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वोटिंग के दौरान अंगुली पर लगाए जाने वाला निशान क्यों नहीं मिटता? जानिए इसका कारण
Lok Sabha Election 2024: चुनाव के दौरान उंगली पर लगाई जाने वाली स्याही कई दिनों बाद भी आसानी से नहीं छूटता है। आइए, जानते हैं क्या है इसके पीछे की वजह।
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव के पहले चरण की आज वोटिंग हो रही है। देश के 21 राज्यों की 102 सीटों पर आज का मतदान हो रहा है, जिसमें 1625 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। उम्मीद है आपने भी अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए वोट डाल दिया होगा। जब आप वोट डालने पोलिंग बूथ पर जाते हैं तो आपने देखा होगा कि मतदान कर्मी, आपके बाएं हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) अंगुली पर एक स्याही से निशान लगाता है। जिससे कि यह प्रमाणित होता है कि आपने अपना वोट दे दिया है। लेकिन, क्या आपने कभी यह सोचा है कि आखिर उस स्याही वाले निशान में ऐसा क्या खास होता है, जो लगाने के कई दिनों बाद भी नहीं छूटता?
स्याही की क्या है खासियत?
वोट देने के बाद आपकी अंगुली पर लगाई जाने वाली स्याही जिसे अंग्रेजी भाषा में Indelible Ink कहते हैं, उसमें सिल्वर नाइट्रेट होता है। यह सिल्वर नाइट्रेट आपकी स्किन और नाखून के संपर्क में आने से और गहरा हो जाता है। जिसके बाद यह और अधिक गाढ़ा निशान छोड़ता है। सिल्वर नाइट्रेट से बनी स्याही की खासियत यही है कि इसका निशान कई दिनों के बाद भी आसानी से नहीं जाता है। जिस भी जगह इस स्याही की मदद से निशान लगाए जाते हैं, जब तक उस जगह पर नए सेल्स नहीं बन जाते या नाखून नहीं बढ़ जाता, तब तक ये निशान आसानी से नहीं जाते हैं।
स्किन को नुकसान पहुंचा सकती है ये स्याही
बता दें, सिल्वर नाइट्रेट का इस्तेमाल तमाम दवाओं को बनाने में भी किया जाता है। विशेष तौर पर ब्लीडिंग को रोकने या घाव को इंफेक्शन से बचाने वाली दवाओं को बनाने में काम आता है। साथ ही सिल्वर नाइट्रेट का उपयोग गांठ और स्किन पर मस्सों को हटाने के लिए भी किया जाता है। सिल्वर नाइट्रेट की एक और खासियत यह भी है कि ये फोटो सेंसिटिव होता है, और जब यह सीधे तौर पर सूर्य की किरणों के संपर्क में आता है तो यह आपकी स्किन को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
चुनाव में कब से हुई इसकी शुरुआत
मतदान में इस स्याही से निशान बनाने की शुरूआत 1962 के लोकसभा चुनाव में हुई थी। इसके बाद से देश में होने वाले हर एक लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस पक्की स्याही का इस्तेमाल किया जा रहा है। चुनाव आयोग ने इस स्याही का पहली बार इस्तेमाल करते हुए यह तर्क दिया था कि इसके इस्तेमाल से कोई भी व्यक्ति दोबारा मतदान नहीं कर पाएगा और इस तरह धांधली रोकने में यह काफी मददगार साबित हो सकता है।
किस कंपनी में तैयार होती है ये स्याही
1962 से लेकर आज चुनाव में इस्तेमाल होने वाली पक्की स्याही को एक ही कंपनी बनाती आ रही है, जो कर्नाटक सरकार की कंपनी है। इस कंपनी का नाम है मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड। इस कंपनी की शुरूआत साल 1937 में नलवाड़ी कृष्णा राजा वाडियार ने की थी। स्याही बनाने वाली इस कंपनी को शुरुआती दिनों में मैसूर लाक फैक्ट्री के नाम से जाना जाता था। 1947 में जब अंग्रेजों के कब्जे से देश आजाद हुआ तो इस कंपनी को सरकार ने अपने कब्जे में लिया और इसका नाम बदलकर मैसूर लाक एंड पेंट्स लिमिटेड रखा।
ये है स्याही की कीमत
तमाम चुनावों में इस्तेमाल होने वाली इस पक्की स्याही की एक शीशी की कीमत 127 रुपए है, जिसमें 10 ML स्याही होती है। इस एक शीशी की मदद से कम से कम 700 उंगलियों पर निशान लगाए जा सकते हैं।