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यादगार चुनाव: जब यूपी के चुनाव में पहली बार हुई बॉलीवुड की एंट्री, अटल को हराने के लिए नेहरू ने ली थी बलराज साहनी की मदद
Loksabha Election 2024: अटल और सुभद्रा जोशी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था मगर अटल को काफी कम मतों से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि अटल ने अगले चुनाव में सुभद्रा जोशी को करारी शिकस्त देकर अपनी हार का बदला भी ले लिया था।
Loksabha Election 2024: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का देश की राजनीति में काफी सम्मान रहा है। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों से जुड़े नेता उन्हें काफी सम्मान देते रहे हैं। देश में लोकसभा चुनाव के मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र करना भी जरूरी है क्योंकि अटल जी का लंबा संसदीय जीवन रहा और इस दौरान वे कई बार लोकसभा का चुनाव जीतने में कामयाब रहे। अटल के लंबे सियासी जीवन से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा 1962 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा हुआ है।
बलरामपुर में 1962 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी और कांग्रेस की प्रत्याशी सुभद्रा जोशी के बीच मुकाबला हुआ था। उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव में पहली बार इसी चुनाव में बॉलीवुड की एंट्री हुई थी। दरअसल देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू इस चुनाव के दौरान अटल के खिलाफ खुद प्रचार करने के लिए बलरामपुर नहीं पहुंचे थे मगर उन्होंने बॉलीवुड एक्टर बलराज साहनी को अटल के खिलाफ चुनाव प्रचार के लिए भेजा था। अटल और सुभद्रा जोशी के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था मगर अटल को काफी कम मतों से हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि अटल ने अगले चुनाव में सुभद्रा जोशी को करारी शिकस्त देकर अपनी हार का बदला भी ले लिया था।
अटल को 1957 में मिली पहली जीत
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जनसंघ टिकट पर पहला चुनाव 1952 में लखनऊ सीट से लड़ा था मगर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1957 के लोकसभा चुनाव में अटल जनसंघ टिकट पर तीन लोकसभा सीटों से चुनाव मैदान में उतरे। लखनऊ और मथुरा सीटों पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा मगर बलरामपुर लोकसभा सीट पर उन्हें जीत हासिल हुई। लखनऊ सीट पर वे दूसरे नंबर पर रहे थे मगर मथुरा लोकसभा सीट पर उनकी जमानत जब्त हो गई थी।
बलरामपुर लोकसभा सीट पर अटल ने कांग्रेस के हैदर हुसैन को हराकर जीत हासिल की थी। इस चुनाव में ध्रुवीकरण का काफी असर दिखा था और मतदान की तारीख आने तक यह चुनाव हिंदू बनाम मुस्लिम की शक्ल अख्तियार कर चुका था। बलरामपुर के इस चुनाव में अटल को करीब नौ हजार वोटों से जीत हासिल हुई थी।
1962 में हुआ सुभद्रा जोशी से मुकाबला
1962 के अगले लोकसभा चुनाव में अटल जनसंघ के टिकट पर एक बार फिर बलरामपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे। इस चुनाव में उनके खिलाफ कांग्रेस ने सुभद्रा जोशी को मैदान में उतारा था। सुभद्रा जोशी पंजाब की रहने वाली थीं मगर बंटवारे के बाद हिंदुस्तान चली आई थीं। इससे पहले वे दो बार अंबाला और करनाल लोकसभा सीट से चुनाव जीत चुकी थीं मगर 1962 के चुनाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कहने पर बलरामपुर के चुनावी अखाड़े में उतरी थीं।
जानकारों का कहना है कि उस चुनाव में सुभद्रा जोशी चाहती थीं कि पंडित नेहरू उनके लिए बलरामपुर में चुनाव प्रचार करें मगर पंडित नेहरू ने अटल के खिलाफ चुनाव प्रचार में दिलचस्पी नहीं दिखाई। अपने खिलाफ सुभद्रा जोशी को उम्मीदवार बनाए जाने पर अटल भी हैरान रह गए थे मगर उन्हें बलरामपुर की जनता पर भरोसा था और वे अपनी जीत के प्रति आश्वस्त नजर आ रहे थे।
बलराज साहनी पर टिकी पंडित नेहरू की नजर
