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कमलनाथ को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी, विपक्षी दलों के साथ समन्वय में निभाएंगे अहम भूमिका
केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी के लिए कांग्रेस की ओर से भी कवायद की जा रही है।
New Delhi: केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ मजबूत मोर्चेबंदी के लिए कांग्रेस की ओर से भी कवायद की जा रही है। 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ मजबूत महागठबंधन बनाने के लिए पार्टी ने सक्रियता बढ़ा दी है।विपक्षी दलों के साथ समन्वय स्थापित करके महागठबंधन बनाने की कोशिशों में और तेजी लाने के लिए मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की तैयारी है।
कांग्रेस से जुड़े सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ को जल्द ही पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है। उन्हें विशेष रूप से हिंदी भाषी राज्यों में विपक्षी दलों के साथ समन्वय स्थापित करने की बड़ी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। जानकारों का कहना है कि पार्टी की ओर से जल्द ही इस बाबत एलान किया जा सकता है।
विपक्षी दलों के रुख का कांग्रेस कर रही आकलन
हाल के दिनों में भाजपा के खिलाफ विपक्ष का मजबूत महागठबंधन बनाने की कोशिशों में काफी तेजी आई है। पश्चिम बंगाल में भाजपा को शिकस्त देने के बाद तृणमूल कांग्रेस की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी महागठबंधन मनाने के लिए काफी सक्रिय दिख रही हैं। उन्होंने अपनी पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान विपक्ष के कई नेताओं के साथ ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और राहुल गांधी से भी मुलाकात की थी। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राजद मुखिया लालू प्रसाद यादव ने भी हाल में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन बनाने के लिए सक्रियता दिखाई है।
हालांकि विपक्ष के नेताओं ने अभी तक महागठबंधन के नेता पद को लेकर अपने पत्ते नहीं खोले हैं। इसीलिए कांग्रेस भी क्षेत्रीय दलों के बीच अपनी स्वीकार्यता का आकलन करने में जुटी हुई है। माना जा रहा है कि क्षेत्रीय दलों की ओर से सकारात्मक रुख देखने के बाद कांग्रेस की ओर से महागठबंधन बनाने की कोशिशों में और तेजी लाई जाएगी। कांग्रेस की ओर से इसकी जिम्मेदारी कमलनाथ को सौंपी जा सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगले सप्ताह विपक्ष के नेताओं के साथ होने वाली बैठक के दौरान भी इसकी झलक देखने को मिल सकती है।
नेतृत्व ने इसलिए किया कमलनाथ का चयन
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि पार्टी हाईकमान की ओर से कमलनाथ को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने का फैसला काफी सोच समझकर लिया गया है। दरअसल गैर एनडीए दलों के नेताओं के साथ कमलनाथ के नजदीकी रिश्ते हैं। दिल्ली की सियासत में सक्रिय रहने के दौरान उनकी विपक्षी नेताओं के साथ हमेशा बैठक होती रही है। कांग्रेस छोड़कर नया दल बनाकर मजबूत होने वाले शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे नेताओं के साथ भी उनके करीबी रिश्ते हैं। पार्टी का वरिष्ठ नेता होने के साथ ही उन्हें समन्वय के काम में भी काफी माहिर माना जाता है।
इन सब बातों के अलावा कांग्रेस में असंतुष्ट माने जाने वाले जी-23 के नेताओं से भी कमलनाथ के अच्छे रिश्ते रहे हैं। यूपीए शासनकाल के दौरान कमलनाथ केंद्र में उद्योग मंत्री रहे हैं और देश के बड़े औद्योगिक घरानों से भी उनके नजदीकी रिश्ते हैं। इन्हीं कारणों की वजह से पार्टी हाईकमान ने कमलनाथ को बड़ी जिम्मेदारी सौंप कर उन्हें विपक्षी दलों के साथ समन्वय स्थापित करने का काम सौंपने का मन बनाया है।
राज्यों का प्रभार भी सौंपने की तैयारी
जानकारों के मुताबिक कमलनाथ को समन्वय की जिम्मेदारी सौंपने के साथ ही कुछ ऐसे राज्यों का प्रभार भी सौंपा जा सकता है जहां कांग्रेस नेतृत्व को जटिल स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे राज्यों में पंजाब और पश्चिम बंगाल भी शामिल हैं। इन दोनों राज्यों के अलावा कुछ हिंदी भाषी राज्यों की जिम्मेदारी भी कमलनाथ को सौंपी जा सकती है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और समन्वय की जिम्मेदारी के साथ ही कमलनाथ को मध्य प्रदेश की सियासत से अलग नहीं किया जाएगा। वे आगे भी मध्यप्रदेश में पार्टी का चेहरा बने रहेंगे।
मध्यप्रदेश में उनकी अगुवाई में पार्टी ने काफी मजबूती हासिल की है। यही कारण है कि पार्टी नेतृत्व उन्हें मध्यप्रदेश की सियासत से अलग नहीं करना चाहता। अभी पार्टी नेतृत्व के पास मध्यप्रदेश में कमलनाथ का कोई विकल्प भी नहीं है। मध्य प्रदेश में दो साल बाद यानी 2023 में पार्टी को विधानसभा चुनाव लड़ना है और हाईकमान पार्टी की संभावनाओं को कमजोर नहीं पड़ने देना चाहता। यही कारण है कि मध्य प्रदेश में पार्टी का नेतृत्व अभी कमलनाथ के हाथ में ही बना रहेगा।
मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी नहीं छोड़ेंगे
कमलनाथ खुद भी कई बार यह बात स्पष्ट कर चुके हैं कि वे मध्यप्रदेश को नहीं छोड़ेंगे। पिछले साल ज्योतिरादित्य सिंधिया की बगावत के कारण भाजपा के हाथों झटका खाने वाले कमलनाथ 2023 में भाजपा को जवाब देने के लिए पार्टी संगठन को मजबूत बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं। वे भाजपा के साथ ही सिंधिया से भी अपना पुराना हिसाब चुकाना चाहते हैं। यही कारण है कि उनकी मध्यप्रदेश की सियासत में अभी भी दिलचस्पी बनी हुई है। इसी कारण माना जा रहा है कि केंद्रीय संगठन में बड़ी भूमिका निभाने के बावजूद कमलनाथ मध्य प्रदेश की सियासत में भी अपनी सक्रियता बनाए रखेंगे।