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Loksabha Election 2024: श्रावस्ती लोकसभा सीट की विचारधारा राप्ती की धारा की तरह ही बदलती है, जानें समीकरण

Shravasti Seat Parliament Constituency: यहां के बसपाई सांसद राम शिरोमणि वर्मा ने पाला बदलकर सपा के टिकट पर इस बार भी चुनावी मैदान में उतरें हैं।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 17 May 2024 6:00 PM IST
Loksabha Election 2024: श्रावस्ती लोकसभा सीट की विचारधारा राप्ती की धारा की तरह ही बदलती है, जानें समीकरण
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Lok Sabha Election 2024: शौर्य व धैर्य की धरती श्रावस्ती लोकसभा सीट की अपनी अलग राजनीतिक महत्ता है। मां अचरावती की धरती से सत्ता की सीढ़ी चढ़ने वाले भारतीय राजनीति के अजातशत्रु भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी यहां से हार का सामना करना पड़ा था। तथागत भगवान बुद्ध व अंगुलिमाल की इस धरती से राजनीतिक संत नाना जी देशमुख ने चुनाव जीता तो बृजभूषण शरण सिंह व रिजवान जहीर भी सदन पहुंचे। इसी धरती ने माफिया डॉन अतीक अहमद को नकारा तो बाहुबली कुशल तिवारी को भी सदन जाने से रोक दिया। फिलहाल इस सीट पर बसपा का कब्जा है। यहां के बसपाई सांसद राम शिरोमणि वर्मा ने पाला बदलकर सपा के टिकट पर बार भी चुनावी मैदान में उतरें हैं। जबकि भाजपा ने प्रधानमंत्री मोदी के कैबिनेट सेक्रेटरी रहे श्री राम मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा के पुत्र व पूर्व नौकरशाह साकेत मिश्रा को चुनावी रण में उतारा है। जबकि बसपा ने कोर वोटर के साथ अल्पसंख्यक मतदाताओं को रिझाने के लिए मुइनुद्दीन अहमद खान उर्फ हाजी दद्दन खान को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां लड़ाई त्रिकोणीय देखने को मिल रहा है।

Shravasti Seat Lok Sabha Chunav 2019


Shravasti Seat Vidhan Sabha Chunav 2022




Shravasti Seat Lok Sabha Chunav 2014


अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो सपा बसपा के संयुक्त उम्मीदवार रहे राम शिरोमणि वर्मा ने भाजपा के दद्दन मिश्रा को 5,320 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में राम शिरोमणि वर्मा को 4,41,771 और दद्दन मिश्रा को 4,36,451 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के धीरेंद्र प्रताप सिंह को 58,042 और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नब्बन खान को 12,662 वोट मिले थे। वहीं लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा के दद्दन मिश्र ने सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे माफिया अतीक अहमद को 85,913 वोट से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में दद्दन मिश्र को 3,45,964 और माफिया अतीक अहमद को 2,60,051 वोट मिले थे। जबकि बसपा के लाल जी वर्मा को 1,94,890 और वन पीस पार्टी के रिज़वान ज़हीर को 1,01,817 वोट मिले थे। वहीं कांग्रेस के विनय कुमार पांडेय को महज 20,006 वोट मिले थे।

यहां जानें श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र के बारे में



  • श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 58 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1957 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन श्रावस्ती जिले के भिनगा, श्रावस्ती और बलरामपुर जिले के तुलसीपुर, बलरामपुर व गैंसड़ी विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • श्रावस्ती लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 3 पर भाजपा और 1 पर सपा का कब्जा है। (गैंसड़ी विधानसभा सीट पर उपचुनाव)
  • यहां कुल 19,14,739 मतदाता हैं। जिनमें से 8,76,661 पुरुष और 10,38,006 महिला मतदाता हैं।
  • श्रावस्ती लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 9,97,139 यानी 52.08 प्रतिशत मतदान हुआ था।

श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास

बौद्ध तीर्थस्थल के नाम से दुनियाभर में मशहूर श्रावस्ती शहर महात्मा बुद्ध के तपस्थली कोशल देश की राजधानी थी। श्रावस्ती शहर तब 6 महानगरों (चंपा, साकेत, राजगृह, श्रावस्ती, कौशांबी और वाराणसी) में भी शामिल था। यहां बौद्ध और जैन दोनों धर्मों का तीर्थस्थल है। इस शहर का नाम श्रावस्ती कैसे पड़ा इसके पीछे कई मान्यताएं हैं। बौद्ध ग्रंथ बताते हैं कि श्रावस्त नाम के एक ऋषि के आधार पर इस नगर का नाम श्रावस्ती पड़ा। जैन साहित्य में इस शहर का नाम 'चंद्रपुरी' और 'चंद्रिकापुरी' के रूप में भी मिलते हैं। महाभारत में श्रावस्त नाम के एक राजा की कथा मिलती है। पुराणों में श्रावस्ती शहर को भगवान राम के पुत्र लव की राजधानी बताया गया है। श्रावस्ती जिले का गठन 2 बार किया गया। पहले 22 मई 1997 को इसे जिला घोषित किया गया, लेकिन 13 जनवरी 2004 में राज्य सरकार ने जिले का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। बाद में जून 2004 में श्रावस्ती को फिर से नया जिला बना दिया गया।

