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UP Lok Sabha Election: चाचा शिवपाल नहीं लड़े तो अब अखिलेश भी नहीं लड़ेंगे! बदायूं में टिकट बदलाव का दिखेगा बड़ा असर
UP Lok Sabha Election: बदायूं लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी ने तीसरी बार अपना प्रत्याशी बदला है। वैसे इस बार के लोकसभा चुनाव में इसे कोई अनहोनी बात नहीं माना जा रहा है।
UP Lok Sabha Election: बदायूं लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी को लेकर पिछले कई दिनों से चल रही कयासबाजी अब खत्म हो गई है। समाजवादी पार्टी ने रविवार को इस सीट पर शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव को प्रत्याशी बनाने का आधिकारिक ऐलान कर दिया। शिवपाल सिंह यादव शुरू से ही सीट पर चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे और इसी कारण उन्होंने बदायूं की जनता के बहाने अपने बेटे का नाम आगे कर दिया था। उनके इस सियासी दांव के बाद आखिरकार सपा मुखिया अखिलेश यादव आदित्य यादव को उम्मीदवार बनाने के लिए मजबूर हो गए।
बदायूं में चुनाव न लड़ने के शिवपाल सिंह यादव के फैसले का एक और बड़ा सियासी असर पड़ना तय माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि शिवपाल सिंह यादव के चुनाव न लड़ने की स्थिति में अब सपा मुखिया अखिलेश यादव का भी लोकसभा चुनाव की जंग में उतरना मुश्किल है। चुनाव जीतने की स्थिति में अखिलेश यादव को नेता विरोधी दल के पद से इस्तीफा देकर शिवपाल सिंह की ताजपोशी करनी पड़ सकती है और इसके लिए अखिलेश भीतरी तौर पर तैयार नहीं दिख रहे हैं। हालांकि बाहरी तौर पर चाचा और भतीजे दोनों एक-दूसरे से अपने रिश्तों को काफी मधुर बताते रहे हैं।
बदायूं से नहीं लड़ना चाहते थे शिवपाल
बदायूं लोकसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी ने तीसरी बार अपना प्रत्याशी बदला है। वैसे इस बार के लोकसभा चुनाव में इसे कोई अनहोनी बात नहीं माना जा रहा है क्योंकि सपा मुखिया अखिलेश यादव कई अन्य चुनाव क्षेत्रों में भी कई-कई बार प्रत्याशी बदल चुके हैं। बदायूं में पहले अखिलेश यादव ने अपने चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया था मगर कुछ दिनों बाद धर्मेंद्र यादव की जगह अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को चुनाव मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया था।
शिवपाल सिंह यादव शुरू से ही बदायूं से चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं थे। यह इस बात से भी साफ हो गया क्योंकि वे उम्मीदवार घोषित किए जाने के 24 दिन बाद बदायूं पहुंचे। बदायूं पहुंचने के बाद ही उन्होंने यह बात कहनी शुरू कर दी थी कि वे लोकसभा चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे बल्कि अन्य चुनाव क्षेत्रों में सपा प्रत्याशियों की स्थिति को मजबूत बनाना चाहते थे।
इसकै बाद यह सवाल भी उभरने लगा कि क्या सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बदायूं से उम्मीदवार बनाकर शिवपाल को फंसा दिया है? उसके बाद शिवपाल ने अपने बेटे को आदित्य यादव को आगे करके बड़ी सियासी चाल चल दी।
अनिच्छा के पीछे यह भी था बड़ा कारण
शिवपाल सिंह यादव बदायूं लोकसभा सीट से चुनाव इसलिए भी नहीं लड़ना चाहते थे क्योंकि चुनाव जीतने की स्थिति में उन्हें जसवंतनगर विधानसभा सीट से इस्तीफा देना पड़ता। इसके बाद उन्हें दिल्ली की राजनीति करनी पड़ती जो उन्होंने पहले कभी नहीं की है।
दिल्ली की सियासत में उन्हें जीरो से शुरुआत करनी पड़ती और इसके लिए वे तैयार नहीं थे। इसके अलावा दिल्ली में सपा की सियासत में लंबे समय से रामगोपाल यादव ने अपना सिक्का जमा रखा है और उनके साथ भी शिवपाल सिंह यादव के रिश्ते भीतरी तौर पर अच्छे नहीं हैं। उनके साथ सामंजस्य बैठाना शिवपाल के लिए और मुश्किल होता।
बदायूं पहुंचकर बेटे के लिए बनाया माहौल
बदायूं पहुंचने के बाद से ही शिवपाल सिंह यादव लगातार अपने साथ आदित्य यादव को लेकर घूम रहे थे। कुछ दिनों बाद समाजवादी पार्टी के मंचों से आदित्य यादव को प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा होने लगी। गुन्नौर के कार्यकर्ता सम्मेलन में तो बाकायदा इस बाबत प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रीय अध्यक्ष से आदित्य यादव को प्रत्याशी बनाए जाने की मांग की गई।
