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Rewa News: सुपाड़ी के खिलौने से रीवा ने बनाई राष्ट्रीय पहचान, जानें सुपाड़ी के खिलौने की शुरुआत के बारे में
Rewa News: एमपी के रीवा में कलाकारों के आज अद्भुत सुपाड़ी के खिलौने गणेश जी की मूर्तियां बनाई जाती है रीवा सुपाड़ी के खिलौने बनाने के मामले में देश भर में फेमस है।
Rewa News: एमपी के रीवा में कलाकारों के आज अद्भुत सुपाड़ी के खिलौने गणेश जी की मूर्तियां बनाई जाती है रीवा सुपाड़ी के खिलौने बनाने के मामले में देश भर में फेमस है। तो आइए जानते है सुपाड़ी के खिलौने से आखिर क्या है रीवा का नाता, आखिर रीवा सुपाड़ी के खिलौने के लिए कैसे बनाई राष्ट्रीय पहचान जानते है महत्व पूर्ण बाते आखिर कैसे हुई थी सुपाड़ी के खिलौने की शुरुआत सुपारी के खिलौनों ने रीवा को राष्ट्रीय स्तर पर गौरव दिलाया है। यहां के कलाकारों की कलाकृतियां दूसरे राज्यों में भी भेजी जा रही हैं। जिस तरह से रीवा में सुपारी के खिलौने बनाए जाते हैं वह दूसरे स्थानों में बहुत कम हैं।
रीवा शहर के शराफ़ा मार्केट में बसे कुंदेर परिवार के कुछ लोगों के लिए यह चाहे भले ही जीवन यापन का एक जरिया हो लेकिन इससे रीवा की ख्याति भी जुड़ी है। इन खिलौनों को गिफ्ट देने में इस्तेमाल किया जा रहा है। मांग इनकी इतनी अधिक है कि एक से अधिक की संख्या में जरूरत पडऩे पर एडवांस में आर्डर देना पड़ता है। शहर में आने वाले राजनेताओं और अन्य सेलीब्रिटी को भी यही भेंट किए जा रहे हैं। इसकी शुरुआत के संबंध में बताया जा रहा है कि राजघराने द्वारा सुपारी को पान के साथ इस्तेमाल करने के लिए अलग-अलग डिजाइन से कटवाने की शुरुआत की गई थी।
उसी की डिजाइन बनाते-बनाते कलाकृतियां भी सामने आने लगीं। कुंदेर परिवार रीवा में पिछले तीन सौ वर्षो से यह काम कर रहा है। जिससे रीवा की पहचान सुपारी के खिलौने के रूप में बन गई हैं। लक्ष्मी जी की मूर्ति लोग गिफ्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपने घरों में रखने के लिए लेते हैं। गिफ्ट करने के लिए गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक खरीदी जा रही है। तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी ने खिलौने बनाने बाले कुदेर परिवार की किये था सराहना उन्हों ने रीवा जिले को बताया था हस्त कलाकारों का गढ़ जहा से सुपाड़ी के खिलौने आंध्रप्रदेश , तमिलनाडु, कर्नाटक तक जाते है।
इंदिरा गांधी कुदेल परिवार की कला से थी प्रभावित
भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सन 1968 में रीवा आई थीं। उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने गिफ्ट गए थे। दिल्ली पहुंचने पर उन्होंने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के बोर्ड आफ डायरेक्टर के पैनल में सुपारी के खिलौने बनाने वाले रामसिया कुंदेर को भी शामिल किया। कई बड़े कार्यक्रम में इंदिरा गांधी ने परिचय कराकर कलाकार का सम्मान भी बढ़ाया। आपको बता दे कि रीवा में सुपाड़ी के खिलौने की शुरुआत सिंदूर के डिब्बी से हुई थी। सबसे पहले 1942 में भगवानदीन कुंदेर ने सुपारी की सिंदूर दान बनाकर महाराजा गुलाब सिंह को गिफ्ट किया था। इसके पहले महाराजा के आदेश पर ही राजदरबार के लिए लच्छेदार सुपारी काटी जाती थी।
महाराजा मार्तण्ड सिंह को वॉकिंग स्टिक गिफ्ट की गई, जिस पर 51 रुपए का इनाम दिया गया था। समय के साथ बाजार की मांग के अनुसार खिलौने बनाए जाने लगे। इनदिनों शहर का ऐसा कोई भी बड़ा कार्यक्रम नहीं होता जिसमें सुपारी की गणेश प्रतिमा गिफ्ट नहीं की जाती हो। बाहर से आने वाले अतिथि को सुपारी के ही खिलौने दिए जाते हैं। रीवा जिले में सुपाड़ी की गणेश प्रतिमा को अत्यधिक महत्व दिया गया है । पहले सुपारी की स्टिक, मंदिर सेट, कंगारू सेट, टी-सेट, महिलाओं के गहने, लैंप आदि पर अधिक फोकस रहता था लेकिन इनदिनों गणेश प्रतिमा ही सबसे अधिक लोकप्रिय हो रही है।