TRENDING TAGS :
Election 2024: दादी और चाचा से अलग है राहुल का मिजाज, इंदिरा गांधी और संजय ने लिया था चुनावी हार का बदला, राहुल ने अमेठी का मैदान छोड़ा
Election 2024: इंदिरा गांधी और संजय गांधी ने चुनावी हार के बाद अगले लोकसभा चुनाव में हार का बदला लेते हुए शानदार वापसी की थी।
Election 2024: इस बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेठी की उस लोकसभा सीट से किनारा कर लिया है जहां के मतदाताओं ने उन्हें 2004 के बाद लगातार तीन बार संसद भेजा था। 2019 में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के हाथों मिली हार के बाद राहुल गांधी अमेठी से पूरी तरह कटे रहे और इस बार भी वे इस लोकसभा क्षेत्र की सियासी जंग में उतरने का साहस नहीं दिखा सके।
वैसे इस मामले में राहुल गांधी का मिजाज अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और अपने चाचा संजय गांधी से पूरी तरह अलग दिखा। इन दोनों नेताओं ने रायबरेली और अमेठी के रणक्षेत्र में चुनावी हार के बाद अपनी सीट नहीं छोड़ी थी। दोनों नेताओं ने चुनावी हार के बाद अगले लोकसभा चुनाव में हार का बदला लेते हुए शानदार वापसी की थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने यह कमाल रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में दिखाया था जबकि संजय गांधी ने अमेठी में मिली हार का बदला लिया था।
1977 में रायबरेली से हार गई थीं इंदिरा गांधी
देश में इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव को आज भी याद किया जाता है। उस चुनाव में कांग्रेस को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था और इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हो गई थीं। देश में जनता पार्टी की सरकार बनी थी और मोरारजी देसाई को प्रधानमंत्री बनाया गया था। 1977 के लोकसभा चुनाव को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि इस चुनाव के दौरान रायबरेली लोकसभा सीट पर इंदिरा गांधी को राजनारायण के हाथों हार का सामना करना पड़ा था।
हार के बावजूद इंदिरा ने नहीं छोड़ी रायबरेली सीट
1977 में मिली इस हार ने इंदिरा गांधी को अंदर तक काफी झकझोर दिया था और वे कई दिनों तक अपने कमरे से बाहर नहीं निकली थीं। वैसे इंदिरा गांधी को काफी जुझारू तेवर वाली नेता माना जाता रहा है और इसका नजारा 1980 के लोकसभा चुनाव में दिखा था।
1977 की चुनावी हार के बावजूद इंदिरा गांधी ने रायबरेली का रण क्षेत्र नहीं छोड़ा और 1980 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली की जनता ने एक बार फिर इंदिरा गांधी को भारी मतों से जीत दिलाई थी। 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी की अगुवाई में कांग्रेस (आई) ने 353 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी।
विजया राजे सिंधिया को हराकर लिया था हार का बदला
1980 के लोकसभा चुनाव में रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी ने जनता पार्टी की उम्मीदवार राजमाता विजया राजे सिंधिया को करीब 1,73,000 वोटों से हराया था। हालांकि 1980 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने तेलंगाना (उस समय आंध्र प्रदेश) की मेडक लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा था।
उन्होंने दोनों लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। रायबरेली में अपनी हार का बदला लेने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़ दी थी और मेडक सेट को बरकरार रखा था। रायबरेली सीट से इंदिरा गांधी के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस के अरुण नेहरू ने जनेश्वर मिश्र को हरा दिया था।
1977 की हार का संजय ने 1980 में लिया बदला
अपनी मां की तरह ही संजय गांधी भी मजबूती इरादों वाले नेता थे। 1977 के लोकसभा चुनाव में वे पहली बार चुनावी मैदान में उतरे। इमरजेंसी के बाद हुए इस चुनाव में लोगों का मूड-मिजाज पूरी तरह कांग्रेस के खिलाफ था और अपने पहले चुनाव में ही संजय गांधी को अमेठी में जनता पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह से करारी शिकस्त झेलनी पड़ी।
अमेठी में मिली हार के बावजूद संजय गांधी ने अमेठी से नाता नहीं तोड़ा और सक्रियता बनाए रखी। इसका नतीजा 1980 के लोकसभा चुनाव में दिखा। तीन साल बाद ही संजय गांधी ने रविंद्र प्रताप सिंह को हराकर अपनी हार का बदला ले लिया था। दुर्भाग्यवश उसी साल एक विमान हादसे में संजय गांधी का निधन हो गया था।
संजय के निधन के बाद राजीव ने संभाली विरासत
इसके बाद अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराया गया था जिसमें संजय गांधी के बड़े भाई राजीव गांधी छोटे भाई की विरासत संभालने के लिए अमेठी पहुंचे थे। उन्होंने अपना निकटतम प्रतिद्वंद्वी को दो लाख से अधिक वोटो से हराकर अपना पहला चुनाव जीता था। इसके बाद राजीव गांधी ने 1991 तक इस लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया। 1991 में तमिलनाडु में एक चुनावी सभा के दौरान उनकी हत्या कर दी गई थी।
दादी और चाचा से अलग राहुल गांधी का मिजाज
इस तरह देखा जाए तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके बेटे संजय गांधी ने चुनावी हार के बावजूद हार नहीं मानी और अगले ही लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों पर एक बार फिर कब्जा करने में कामयाब रहे। दूसरी ओर राहुल गांधी की रणनीति को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी दादी इंदिरा गांधी और चाचा संजय गांधी से कोई सबक नहीं लिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें अमेठी में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने करीब 55,000 मतों से हरा दिया था मगर 2024 की सियासी जंग में राहुल गांधी ने अमेठी के रण क्षेत्र को छोड़ दिया है।
हार के बाद सीट बदलने वाले गांधी परिवार के पहले सदस्य
राहुल गांधी के अमेठी छोड़कर रायबरेली से चुनाव लड़ने के फैसले ने भाजपा को हमला करने का बड़ा मौका मुहैया करा दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और स्मृति ईरानी समेत अन्य भाजपा नेता आरोप लगा रहे हैं कि हार के डर से राहुल गांधी अमेठी छोड़कर भाग गए।
वैसे अगर देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनावी हार के बाद अगले चुनाव में वह सीट छोड़कर किसी दूसरी सीट से चुनाव मैदान में उतरे। ऐसे में राहुल गांधी के फैसले पर सवाल तो उठेंगे ही और इन सवालों का जवाब देना राहुल और कांग्रेस के अन्य नेताओं के लिए आसान नहीं होगा।
कांग्रेस की रणनीति से फायदे की जगह नुकसान
जानकारों का मानना है कि अमेठी और रायबरेली से पार्टी उम्मीदवारों के नाम को लेकर आखिरी वक्त तक सस्पेंस कायम करके कांग्रेस ने फायदे की तुलना में अपना नुकसान ज्यादा किया। पार्टी ने नामांकन के आखिरी दिन अमेठी के रण क्षेत्र से किशोरी लाल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान किया।
किशोरी लाल शर्मा लंबे समय से अमेठी में अमेठी और रायबरेली में गांधी परिवार का काम देखते रहे हैं मगर उन्हें बेहद कम समय में एक ताकतवर प्रतिद्वंद्वी का सामना करना है। केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने 2014 से ही अमेठी में अपनी सक्रियता बनाए रखी है। बेहद कम समय में इतनी मजबूत प्रतिद्वंद्वी का मुकाबला करना केएल शर्मा के लिए काफी मुश्किल माना जा रहा है।