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Loksabha Election 2024: सुलतानपुर लोकसभा सीट पर सपा छोड़ सभी दल बने ‘सुलतान’, मेनका को मिली हैट्रिक की कमान, जानें समीकरण

Sultanpur Seat Parliament Constituency: यहां से गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी वर्तमान में सांसद हैं। भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाने के लिए दूसरी बार उन पर दांव लगाया है। जबकि सपा ने रामभुआल निषाद को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने उदय राज वर्मा को उम्मीदवार बनाया है।

Sandip Kumar Mishra
Published on: 17 May 2024 5:30 PM IST
Loksabha Election 2024: सुलतानपुर लोकसभा सीट पर सपा छोड़ सभी दल बने ‘सुलतान’, मेनका को मिली हैट्रिक की कमान, जानें समीकरण
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Lok Sabha Election 2024: यूपी में गांधी परिवार से जुड़ी तीन प्रमुख लोकसभा सीटें रायबरेली, अमेठी और पीलीभीत को मानी जाता है। इनके अलावा सुलतानपुर लोकसभा सीट भी इस परिवार के लिए काफी महत्वपूर्ण रही है। रायबरेली का पड़ोसी होने के चलते सुलतानपुर लोकसभा सीट पर कभी कांग्रेस का सिक्का चलता था। लेकिन अब इस सीट पर 2014 से भगवा लहरा रहा है। यहां से गांधी परिवार की बहू मेनका गांधी वर्तमान में सांसद हैं। भाजपा ने जीत की हैट्रिक लगाने के लिए दूसरी बार उन पर दांव लगाया है। जबकि सपा ने रामभुआल निषाद को चुनावी रण में उतारा है। वहीं बसपा ने उदय राज वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। इस बार यहां लड़ाई भाजपा को जीत की हैट्रिक लगाने की है तो विपक्ष को वापसी करने की है। पीलीभीत से सांसद रहे मेनका गांधी के बेटे वरुण का टिकट इस बार कट गया है। वरुण की टीम की ओर से कहा गया है कि वरुण इस बार सुलतानपुर में अपनी मां के लिए प्रचार करेंगे। वरुण 2014 में यहां से जीत चुके हैं। ऐसे में सुलतानपुर में उनका अपना भी प्रभाव है जो इस चुनाव में उनकी मां के काम आ सकता है।


Sultanpur Vidhan Sabha Chunav 2022




Sultanpur Lok Sabha Chunav 2014


अगर लोकसभा चुनाव 2019 की बात करें तो पीलीभीत से सांसद रहीं मेनका गांधी ने सुलतानपुर से पर्चा भरा। यहां सपा बसपा के उम्मीदवार रहे चन्द्र भद्र सिंह को महज 14,526 वोट से हराकर जीत दर्ज कीं। इस चुनाव में मेनका गांधी को 4,59,196 और चन्द्रभद्र सिंह को 4,44,670 वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस के संजय सिंह को 41,681 और शिवपाल यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की उम्मीदवार कमला यादव को 31,494 वोट मिले थे। लोकसभा चुनाव 2014 में मोदी लहर के दौरान भाजपा ने सुलतानपुर से मेनका गांधी के बेटे वरुण को उम्मीदवार बनाया था। वरुण ने बसपा के उम्मीदवार पवन पांडेय को 1,78,902 वोट के बड़े अंतर से हराकर जीत दर्ज की थी। इस चुनाव में वरुण गांधी को 4,10,348 और पवन पांडेय को 2,31,446 वोट मिले थे। जबकि सपा के शकील अहमद को 2,28,144 और कांग्रेस के अमिता सिंह को महज 41,983 वोट पर संतोष करना पड़ा था।

यहां जानें सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र के बारे में

  • सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र का निर्वाचन संख्या 38 है।
  • यह लोकसभा क्षेत्र 1952 में अस्तित्व में आया था।
  • इस लोकसभा क्षेत्र का गठन सुलतानपुर जिले के इसौली, सुल्तानपुर, सुल्तानपुर सदर, लंभुआ, कादीपुर विधानसभा क्षेत्रों को मिलाकर किया गया है।
  • सुलतानपुर लोकसभा के 5 विधानसभा सीटों में से 4 पर भाजपा और 1 पर सपा का कब्जा है।
  • यहां कुल 17,75,196 मतदाता हैं। जिनमें से 8,46,070 पुरुष और 9,29,053 महिला मतदाता हैं।
  • सुलतानपुर लोकसभा सीट पर 2019 में हुए चुनाव में कुल 10,20,764 यानी 56.37 प्रतिशत मतदान हुआ था।

सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास


ऐतिहासिक दृष्टि से सुलतानपुर का अतीत अत्यंत गौरवशाली रहा है। पुरातात्विक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक और औद्योगिक दृष्टि से सुलतानपुर का अपना खास स्थान है। महर्षि वाल्मीकि, दुर्वासा वशिष्ठ जैसे ऋषि मुनियों की तपोस्थली का गौरव इसी जिले को प्राप्त है। अयोध्या और प्रयाग के मध्य गोमती नदी के दोनों ओर सई और तमसा नदियों के बीच कभी यह भूभाग बहुत दुर्गम था। गोमती के किनारे का यह क्षेत्र कुश-काश के लिए प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में सुलतानपुर का नाम कुशभवनपुर था जो कालांतर में बदलते-बदलते सुलतानपुर हो गया। मोहम्म्द गोरी के आक्रमण के पहले यह राजभरों के अधिपत्य में था। सुलतानपुर के ही रहने वाले मजरूह सुलतानपुरी ने लिखा है, ‘हम हैं मता-ए-कूचा ओ बाजार की तरह, उठती है हर निगाह खरीददार की तरह।’ मता (सामान)-ए-कूचा (तंग गली) यानी गली पर रखे सामान, या फुटपाथ की दुकान। सुलतानपुर की सियासत में नेताओं का आना-जाना भी कुछ ऐसा ही है। यहां कई बड़े चेहरे आए चुनाव व सुविधा के अनुसार कभी टिके और कभी ठिकाना बदल लिया। बावजूद इसके सपा को छोड़कर सभी प्रमुख दलों के चेहरों को यहां की जनता ने ‘सुलतानपुर’ बनाया है।

नेहरू की आलोचना करने पर यहां के मजरूह सुलतानपुरी को हुई जेल


कभी यहां के साहित्यिक चेहरे तो कभी सियासी चेहरे से नेहरू का टकराव होता रहा है। 1949 में मजरूह सुलतानपुरी ने सार्वजनिक मंच से अपने एक गीत में नेहरू को लेकर अल्फाज कुछ यूं तीखे किए, ‘ये भी कोई हिटलर का है चेला, मार लो साथ जाने न पाए। कॉमनवेल्थ का दास है नेहरू, मार लो साथ जाने न पाए।’ इस गीत के लिए महाराष्ट्र सरकार ने मजरूह को जेल भेज दिया और उनके सामने माफी मांगने की शर्त रखी। मजरूह ने माफी नहीं मांगी और दो साल की जेल की सजा काटी। आजादी के बाद 1952 में हुए चुनाव में सुलतानपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में नहीं था। यूपी में सुलतानपुर जिला (दक्षिण) और सुलतानपुर जिला (उत्तर) - फैजाबाद जिला (दक्षिण-पश्चिम) नाम से दो सीटें थीं। तब यहां से शास्त्रीय संगीत के विद्वान बी.वी. केसकर सांसद चुने गए। नेहरू ने उन्हें सूचना व प्रसारण मंत्रालय की जिम्मेदारी दी। सरकारी प्रश्रय में शास्त्रीय संगीत को उन्होंने खूब बढ़ावा दिया, लेकिन संगीत को लेकर शुद्धतावादी केसकर मानना था कि फिल्मी गीत अश्लीलता फैलाते हैं, इसलिए इसका प्रसार नहीं होना चाहिए। ऑल इंडिया रेडियो पर उन्होंने फिल्मी गीत बंद करवा दिए। इसका फायदा उठाया श्रीलंका से प्रसारित होने वाले रेडियो सीलोन ने और उसने ‘बिनाका गीतमाला’ जैसे कार्यक्रमों के जरिए भारतीय बाजार में पैठ बनानी शुरू कर दी। केसकर ने क्रिकेट कमेंट्री भी बैन कर दी। सेंसर बोर्ड भी उनके अधीन था। दिलीप कुमार की ‘गंगा-जमुना’ पर बोर्ड ने 250 कट लगाए। परेशान होकर दिलीप कुमार को नेहरू से गुहार लगानी पड़ी, तब जाकर फिल्म रिलीज हो पाई।

