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Lok Sabha Election 2024: राजनीति में स्त्री द्वेषी बोली के मायने
Lok Sabha Election 2024: दरअसल कई नेताओं में इतनी समझ ही नहीं रह गई है कि वे किसी भी बात को बोलने से पहले उसे तोलकर बोलें
Lok Sabha Election 2024: देश में लोकसभा के लिए आम चुनावों की घोषणा हो चुकी है। विभिन्न दलों के उम्मीदवार अपने-अपने नामांकन दलबल और रोड शो के साथ दाखिल करने में जुटे हैं। एक बार फिर चुनावी रैलियां में एक दूसरे के खिलाफ बिगड़ैल बोल सुनने के दिन आ गए हैं। ऐसे में इस बिगड़ैल राजनीति के पहरुएदारों से कोई कैसे उम्मीद करें कि वे महिला उम्मीदवारों के प्रति अपनी बिगड़ी जुबानी खर्च को लगाम दे पाएंगे। सिर्फ विभिन्न पार्टियों के छुट्भैया नेता ही नहीं बल्कि बड़े नेता भी चुनावी रथ पर सवार होकर यह भूल जाते हैं कि महिला उम्मीदवारों के प्रति अपनी मर्यादा की सीमा को लांघते हुए वह जो बयानबाजी कर रहे हैं, वह उन्हें तालियां तो जरूर दिला देगी ।
लेकिन क्या महिला वोटरों के वोट मिलने की भी उन्हें उम्मीद करनी चाहिए? नहीं, बिल्कुल भी नहीं। 'परकटी महिलाएं, टंचमाल, टनाटन, ग्लैमर का तड़का, नाचने वाली, सुगठित शरीर वाली' जैसे स्त्रीद्वेषी जुमले देश की राजनीति में महिला नेत्रियों को सुनने पड़ते हैं। भारत की राजनीति का कड़वा सच यही है कि पहले तो कोई महिला राजनीति में जल्दी से आती ही नहीं है और अगर आ भी गई है तो उस क्षेत्र में शुरुआती सफलताओं के कदम बढ़ाने के बाद उसके कदमों को पीछे खींचने को मजबूर करने वाले की जमात इकट्ठा हो जाती है। उसके पीछे जिस तरह की बयान बाजी की जाती है उसे साफ जाहिर होता है कि राजनीति स्त्रियों के लिए 'नॉट माय कप का टी' हो जाती है।
महिलाएं किसी भी क्षेत्र या प्रोफेशन से राजनीति में आई हों, उन्हें राजनीति में स्त्री विरोधी मानसिकता को झेलना ही पड़ता है। भारतीय राजनीति का रास्ता कभी भी महिलाओं के लिए न तो पहले सहज था और न ही निकट भविष्य में सहज होने की उम्मीद है। देश की राजनीति में महिलाओं की उम्मीदवारी का प्रतिशत भी कोई बहुत संतुष्टकारी नहीं है। और राजनीति तो वैसे भी बिगड़े बोलों का लोकतंत्र सम्मत प्लेटफार्म है, जहां अगर महिलाओं को भी बोलना है तो पुरुषवादी सोच अपना कर ही बोलना होता है। साफ -सुथरी राजनीति और मर्यादित भाषा के प्रयोग वाली राजनीति चाहते तो सब हैं। लेकिन जुबान पर नियंत्रण रखना उनके बस की बात नहीं। ऐसा कौन सा राज्य होगा जहां के नेताओं ने महिला विरोधी बयान नहीं दिए होंगे। चुनाव समीप आते ही तो महिला उम्मीदवारों पर प्रचार के दौरान अभद्र टिप्पणियों का बाउंसर फेंका जाने लगता है। क्यों महिला नेत्रियों के खाते में निंदनीय टिप्पणियां आती हैं? दरअसल कई नेताओं में इतनी समझ ही नहीं रह गई है कि वे किसी भी बात को बोलने से पहले उसे तोलकर बोलें। या उनकी मानसिकता ही इतनी कलुषित हो चुकी है कि वे अपने स्त्री विरोधी चेहरे को खुद ब खुद अमर्यादित बयानबाज़ी से सामने ले आते हैं।राजनीति की राह महिलाओं के लिए न तो पहले कभी आसान थी और न ही अब है।
उनके हिस्से अभी राजनीति की डगर पर बहुत संघर्ष हैं। देश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा ने 417 लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा की है, जिसमें मात्र 68 महिलाएं हैं। यह भले ही पिछले चुनावों से संख्या अधिक हो पर राजनीति में महिला उम्मीदवारों पर दांव लगाने में सत्तारूढ़ दल की हिचकिचाहट साफ दिखाई देती है। कारण साफ है कि महिलाएं आज भी राजनीति में जीतने वाली रेस का घोड़ा नहीं है। इसलिए राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों की महिलाओं को छोड़कर अन्य महिलाएं बहुत मुश्किल से राजनीति में प्रवेश करती हैं। सिनेमा के परदे की कुछ अभिनेत्रियां राजनीति में कदम तो रखती हैं पर वे भी राजनीति में टाइप्ड होकर ही रह जाती हैं। बहुत कम गिनी- चुनी महिलाएं ही होती हैं जो राजनीति के ऊंचे पदों तक पहुंच पाती हैं। वजह साफ है कि राजनीति के दलदल में जो पैर डालेगा वह कीचड़ में धंसेगा ही और उसके छींटे भी उसके कपड़ों पर लगेंगे। और जिस तरह से महिलाओं पर अशोभनीय टिप्पणियां की जाती हैं वह भी महिलाओं को राजनीति की चौखट से अंदर प्रवेश करने को रोकती हैं। उम्मीद किस से की जाए क्योंकि सभी दल राजनीति में एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं।
( लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं।)