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MP News: गरीबी, व्यापार और काम आई उत्तम खेती, मिल गई कामयाबी की मंजिल

MP News Today: रीवा शहर के उर्रहट रविन्द्र नगर में सन 1990 में एक छोटे से घर में एक गरीब परिवार रहता था। यह एक ऐसा दौर था जब रीवा में गरीबी भुखमरी चरम सीमा पर थी।

Amar Mishra (Rewa)
Published on: 16 Dec 2022 8:39 AM IST
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गरीबी, व्यापार और काम आई उत्तम खेती (photo: social media )

MP News: ये कहानी किसी फिल्म की नहीं। सच्ची हकीकत है। रीवा के गरीब ब्राम्हण परिवार की आपबीती है। उसका संघर्ष है। चार बच्चों का पालन पोषण है, कने की रोटी खाकर गुजारी रातें हैं, भूखे पेट सोई जिंदगी है। व्यापार है। और अंत में उत्तम खेती की कहावत चरितार्थ हुई जिसने बदल दी पूरे परिवार की जिंदगी।

रीवा शहर के उर्रहट रविन्द्र नगर में सन 1990 में एक छोटे से घर में एक गरीब परिवार रहता था। यह एक ऐसा दौर था जब रीवा में गरीबी भुखमरी चरम सीमा पर थी। खेती किसानी भी उस समय साथ नही दे रही थी। खेती के लिए 8 एकड़ जमीन तो थी मगर उसमें फसल को उगाने के लिए साधन नही था। गरीबी और भुखमरी की हवा सी चल रही थी। गरीब ब्राह्मण मिश्रा परिवार में चार बच्चों का पालन पोषण करने में अत्यधिक कठिनाई हो रही थी। तभी डूबते को तिनके का सहारा मिला। चार बच्चो के पिता ने धनपत सेठ के यहां 700 रुपये महीने की नौकरी करना चालू कर दिया। मगर 700 रुपए की पगार से महीने भर का घर चलाना भी कठिन हो रहा था, मोहल्ले के लोग गरीब देखकर ताना मारने लगे। तब लाला मिश्रा ने बनिये की नौकरी छोड़कर डेयरी उद्योग करने का निर्णय लिया और सन 1992 में मोहल्ले के बड़े लोगो से 15000 रु. कर्ज के तौर पर लिए और डेयरी के लिए दो भैस खरीदी और दूध का कारोबार शुरु कर दिया। धीरे धीरे बच्चे बड़े होने लगे समय गुजरता गया। बच्चों का निजी स्कूलों में पढ़ाई के लिए एडमिशन कराया, बच्चे खुशी खुशी पढ़ाई करने स्कूल जाने लगे मगर गरीबी ने अभी तक पीछा नहीं छोड़ा था। दूध मात्र 12 रुपए लीटर चल रहा था।

पिता की मृत्यु

धीरे धीरे बच्चे बड़े होते चले गए। खर्चा भी बढ़ता चला गया। आवश्यकता की चीजें सही समय मे पूरी करने में गरीब बच्चों के पिता का संघर्ष चलता गया। सन 2000 में घर के मुखिया चल बसे और उनके जाने के बाद एक एक रोटी के लाले पड़ने लगे। मगर बच्चों ने हार नहीं मानी।

घोर संकट और विकराल समय में गरीबी से डट कर सामना किया और 2007 में खेती के साधन बनाने की योजना बनाई और पड़ोस में रहने बाले तिवारी जी से 6000 रु. 7 महीनों के लिए कर्ज में लिए और खेती करने की जरूरत पूरी करते हुए सिंचाई का मोटर पम्प खरीदा और 8 एकड़ की जमीन की पूरी सिंचाई करते हुए गेंहू की फसल की बुवाई कराई और गेहूं के फसल का उत्पादन हुआ, जिसके बाद से धीरे धीरे मिश्रा परिवार की गरीबी दूर होना शुरू हुई और पूरा परिवार खेती पर आश्रित हो गया। हर साल 2 से 3 लाख की इनकम खेती से कर के आज ये परिवार अपना जीवन यापन कर रहा है। गांव में सबसे ज्यादा खेती का रिकार्ड बनाने पर देखने वालों की आज भी भीड़ लगती है।



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Monika

Monika

Content Writer

पत्रकारिता के क्षेत्र में मुझे 4 सालों का अनुभव हैं. जिसमें मैंने मनोरंजन, लाइफस्टाइल से लेकर नेशनल और इंटरनेशनल ख़बरें लिखी. साथ ही साथ वायस ओवर का भी काम किया. मैंने बीए जर्नलिज्म के बाद MJMC किया है

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