इस बीच धर्मेंद्र यादव ने भी बदायूं पहुंचने के बाद आदित्य यादव के पक्ष में ही माहौल बनाने का प्रयास किया। उन्होंने तो यहां तक बयान दे डाला कि चाचा के लिए काम करने में थोड़ी हिचक रहती है मगर आदित्य के लिए काम करने में हम सबको खुशी होगी।
शिवपाल सिंह यादव ने कभी अपने मुंह से सीधे आदित्य यादव का नाम तो नहीं लिया मगर उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से आदित्य यादव के पक्ष में माहौल बनाने का भरसक प्रयास किया। वे लगातार यही कहते रहे कि बदायूं की जनता और सपा कार्यकर्ता युवा प्रत्याशी चाहते हैं।
उन्होंने अपने बेटे के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। सपा के विभिन्न मंचों पर ‘आदित्य यादव जिंदाबाद’ के नारे लगने लगे और उन्हें प्रत्याशी बनाए जाने की खुलकर मांग होने लगी।
घोषणा से पहले ही आदित्य के लिए नामांकन पत्र खरीदा
समाजवादी पार्टी की ओर से रविवार को आदित्य यादव की उम्मीदवारी का ऐलान किया गया मगर उल्लेखनीय बात यह है कि सपा के जिला अध्यक्ष आशीष यादव ने पार्टी की आधिकारिक घोषणा से पहले ही पार्टी के घोषित प्रत्याशी शिवपाल सिंह यादव के नाम का नामांकन पत्र न खरीद कर आदित्य यादव के नाम का नामांकन पत्र खरीदा और फिर सोमवार को नामांकन से पहले ही सपा मुखिया की ओर से आदित्य यादव की उम्मीदवारी का ऐलान कर दिया गया।
समाजवादी पार्टी में यह पहला उदाहरण दिखा जब प्रत्याशी सपा अध्यक्ष की ओर से नहीं बल्कि जनता और कार्यकर्ताओं की डिमांड पर तय किया गया। आदित्य यादव की उम्मीदवारी की चर्चा पिछले कई दिनों से हो रही थी मगर पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने इस मामले को लटकाए रखा था।
अखिलेश यादव के इस रुख से साफ था कि वे आदित्य यादव को उम्मीदवार नहीं बनाना चाहते थे मगर आखिरकार मजबूरी में उन्हें आदित्य यादव की उम्मीदवारी का ऐलान करना पड़ा।
चाचा-भतीजे में खींचतान फिर उजागर
समाजवादी पार्टी में चाचा शिवपाल सिंह यादव और भतीजे अखिलेश यादव के आपसी रिश्ते की चर्चा लंबे समय से होती रही है। दोनों के बीच एक समय तलवार खिंच गई थी मगर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी में हुए उपचुनाव से दोनों के रिश्तों की डोर एक बार फिर बंध गई थी।
चाचा और भतीजे दोनों आपसी रिश्तों को मधुर बताते रहे हैं मगर भीतरी तौर पर दोनों के रिश्तों में अभी भी ज्यादा मधुरता नहीं है। पहले शिवपाल के अनिच्छुक होने के बावजूद अखिलेश यादव की ओर से उन्हें उम्मीदवार बनाया जाना और फिर लंबे इंतजार के बाद अनिच्छा के बावजूद अखिलेश यादव की ओर से आदित्य को टिकट दिया जाना, इस बात का संकेत है कि अंदरखाने सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है।
शिवपाल के फैसले का पड़ेगा बड़ा असर
वैसे शिवपाल सिंह के चुनाव न लड़ने का बड़ा सियासी असर पड़ने की संभावना भी जताई जा रही है। सियासी जानकारों का मानना है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने काफी सोच-समझकर अभी तक अपनी उम्मीदवारी के ऐलान को रोक रखा है।
उन्होंने सोच रखा था कि अगर चाचा शिवपाल सिंह यादव लोकसभा चुनाव के अखाड़े में नहीं उतरेंगे तो वे भी चुनाव नहीं लड़ेंगे। अखिलेश यादव की इस सोच के पीछे भी बड़ा कारण माना जा रहा है।
अखिलेश यादव भी ले सकते हैं बड़ा फैसला
दरअसल यदि अखिलेश यादव ने लोकसभा चुनाव लड़ा और उन्हें जीत हासिल हुई तो उन्हें उत्तर प्रदेश छोड़कर दिल्ली की राजनीति करनी पड़ेगी। ऐसे में उन्हें नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी के किसी वरिष्ठ नेता को सौंपनी पड़ेगी। अगर उन्होंने अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव को यह जिम्मेदारी सौंपी तो चाचा एक बार फिर प्रदेश सपा की राजनीति में सक्रिय होकर ताकतवर बन जाएंगे। ऐसा अखिलेश यादव भीतरी तौर पर कतई नहीं चाहते।
दूसरी ओर यदि अखिलेश यादव ने शिवपाल सिंह यादव के विधायक रहते हुए भी यह जिम्मेदारी किसी और नेता को सौंपी तो इससे चाचा और भतीजे के बीच मनमुटाव जग जाहिर हो जाएगा। इसे लेकर भाजपा समेत अन्य विरोधी हमलावर हो जाएंगे।
अखिलेश यादव मीडिया और अन्य विरोधी नेताओं को ऐसी अटकलें लगाने का मौका नहीं देना चाहते। इसी कारण माना जा रहा है कि अब उनका भी लोकसभा चुनाव की जंग में उतरना मुश्किल है। वे लोकसभा चुनाव से दूर रहने का बड़ा फैसला ले सकते हैं।