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MP Election 2023 : राजनीति के दांवपेंच से दुखी इस राजा ने 13 दिन में छोड़ दिया था सीएम पद, यहां जानें पूरी कहानी
P Election 2023 : मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे के बाद एक बार फिर मुख्यमंत्री का चेहरा प्रदेश की जनता को मिल जाएगा। लेकिन इसके पहले आपको 13 दिन के एक मुख्यमंत्री के बारे में बताते हैं।
मध्य प्रदेश में इस समय विधानसभा चुनाव का दौर देखा जा रहा है और सभी पार्टियां सत्ता पर अपना कब्जा करने के लिए जीतोड़ मेहनत करती हुई दिखाई दे रही हैं। सबसे खड़ा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच देखा जा रहा है और दोनों के ही प्रत्याशी जनता के बीच संवाद स्थापित करने में लगे हुए हैं। इसी चुनावी माहौल के बीच आज हम आपको मध्य प्रदेश के 13 दिन के मुख्यमंत्री रहे एक नेता के किस्से के बारे में बताते हैं।
13 दिन का सीएम
एक समय ऐसा भी था जब मध्य प्रदेश ने 13 दिन का मुख्यमंत्री देखा और यह पहला और आखिरी मौका था जब किसी निवासी को ताजपोशी के साथ सत्ता की कुर्सी पर बैठाया गया था। यह मुख्यमंत्री कोई और नहीं बल्कि सारंगढ़ रियासत के गौंड राजा नरेशचंद्र सिंह बने थे।
इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री
नरेशचंद्र सिंह मध्य प्रदेश के इतिहास के इकलौते आदिवासी मुख्यमंत्री हैं जो 13 दिन के लिए ही सही लेकिन सत्ता की कुर्सी पर बैठे थे। 13 मार्च 1969 को उन्होंने संविदा सरकार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। इसके बाद 26 मार्च 1969 को उन्होंने सरकार न चला पाने के कारण इस्तीफा दे दिया था। बता दें कि कांग्रेस के अल्पमत में आने के कारण राजा नाराज थे और उन्होंने इस्तीफा देना सही समझा। राजनीतिक दांव पेंच से वह इतना ज्यादा परेशान हो गए थे कि उन्होंने विधायक पद से भी इस्तीफा दे दिया और कभी राजनीति में दोबारा नजर नहीं आए।
राजमाता से जुड़ा है किस्सा
MP Election 2023 : 13 दिन के मुख्यमंत्री की इस कहानी के पीछे का एक बैकग्राउंड भी है। 1967 में राजमाता सिंधिया ने नाराज होकर कांग्रेस छोड़ दी थी। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव करवाए गए जिसमें राजमाता गुना से जीत गई और उनके पार्टी छोड़ने के बाद कांग्रेस में दरारें आना शुरू हो गई। पार्टी के कई बड़े नेता मुख्यमंत्री द्वारिका प्रसाद मिश्रा के स्वभाव से नाराज चल रहे थे और इसका फायदा राजमाता ने उठाया।
राजमाता ने किया तख्तापलट
मुख्यमंत्री से नाराज चल रहे 35 विधायक गोविंद नारायण सिंह के नेतृत्व में राजमाता के पास पहुंचे और बिना देरी करते हुए राजमाता ने कांग्रेस का तख्ता पलट कर दिया। रातोंरात द्वारिका प्रसाद मिश्रा की सरकार गिर गई और 15 फीसदी विधायकों का दल बदल करवाया गया।
खुद को किया ठगा महसूस
राजमाता के निर्देशन में गोविंदनारायण सिंह की सरकार तो बन गई थी। लेकिन गठबंधन की ये सरकार 19 महीने ही चल सकी और सभी ने वापस कांग्रेस में जाने का मन बना लिए और गोविंद सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद राजमाता चाहती थी को कोई ऐसा व्यक्ति सीएम बने जो सर्वमान्य हो और इसी के चलते नरेशचंद्र सिंह का चुनाव किया गया। हालांकि, गोविंदनारायण सिंह कांग्रेस में अपनी वापसी चाहते थे इसके लिए उन्होंने नरेशचंद्र का इस्तेमाल किया और उनके कहने पर ही राजा ने इस्तीफा दिया। ये सब कुछ गोविंदनारायण सिंह को कांग्रेस में वापस लाने का माहौल बनाने के लिए किया गया था। इससे उन्हें वापस आने का मौका मिल गया लेकिन बाद में नरेशचंद्र को एहसास हुआ कि उनका इस्तेमाल हुआ है और उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने का फैसला किया।