पंडित नेहरू अटल के खिलाफ चुनाव प्रचार नहीं करना चाहते थे और ऐसे में उन्होंने सुभद्रा जोशी की चुनावी संभावनाएं मजबूत बनाने के लिए उस समय के चर्चित चेहरों की खोज शुरू की। ऐसे में उनकी नजर बलराज साहनी पर गई। उन दिनों बॉलीवुड एक्टर बलराज साहनी की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ देश में खूब पसंद की गई थी और हिंदी बेल्ट में बलराज साहनी काफी चर्चित चेहरा बन चुके थे।
यह फिल्म गरीबों के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले किरदार शंभू की थी और बलराज साहनी ने शंभू का किरदार निभाया था। फिल्म के प्रति लोगों में ऐसी जबर्दस्त दीवानगी दिखी थी कि कई लोगों ने शंभू जैसा हेयर स्टाइल भी रखना शुरू कर दिया था। बलराज साहनी ने देश के घर-घर में अपनी पहचान बना ली थी।
नेहरू ने खुद की बलराज साहनी से बातचीत
उस समय चुनाव प्रचार में बॉलीवुड की एंट्री नहीं हुई थी मगर पंडित नेहरू को इस बात का बखूबी एहसास था कि लोगों के बीच नेताओं से ज्यादा अभिनेता को पसंद किया जाएगा। ऐसे में उन्होंने बलराज साहनी को बलरामपुर में सुभद्रा जोशी के चुनाव प्रचार के लिए उतारने का फैसला किया। उन्होंने खुद इस संबंध में बलराज साहनी से बातचीत की। पंडित नेहरू उस समय देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे और ऐसे में उनकी बात कोई कैसे टाल सकता था।
बलराज साहनी सुभद्रा जोशी के चुनाव प्रचार के लिए तैयार हो गए। यह पहला मौका था जब बॉलीवुड का कोई एक्टर चुनाव प्रचार करने के लिए मैदान में उतरा था। कांग्रेस की ओर से बलराज साहनी को चुनाव के दौरान प्रचार के तौर-तरीके भी सिखाए गए।
बलराज साहनी ने किया सुभद्रा का चुनाव प्रचार
बॉलीवुड एक्टर बलराज साहनी के चुनाव प्रचार के लिए तैयार होने के बाद बलरामपुर इस बाबत हल्ला हो गया। इसका बड़ा असर दिखाई पड़ा और सुभद्रा जोशी की सभाओं में भारी भीड़ उमड़ने लगी। मौका देखकर कांग्रेस ने बलराज साहनी को बलरामपुर बुला लिया। बलराज साहनी जीप पर सुभद्रा जोशी के साथ सवार होकर बलरामपुर में चुनाव प्रचार के लिए निकले। बलरामपुर की सड़कों और गलियों में लोग उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब दिखे।
बलराज साहनी ने सुभद्रा जोशी के समर्थन में एक बड़ी जनसभा भी की जिसमें पैर रखने की जगह नहीं थी। बलराज साहनी के बलरामपुर में चुनाव प्रचार का बड़ा असर दिखा और अभी तक भारी दिख रहे अटल बिहारी वाजपेयी कमजोर दिखाई देने लगे। सुभद्रा जोशी के पक्ष में हवा बन गई और जब चुनाव नतीजे सामने आए तो अटल चुनाव हार चुके थे।
बलरामपुर की हवा बदली और हार गए अटल
बलरामपुर के पुराने लोगों का कहना है कि बलराज साहनी के चुनाव प्रचार के बावजूद अटल ने इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सुभद्रा जोशी को कड़ी चुनौती दी थी। अटल को आखिर तक अपनी जीत का भरोसा था मगर जब चुनाव नतीजे सामने आए तो कड़े मुकाबले में अटल को हार का सामना करना पड़ा। सुभद्रा जोशी ने 2052 मतों से अटल को हरा दिया था।
अटल की इस हार के बाद पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जिद के कारण अटल को राज्यसभा के जरिए संसद भेजा गया। 1962 में बलरामपुर में मिली इस हार से अटल को करारा झटका लगा था। उन्होंने अपनी किताब ‘मेरी संसदीय यात्रा’ में लिखा है कि वह इस हार को कभी भुला नहीं पाए।
1967 में अटल ने लिया हार का बदला
इसके बाद 1967 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर बलरामपुर के चुनावी मैदान में अटल बिहारी वाजपेयी और सुभद्रा जोशी का मुकाबला हुआ। इस बार अटल 1962 में मिली हार का बदला लेने के लिए बेताब थे और उन्होंने चुनाव में पूरी ताकत लगाई। इसका नतीजा भी दिखा और अटल ने सुभद्रा जोशी को बुरी तरह हराया।
1967 के इस लोकसभा चुनाव में अटल करीब 32,000 वोटों से जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। 1962 के लोकसभा चुनाव को इसलिए भी याद किया जाता है क्योंकि इसी चुनाव में पहली बार चुनाव प्रचार में बॉलीवुड की एंट्री हुई थी जिसका नतीजा अटल को चुनावी हार के रूप में भुगतना पड़ा था।