Indian Politician: इन महारथियों का चुनाव में रहता था कभी जलवा, अब इनकी खत्म होती राजनीतिक विरासत

Indian Politician: लोकसभा चुनावों में इन नेताओ की कमी खूब खल रही है।

Jyotsna Singh
Published on: 21 May 2024 11:04 AM GMT
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Indian Politician: देश और प्रदेश की राजनीति में हमेशा केंद्र में रहे कई बड़े नेताओं के मैदान में न होने से समर्थक और उनके परिजन निराश ही दिखाई दिए। पिछले तीन दशकों से ऐसे नेताओं और उनके परिवार के किसी सदस्य मैदान में होने से चुनावी सक्रियता हर चुनाव में देखने को मिलती रही। पर इस बार के लोकसभा चुनावों में इन नेताओ की कमी खूब खल रही है।भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तथा केन्द्र की एनडीए सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी जो स्वयं कई यूपी की कई सीटों से जीतकर संसद पहुंचे।

वे पिछली बार की तरह इस बार भी चुनाव नहीं लड़ रहे है न ही उनके परिवार का कोई सदस्य मैंदान में है।मुरली मनोहर जोशी 1977 में अल्मोड़ा,1996-1998-1999 में इलाहाबाद से निर्वाचित होकर संसद पहुंचे जबकि 2014 में उन्होंने कानपुर से संसद अपनी आमद दर्ज कराई। यह चुनाव उनका आखिरी चुनाव था। श्री जोशी की दो पुत्रियां है लेकिन इनमें से कोई राजनीति में सक्रिय नहीं है।


इसी तरह कांग्रेस के वरिष्ठï नेता रहे और बाद में जनता दल का गठन करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह (दिवंगत) जो यूपी के मुख्यमंत्री भी रहे उनके परिवार से भी कोई चुनाव मैंदान में दिख रहा है। 1988 में इलाहाबाद के उपचुनाव और उसके बाद 1989-1991में फतेहपुर से संसद पहुंचे। उनके परिवार से भी सदस्य पिछले कई चुनावों से मैदान से नदारद है। उनकी पत्नी सीता सिंह या उनके दोनों बेटों में किसी ने राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई।


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और यूपी समेत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के बुजुर्ग नेता नारायण दत्त तिवारी(दिवंगत) के भी परिवार से कोई चुनाव मैंदान में नहीं है। वे 1980-1996-1999 में नैनीताल से सांसद चुने गए थे। केन्द्र में कैबिनेट मंत्री रहे नारायण दत्त तिवारी की दूसरी पत्नी डा.उज्जवला शर्मा के पुत्र रोहित शेखर ने समाजवादी पार्टी से मिलकर अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी लेकिन असमायिक निधन के चलते ये अध्याय बहुत जल्दी समाप्त हो गया। तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार ने रोहित शेखर को परिवहन विभाग का सलाहकार बनाकर राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। इसी तरह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता,रामप्रकाश,श्रीपति मिश्र के परिवार का भी कोई सदस्य न तो राजनीति न ही चुनाव सक्रिय है।


पूर्व मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्त के पुत्र अखिलेश दास यूपीए सरकार में केन्द्र में राज्यमंत्री जरूर रहे उनके निधन के बाद उनकी राजनीतिक विरासत फिलवक्त आगे नहीं बढ़ सकी। बनारसीदास गुप्त के दूसरे पुत्र हरेन्द्र अग्रवाल विधानपरिषद के सदस्य रहे। लेकिन इस समय इस राजनीतिक घराने से कोई चुनाव मैंदान में नहीं है। इसी प्रकार पूर्व मुख्यमंत्री तथा विधानसभाध्यक्ष रहे श्रीपति मिश्र के यहां से भी कोई राजनीति में सक्रिय नहीं है। उनके एक पुत्र राकेश मिश्र एक बार विधानपरिषद के सदस्य जरूर रहे उसके बाद से उनकी भी सक्रियता नहीं दिख रही है।


इसी तरह लखनऊ में भाजपा के कद्दावर नेता तथा यहां से सांसद रहे लालजी टंडन के परिवार का भी सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। लाल जी टंडन यहां भाजपा सरकारों में कैबिनेट मंत्री रहे। बाद में उनकी विरासत उनके पुत्र आशुतोष टंडन(दिवंगत)ने संभाली। वे लखनऊ पूर्वी क्षेत्र से तीन बार विधायक रहे। उनके निधन के बाद हो रहे उपचुनाव में इस बार उनके परिवार से किसी को उम्मीदावार नहीं बनाया गया है हालांकि श्री टंडन के दूसरे पुत्र अमित टंडन उपचुनाव में लडऩे के इच्छुक थे लेकिन उन्हे मौका नहीं दिया गया है।


प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री तथा केन्द्र में गृहमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत के पुत्र केसी पंत और उनकी पत्नी इलापंत तक राजनीतिक सक्रियता रही। उसके बाद से उनके परिवार से किसी ने इसमें कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। केसी पंत नैनीताल निर्वाचन क्षेत्र से 1962- 1967-1971 में चुने गए और केन्द्र में मंत्री बने। बाद में उनकी पत्नी इला पंत 1998 मे संसद पहुंची। इस चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी को शिकस्त दी थी।


पूर्वाचल की राजनीति में कल्पनाथ राय एक बड़ा नाम हुआ करता था। वे घोसी निर्वाचन क्षेत्र से 1989-1991 में कांग्रेस से,1996 में निर्दलीय और 1998 में समता पार्टी के टिकट पर निर्वाचित होकर संसद पहुंचे और केन्द्र की कांग्रेस सरकारों में मंत्री रहे। उनके निधन के बाद उनकी पत्नी सुधा राय ने कुछ ही दिन कांग्रेस में सक्रियता दिखाई। मौजूदा समय में कल्पनाथ राय के परिवार की भी राजनीति में कोई सक्रियता नहीं है।

Shalini singh

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