Election 2024: ओडिशा की सियासत में पटनायकों का दबदबा, 45 सालों तक राज्य की सत्ता पर रहे काबिज, इस बार भी मजबूत दावेदारी

Lok Sabha Election 2024: देश की आजादी के बाद यदि 77 साल के इतिहास को देखा जाए तो राज्य की सत्ता करीब 45 साल तक पटनायकों के हाथ में ही रही है।

Anshuman Tiwari
Written By Anshuman Tiwari
Published on: 11 May 2024 8:07 AM GMT
Naveen Patnaik family
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Naveen Patnaik family   (photo: social media )

Lok Sabha Election 2024: ओडिशा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की अगुवाई में बीजू जनता दल इस बार के चुनाव भी अपनी ताकत दिखाने को बेताब हैं। ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो रहे हैं और नवीन पटनायक ने इन दोनों चुनाव में पूरी ताकत लगा रखी है। ओडिशा के बारे में एक दिलचस्प बात यह है कि यहां की राजनीति में पटनायकों का लंबे समय तक दबदबा रहा है। देश की आजादी के बाद यदि 77 साल के इतिहास को देखा जाए तो राज्य की सत्ता करीब 45 साल तक पटनायकों के हाथ में ही रही है।

मौजूदा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक वर्ष 2000 से ही राज्य की सत्ता संभाल रखी है और इस बार भी उन्हें सत्ता का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। अगर इस बार भी वे विधानसभा चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे तो देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का इतिहास रच देंगे। नवीन पटनायक के अलावा दो और पटनायक भी राज्य की सियासत में अहम भूमिका निभा चुके हैं। इनमें नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक और कांग्रेस नेता जानकी बल्लभ पटनायक के नाम शामिल हैं।

बीजू पटनायक और जानकी बल्लभ का दबदबा

ओडिशा की सियासत में पटनायकों के दबदबे को देखा जाए तो नवीन पटनायक के पिता बीजू पटनायक एक दौर में देश के चर्चित नेताओं में शामिल थे। उन्होंने दो बार ओडिशा की कमान संभाली। पहली बार वे 1961 से 1963 तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे और इसके बाद उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में 1990 से 1995 तक ओडिशा का नेतृत्व किया।

ओडिशा में कांग्रेस नेता जानकी बल्लभ पटनायक भी लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। पहली बार 1980 से 1989 तक उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में ओडिशा का नेतृत्व किया। बाद में वे 1995 में एक बार फिर ओडिशा के मुख्यमंत्री बनने में कामयाब रहे और उन्होंने 1999 तक राज्य की कमान संभाली। इस तरह वे करीब 14 वर्षों तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे।

24 साल से मुख्यमंत्री हैं नवीन पटनायक

ओडिशा के मौजूदा मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने वर्ष 2000 में राज्य की कमान संभाली थी और उसके बाद वे लगातार राज्य के मुख्यमंत्री बने हुए हैं। इस बार भी राज्य में हो रहे विधानसभा और लोकसभा चुनाव में नवीन पटनायक की अगुवाई में बीजू जनता दल ने पूरी ताकत लगा रखी है। इस बार भी उन्हें सत्ता का मजबूत दावेदार माना जा रहा है। हालांकि भाजपा और कांग्रेस की ओर से उनकी घेराबंदी भी की गई है।

पहले बीजू जनता दल और भाजपा में तालमेल होने की चर्चा थी मगर सीटों का पेंच फंसने के बाद दोनों दलों के बीच गठबंधन नहीं हो सका। अगर नवीन पटनायक इस बार भी विधानसभा चुनाव जीतने में कामयाब रहे तो वे देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री बने रहने का इतिहास रच देंगे।