श्रावस्ती लोकसभा सीट पहले था बलरामपुर

श्रावस्ती लोकसभा का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। परिसीमन के बाद वर्ष 2009 में अस्तित्व में आया था। पहले इसे बलरामपुर लोकसभा सीट के नाम से जाना जाता था। राप्ती की धारा की तरह ही तराई इलाके वाले श्रावस्ती की विचारधारा भी बदलती रही है। इनमें चुनावी नारों का अहम योगदान रहा है, जिन्होंने नेताओं की तकदीर बनाई तो कुछ को सत्ता से बेदखल भी कर दिया। यहां के मतदाता कभी स्थिर न होकर हमेशा राप्ती की लहरों की तरह नया रास्ता तलाशते रहे। इसके लिए कभी वह सत्ता के साथ तो कभी सत्ता के विपरीत मतदान करने से भी नहीं झिझके, लेकिन हर बार के चुनाव में चुनावी नारों ने अपना असर दिखाया। 1962 के आम चुनाव रहे हों या फिर 1998 व 1999 का उपचुनाव। सभी में तराई की तासीर नारों से ही बदलती रही।

1962 के चुनावी नारा से हारे अटल और 1967 में फिर जीते


बलरामपुर लोकसभा सीट पर 1957 में हुए पहले चुनाव में जनसंघ के टिकट पर अटल बिहारी वाजपेयी ने पर्चा भर दिया। कांग्रेस की ओर से हैदर हुसैन चुनावी मैदान में उतरे। लेकिन अटल जी उन्हें करीब 10 हजार वोट से हरा दिया। फिर 1962 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने प्रतिद्वंदी उम्मीदवार रहे कांग्रेस नेता सुभद्रा चौहान खिलाफ एक विवादित बयान दे दिया। इसके बाद कांग्रेस ने इसे मुद्दा बनाया। पूरे चुनावी कैंपेन में नारा बुलंद रहा कि उहे चुनउवा उहे निशान, अटल बिहारी फिर बौरान। इस नारे ने अटल जी को करारी शिकस्त दिलाई। फिर 1967 के चुनाव में जनसंघ का नारा बना दुगुर दुगुर दिया जले मूस लैगा बाती, अटल बिहारी हार गे सुभद्रा के जाती। इस चुनावी नारे ने अटल जी की चुनावी नय्या पार लगा दी। फिर 1971 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और चन्द्र भाल मणि तिवारी सांसद बने। जब 1977 में राजा नहीं फकीर है, बलरामपुर की तकदीर है चुनावी नारे लगे तो बलरामपुर की महारानी को यहां की जनता ने बाहर का रास्ता दिखाया। इसी नारे के बल पर नानाजी देशमुख सदन में पहुंच गए।

1998 और 1999 के चुनाव में सपा को मिली जीत

देश में 1980 के लोकसभा चुनाव में जनता के दिमाग से इमरजेंसी का नाराजगी उतर गया था। इस चुनाव कांग्रेस के चन्द्र भाल मणि तिवारी सांसद बने। फिर 1984 के चुनाव में कांग्रेस के महंत दीप नारायण वन सांसद बने। 1989 के चुनाव में फसी-उर-रहमान मुन्नन खान निर्दलीय सांसद बने। देश में 90 के दशक में चल रहे राम लहर से यह सीट भी अछुता नहीं रहा। 1991 के चुनाव में सत्यदेव सिंह ने इस सीट पर कमल खिला दिया। उन्होंने इस जीत को 1996 में भी दुहरा दिया। लेकिन 1998 में ऊपर भगवान नीचे रिजवान के नारे ने सपा से रिजवान जहीर को साइकिल से संसद पहुंचा दिया। 1999 में एक बार फिर सपा से रिजवान जहीर व भाजपा से कुशल तिवारी मैदान में उतरे। इस बार भाजपा जीत के करीब थी, लेकिन भाजपाइयों के जीतेंगे तो रंग चलेगा, हारेंगे तो बम चलेगा के नारे ने कुशल तिवारी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन 2004 में रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे ने बृजभूषण शरण सिंह को सदन भेजा। लेकिन 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी कर दी और विनय कुमार पांडेय सांसद बने।

श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण

श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां करीब 20 प्रतिशत मुसलमान और 15 प्रतिशत के करीब यादव हैं। इसके अलावा 20 प्रतिशत कुर्मी और 10 प्रतिशत से ज्यादा दलित मतदाता हैं। बता दें कि सबसे ज्यादा ब्राह्मण मतदाता है जिनकी संख्या 30 प्रतिशत के करीब हैं। ऐसे में वे जिधर जाते हैं जीत तय हो जाती है। इसके अलावा श्रावस्ती सीट पर क्षत्रिय समाज की 5 प्रतिशत के करीब मतदाता हैं।

श्रावस्ती लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • भारतीय जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेयी 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से सुभद्रा जोशी 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।
  • भारतीय जनसंघ से अटल बिहारी वाजपेयी 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से चन्द्र भाल मणि तिवारी 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से नानाजी देशमुख 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से चन्द्र भाल मणि तिवारी 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से महंत दीप नारायण वन 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • निर्दल फसी-उर-रहमान मुन्नन खान 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से सत्यदेव सिंह 1991 और 1996 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • सपा से रिज़वान ज़हीर 1998 और 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से बृजभूषण शरण सिंह 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से विनय कुमार पांडेय 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से दद्दन मिश्र 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से राम शिरोमणि वर्मा 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।


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Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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