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यादगार किस्सा: जब चुनाव हारने के बाद अटल-आडवाणी पहुंचे फिल्म देखने,जानिए कब हुआ था यह वाकया और कौन सी थी फिल्म
यादगार किस्सा : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने देश की सियासत में भाजपा को शिखर पर पहुंचने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी।
यादगार किस्सा: देश में इन दिनों लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भाजपा एक बार फिर अपनी ताकत दिखाने के लिए बेताब है। भाजपा की अगुवाई वाला एनडीए हैट्रिक लगाने की कोशिश में जुटा हुआ है। वैसे भाजपा को सियासी रूप से इतना मजबूत बनाने पार्टी के दो बड़े दिग्गजों का सबसे बड़ा योगदान माना जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने देश की सियासत में भाजपा को शिखर पर पहुंचने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी।
वैसे शुरुआती दिनों में भाजपा (पूर्व में जनसंघ) को इतना ताकतवर नहीं माना जाता था मगर अटल-आडवाणी की धैर्य, मेहनत और लगन की वजह से भाजपा अब सब पर भारी पड़ती दिख रही है। जनसंघ के शुरुआती दिनों का एक यादगार किस्सा उस समय का भी है जब स्थानीय निकाय चुनाव में करारी हार के बाद अटल ने आडवाणी से कोई फिल्म देखने की बात कही थी। फिर क्या था। दोनों सियासी दिग्गज दिल्ली के इंपीरियल सिनेमा हॉल में फिल्म देखने पहुंचे थे। यह फिल्म 1958 में रिलीज हुई मशहूर अभिनेता राजकपूर की फिल्म थी जिसका नाम था ‘फिर सुबह होगी’। आडवाणी ने एक इंटरव्यू के दौरान को इस यादगार किस्से का खुलासा किया था।
फिल्म देखने के काफी शौकीन रहे आडवाणी
देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा के कई बार राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके लालकृष्ण आडवाणी को पिछले दिनों देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को पहले ही यह सम्मान दिया जा चुका है।आडवाणी को शुरुआत से ही फिल्में देखने का काफी शौक रहा है। उनके इसी शौक का नतीजा था कि जब वे जनसंघ से जुड़े थे तो संघ की पत्रिका के लिए फिल्मों की समीक्षा भी लिखा करते थे। संघ की पत्रिका ऑर्गेनाइजर में उनकी फिल्मी समीक्षाएं छपा करती थीं।
चुनावी हार के बाद अटल का फिल्म देखने का प्रस्ताव
कुछ वर्ष पूर्व एक टीवी चैनल से बातचीत के दौरान आडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी और खुद अपने बारे में कई ऐसी बातें बताई थीं जिन्हें आमतौर पर लोग नहीं जानते। इस इंटरव्यू के दौरान आडवाणी ने एक यादगार किस्सा भी सुनाया था जब चुनावी हार के बाद वे पार्टी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी के साथ एक फिल्म देखने पहुंचे थे।इस यादगार किस्से का जिक्र करते हुए आडवाणी ने बताया था कि 1958 में दिल्ली के स्थानीय निकाय के चुनाव में जनसंघ की हार हो गई थी। जनसंघ की इस हार की वजह से हम सब बहुत दुखी थे और निराशा में चुपचाप बैठे हुए थे। तभी अचानक अटल जी ने कहा कि भाई, चलो कोई फिल्म देखते हैं। आडवाणी के मुताबिक अटल जी के यह कहने पर मैं चौंक गया, लेकिन फिल्में देखना मुझे भी पसंद था और अटल के प्रस्ताव पर मैं तुरंत तैयार हो गया।
फिल्म देखकर दूर की हार की निराशा