आखिर कौन संभालेगा नवीन पटनायक की विरासत

नवीन पटनायक के बाद उनकी विरासत कौन संभालेगा, इसे लेकर उड़ीसा में तरह-तरह की चर्चाएं सुनी जाती रही हैं। नवीन पटनायक ने शादी नहीं की है और वे पहले ही यह बात कह चुके हैं कि उनके परिवार का कोई सदस्य सक्रिय राजनीति में नहीं आएगा। वैसे ओडिशा की सियासत में यह चर्चा सुनी जाती रही है कि नवीन पटनायक के बाद उनके भतीजे अरुण पटनायक या उनकी भतीजी गायत्री बीजू जनता दल की कमान संभाल सकती हैं। हालांकि अभी तक किसी नेता ने भी इस मुद्दे पर खुलकर कोई बयान नहीं दिया है।

अरुण पटनायक और गायत्री नवीन पटनायक के बड़े भाई प्रेम पटनायक के बेटे और बेटी हैं। नवीन पटनायक का राजनीति करने का अपना एक अलग अंदाज है और उन्होंने अभी तक अपने भतीजे या भतीजी को राजनीति में कोई तरजीह नहीं दी है। वैसे उनकी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में वीके पांडियन को माना जाता रहा है। नवीन पटनायक पांडियन को काफी महत्व देते रहे हैं और माना जाता है कि नवीन पटनायक अपने बाद पार्टी की कमान उन्हीं को सौंपेंगे।

इस दिलचस्प तथ्य को भी जानना जरूरी

ओडिशा के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य जानना जरूरी है। राज्य में पटनायक का ताल्लुक राज्य की करण जाति से है। दिलचस्प बात यह है कि ओडिशा में कारण जाति सिर्फ दो फ़ीसदी है मगर फिर भी राज्य की सियासत में इस जाति से जुड़े नेताओं का लंबे समय तक दबदबा रहा है।

पटनायक के अलावा मोहंती सरनेम वालों का ताल्लुक भी करण जाति से ही है। राज्य में मोहंती सरनेम वाले नेताओं का भी काफी प्रभुत्व दिखता रहा है। मजे की बात यह है कि सियासी मैदान में ही नहीं बल्कि आर्थिक क्षेत्र में भी पटनायक और मोहती सरनेम वाले लोगों का काफी दबदबा रहा है।

जानकारों का तो यहां तक कहना है कि ओडिशा में करण जाति के लोगों का सबसे ज्यादा योगदान दिखता रहा है। इस जाति से ताल्लुक रखने वाले नाबाकृष्णा चौधरी भी करीब छह वर्षों तक ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे।

ओडिशा में जाति बड़ा फैक्टर नहीं

वैसे ओडिशा के संबंध में हाल में एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य की राजनीति में जाति कोई बहुत बड़ा फैक्टर नहीं रही है। दूसरी ओर देश के अन्य राज्यों में जातीय समीकरण प्रभावी भूमिका निभाते रहे हैं। ओडिशा में ज्यादातर समय तक लीडरशिप राज्य की अगड़ी जाति से जुड़े लोगों के ही हाथों में रही है। आदिवासी मुख्यमंत्रियों में सिर्फ गिरधर गोमांग और हेमानंद बिस्वाल शामिल रहे हैं जिनके पास ज्यादा समय तक राज्य की कमान नहीं रही।

जातीय नजरिए से देखा जाए तो राज्य में करीब 23 फीसदी आदिवासी और करीब 17 फ़ीसदी एससी हैं। ओबीसी मतदाताओं की संख्या करीब 50 फ़ीसदी है।

वैसे यदि विपक्षी दलों को देखा जाए तो वहां भी पटनायकों का ही दबदबा नजर आता है। मौजूदा समय में राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष शरत पटनायक हैं जबकि चुनाव समन्वय कमेटी की कमान विजय पटनायक के हाथों में है। इन दोनों का ताल्लुक भी करण जाति से ही है। इस तरह देखा जाए तो काफी कम संख्या में होने के बावजूद ओडिशा की राजनीति में लंबे समय से पटनायक सरनेम वालों का ही दबदबा बना हुआ है।

Monika

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पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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