर पार्टी नंबर तीन पर थी। इस बार मायावती के अकेले चुनाव लड़ने के फैसले से विपक्ष को नुकसान होने की आशंका जताई जा रही है और यही कारण है कि कांग्रेस मायावती के साथ गठबंधन के लिए बेकरार थी। लोकसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति और मुस्लिम मतों के बंटवारे से भाजपा को बड़ा लाभ मिलने की संभावना जताई जा रही है।