सुलतानपुर लोकसभा सीट पर चेहरा बदलकर कांग्रेस ने लगाई हैट्रिक

देश में दूसरी बार लोकसभा चुनाव जब 1957 में हुए तो सुलतानपुर लोकसभा सीट अस्तित्व में आई। यहां हुए पहले चुनाव में कांग्रेस की तरफ से उतरे शिक्षाविद और स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यकर्ता गोविंद मालवीय को जीत मिली। गोविंद जाने-माने शिक्षाविद पंडित मदनमोहन मालवीय के बेटे थे। चुनाव में गोविंद मालवीय ने जनसंघ के उम्मीदवार भास्कर प्रताप साही को 22,883 वोट से हराया था। वहीं 1957 में केसकर ने सीट बदल कर चुनाव में जीत दर्ज की। लेकिन नेहरू ने उनका ओहदा घटाकर राज्यमंत्री का कर दिया। इसके बाद श्रोताओं को लुभाने के लिए क्रिकेट कमेंट्री भी शुरू हुई और ‘विविध भारती’ भी। सुलतानपुर लोकसभा सीट चेहरे बदलते रहे लेकिन 1971 तक कांग्रेस की जीत का क्रम जारी रहा। 1962 के चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार कुंवर कृष्ण वर्मा ने जनसंघ के बेचू सिंह को 32,551 वोट से हरा दिया। फिर 1967 के चुनाव में कांग्रेस के गणपत सहाय ने जनसंघ के जेके अग्रवाल को 46,010 वोट से हराया। 1971 में कांग्रेस के केदारनाथ सिंह ने जनसंघ के राम प्यारे शुक्ल को 62,815 वोटों से हराया। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए चुनाव में जब जनता ने इंदिरा गांधी व उनके बेटे संजय गांधी तक को नहीं चुना तो विद्रोही तेवर वाले सुलतानपुर का मिजाज कैसे अलग रहता। यहां से जनता पार्टी के जुल्फिकारउल्ला चुने गए। उन्होंने कांग्रेस के केदारनाथ सिंह को 1,65,534 वोटों से हरा दिया था। हालांकि, 1980 में कांग्रेस की फिर वापसी हुई और 1984 तक जीत का क्रम जारी रहा। 1989 में जनता दल ने जब इस पर ब्रेक लगाया तो कांग्रेस को वापसी के लिए दो दशक इंतजार करना पड़ा।

भाजपा उम्मीदवार की एक गलती और जीत गई बसपा

देश में 90 के दशक में रामलहर पर सवार भाजपा सियासी विस्तार में जुटी थी। 1991 में मंदिर आंदोलन से जुड़े संत विश्वनाथ दास शास्त्री को उसने उम्मीदवार बनाया और कमल खिलाने में कामयाब रही। 1992 में फैजाबाद के एसएसपी रहे देवेंद्र बहादुर राय को भाजपा ने अगले दो चुनवों में उम्मीदवार बनाकर जीत की हैट्रिक लगाई। 1999 में सुलतानपुर राजनीति में अप्रत्याशित घटना का गवाह बना। केंद्र में अटल की 13 महीने वाली सरकार थी, जो जनादेश के लिए जनता के बीच आई थी। प्रदेश में कल्याण सिंह की अगुआई में भाजपा की सत्ता थी। पार्टी ने इस बार यहां से गोंडा के पूर्व सांसद सत्यदेव सिंह को उम्मीदवार बनाया। नामांकन के आखिरी दिन सत्यदेव ने पर्चा भरा। लेकिन, तत्कालीन निर्वाचन अधिकारी अनुराग श्रीवास्तव ने उनका पर्चा खारिज कर दिया। वजह नामांकन में देरी बताई गई। हैट्रिक लगाने वाली भाजपा बिना लड़े ही चुनाव से बाहर हो गई। खुले मैदान का फायदा बसपा को मिला और उसके उम्मीदवार जयभद्र सिंह ने यहां पार्टी का खाता खोल दिया। 2004 में भी बसपा के ताहिर जीते, लेकिन 2009 में संजय सिंह ने आखिरकार कांग्रेस की वापसी करवाई।

सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र का जातीय समीकरण

सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां मुस्लिम, दलित व ब्राह्मण राजनीति की दिशा तय करते हैं। यादव व वैश्य भी करीब 2-2 लाख तो सवा लाख से अधिक कुर्मी व इतने ही ठाकुर वोटर हैं। 1 लाख से अधिक निषादों की भागीदारी है।

सुलतानपुर लोकसभा क्षेत्र से अब तक चुने गए सांसद

  • कांग्रेस से बी.वी. केसकर 1952 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से गोविंद मालवीय 1957 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से कुँवर कृष्ण वर्मा 1962 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से गणपत सहाय 1967 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से केदार नाथ सिंह 1971 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता पार्टी से जुल्फिकारउल्ला 1977 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से गिरिराज सिंह 1980 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से राज करण सिंह 1984 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • जनता दल से राम सिंह 1989 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से विश्वनाथ दास शास्त्री 1991 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से देवेन्द्र बहादुर राय 1996 और 1998 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से जय भद्र सिंह 1999 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • बसपा से ताहिर खान 2004 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • कांग्रेस से संजय सिंह 2009 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से वरुण गांधी 2014 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुने गए।
  • भाजपा से मेनका गांधी 2019 में लोकसभा चुनाव में सांसद चुनीं गईं।


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Sandip Kumar Mishra

Sandip Kumar Mishra

Content Writer

Sandip kumar writes research and data-oriented stories on UP Politics and Election. He previously worked at Prabhat Khabar And Dainik Bhaskar Organisation.

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