आडवाणी ने इस इंटरव्यू के दौरान बताया था कि मैं अटल जी के साथ दिल्ली के इंपीरियल सिनेमा हॉल पहुंच गया। उस समय उस पिक्चर हॉल में जो फिल्म लगी हुई थी उसका नाम था ‘फिर सुबह होगी’। हम दोनों टिकट लेकर फिल्म देखने के लिए बैठ गए।इस फिल्म के जरिए हमने अपने बोझिल और निराशा मूड को हल्का बनाने का प्रयास किया। आडवाणी का कहना था कि फिल्म देखने के बाद मैंने अटल से कहा था कि आज हम भले ही चुनाव हार गए हैं मगर आप देखिएगा एक दिन सुबह जरूर होगी। हमारी भी पार्टी ताकतवर बनकर जरूर उभरेगी।
राजकपूर और माला सिन्हा की चर्चित फिल्म
1958 में आई फिल्म 'फिर सुबह होगी' में राजकपूर और माला सिन्हा ने लीड रोल्स निभाए थे। इन दोनों के साथ ही इस फिल्म में रहमान और टुनटुन की भी प्रमुख भूमिका थी और इस फिल्म को रमेश सहगल ने डायरेक्ट किया था। यह फिल्म रशियन नॉवेलिस्ट फ्योडोर दोस्तोवोस्की की किताब 'क्राइम एंड पनिशमेंट' पर आधारित थी।यह फिल्म एक ऐसे लड़के की कहानी थी जो किसी की मदद करने में अपनी सारी सेविंग खर्च कर देता है। प्रेम के चक्कर में पड़कर वो कुछ गलतियां भी कर जाता है, जिसकी सज़ा किसी और मिलती है। वह लड़का अपनी गलती मान लेना चाहता है मगर उतनी हिम्मत नहीं जुटा पाता। आखिर में वह लड़का अपनी गलती स्वीकार लेता है और इसके साथ फिल्म पॉजिटिव नोट पर खत्म होती है।
जब पहली बार हुई दोनों दिग्गजों की मुलाकात
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बारे में आडवाणी ने एक बार एक और यादगार के किस्सा सुनाया था। उनका कहना था कि 1951 में जनसंघ की स्थापना हुई और 1953 में पार्टी का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में मैंने राजस्थान के डेलीगेट के रूप में हिस्सा लिया था और इस अधिवेशन के दौरान ही मुझे पहली बार अटल को देखने और सुनने का मौका मिला था।अटल एक बार राजस्थान के दौरे पर आए तो मुझे पार्टी की ओर से उनके साथ रहने का निर्देश मिला था। उसे दौरान उनकी ऐसी छाप मेरे मन पर पड़ी जिसे मैं सारी जिंदगी भूल नहीं सका। हालांकि अटल के व्यक्तित्व और भाषण कला ने मेरे अंदर एक कॉम्प्लेक्स भी पैदा कर दिया कि मैं इस पार्टी में नहीं चल पाऊंगा। मेरे मन में यह विचार आया कि जहां इतना योग्य नेतृत्व है, वहां मेरे जैसा कैथोलिक स्कूल में पढ़ कर आया व्यक्ति कैसे चलेगा।
भाजपा को बना दिया सबसे बड़ी ताकत
अटल के बारे में एक और यादगार किस्से में आडवाणी ने बताया था कि 1957 में अटल जी पहली बार सांसद बने थे। उस समय वे जनसंघ के नेता नेता जगदीश प्रसाद माथुर के साथ चांदनी चौक में रहा करते थे। वे पैदल ही संसद आते-जाते थे। छह महीने बाद जब अटल ने एक दिन अचानक रिक्शे से चलने को कहा तो माथुर जी को बड़ा आश्चर्य हुआ। दरअसल उस दिन अटल जी बहुत खुश थे क्योंकि उन्हें सांसद की छह महीने की तनख्वाह एक साथ मिली थी और वे रिक्शे की सवारी करके ऐश करना चाहते थे।
अटल और आडवाणी को भाजपा का शिखर पुरुष माना जाता है और पार्टी को देश की सियासत में बुलंदी पर पहुंचाने में इन दोनों नेताओं का सबसे बड़ा योगदान रहा है। पार्टी को ही नहीं बल्कि देश को आगे बढ़ाने में भी दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और इसी कारण भाजपा के इन दोनों शिखर पुरुषों को भारत रत्न के सम्मान से भी सम्मानित किया गया है। इन दोनों नेताओं ने ही मिलकर 1980 में भाजपा की नींव रखी थी और 44 वर्षों के सफर में आज यह पार्टी दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन चुकी है।