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MP News Today: किला में गद्दी पूजन के 405 साल पूरे, तैयारियां हुई पूरी
Madhya Pradesh News: रीवा के किले में गद्दी पूजन की परंपरा को इस वर्ष 405 साल पूरे हो गए हैं। इस परंपरा का प्रवेश बांधवगढ़ किले से रीवा के किले में 1617 में हुआ था। ब
MP News Today: रीवा के किले में गद्दी पूजन की परंपरा को इस वर्ष 405 साल पूरे हो गए हैं। इस परंपरा का प्रवेश बांधवगढ़ किले (Bandhavgarh Fort) से रीवा के किले में 1617 में हुआ था। बघेल वंश के 22वें महाराजा विक्रमादित्य सिंह जूदेव ने पहली बार रीवा किले में गद्दी पूजन समारोह (Gaddi Worship Ceremony) धूमधाम से मनाया था। तभी से रीवा में यह परंपरा राजवंश के राजाओं के द्वारा हर साल विजयादशमी के दिन निभाई जा रही है।
34 वें महाराज पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह 5 अक्टूबर को किया गद्दी पूजन
बताया जा रहा है कि बघेल साम्राज्य के 34 वें महाराज पूर्व मंत्री पुष्पराज सिंह 5 अक्टूबर को शाम पांच बजे गद्दी पूजन किए । गद्दी पूजन की भव्य तैयारियां की गई थी । राजसी अंदाज में गद्दी पूजन किया गया है। गद्दी पर राजाधिराज होते हैं और राजा जमीन पर बैठकर उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले नागरिकों को सम्मान देने की परंपरा भी रीवा रियासत की रही है। जिसका निर्वाहन भी किया जाएगा।
भगवान राजाधिराज की सवारी होगी सबसे आगे
दशहरा उत्सव के दिन किला परिसर को दुल्हन की तरह सजाया गया। गद्दी पूजन के बाद चल समारोह रावण बध के लिए एनसीसी ग्राउंड के लिए निकलेगा। इस दौरान भगवान राजाधिराज की सवारी सबसे आगे होगी। उसके पीछे राजवंश के लोग रथ पर सवार रहेंगे। भगवान राजाधिराज की है गद्दी कभी कोई भी राजा गद्दी पर नहीं बैठे। इनकी परंपरा है कि गद्दी पर भगवान राजाधिराज ही विराजमान होते हैं।
बांधवगढ़ से चल रही ये परंपरा
बांधवगढ़ से यह परंपरा चली आ रही है। विंध्य का इलाका लक्ष्मण का था, वह भगवान राम को आदर्श मानते थे। उन्हीं की प्रतिमा को गद्दी पर विराजमान कर पूजते थे और सेवक की तरह प्रशासकीय कार्य करते थे। रीवा जिले भर की दुर्गा माँ की झांकी शहर से होते हुए रीवा एन सी सी ग्राउंड में जाएगी।